Atmadharma magazine - Ank 132
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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नार काळ सामे नथी जोतो पण आत्मा सामे जुए छे.
केवळी भगवाने केवळज्ञानमां जे काळ जोयो ते काळे ज मुक्ति थाय, मुक्तिनो काळ फरे
नहि–एवो आत्मद्रव्यनो एक धर्म छे; आत्माना आ धर्मनो निर्णय परनी सामे जोईने थतो
नथी पण आत्मद्रव्यनी सामे जोवाथी ज तेना धर्मनो निर्णय थाय छे. काळनय पण कोने जुए
छे?–के जेनी सिद्धि काळ उपर आधार राखे छे एवा आत्मद्रव्यने ते जुए छे, एटले जे जीव
अंतर्मुख थईने आत्मद्रव्य उपर जुए छे तेणे ज काळनयने साचो मान्यो कहेवाय, अने तेनो
मुक्तिनो काळ अल्पकाळमां ज थवानो होय.
जुओ, अहीं एकेक धर्मने सिद्ध नथी करवो पण आखा आत्मद्रव्यने सिद्ध करवुं छे, माटे
धर्म जोनारे पोतानुं ज्ञान आत्मा तरफ वाळवानुं छे. आ रीते द्रव्यद्रष्टि करीने शुद्धआत्माने
प्रतीतमां लेवो ते ज आ बधानुं तात्पर्य छे. जे जीव आखा आत्माने तो प्रतीतमां लेतो नथी ने
एकेक धर्मने ज जुदो पाडीने देखे छे तेना तो बधा नयो मिथ्या छे. प्रमाण ज्ञानथी अनंत धर्मात्मक
अखंड आत्माने स्वीकार्या वगर तेना एकेक धर्मनुं साचुं ज्ञान होय नहि एटले के नय होय नहि.
काळनय कहे छे के आत्मामां जे समये सम्यग्दर्शन थवानुं ते ज समये थवानुं–पण ते कोने
बेठुं? के जेणे द्रव्य सामे जोयुं तेने! एटले जेने आ वात बेठी तेने तो सम्यग्दर्शननो काळ आवी ज
गयो छे. आत्मानो जे धर्म छे ते क्षणिक पर्यायने आधारे नथी पण द्रव्यना आधारे छे. पर्याय तो
समये समये चाली ज जाय छे, अनेक पर्यायो तो एक समये होती नथी, ने द्रव्य तो सदा एकरूप
छे, माटे ते द्रव्य उपर द्रष्टि जतां ज पर्यायना काळनो के क्रमबद्ध पर्यायनो यथार्थ निर्णय थाय छे.
एकेक समयनी पर्यायनो काळ व्यवस्थित छे. जे पर्यायनो जे काळ छे तेमां फेरफार थाय
नहि. जो तेमां फेरफार थाय तो वस्तुस्वभाव के केवळज्ञान ज साबित थाय नहि. अने आम
होवा छतां आमां पुरुषार्थ पण आवी जाय छे, केमके पर्यायनो निर्णय करनारनुं मुख आत्मद्रव्य
उपर छे, द्रव्यनी ज तेनी द्रष्टिमां मुख्यता छे, द्रव्यनी सन्मुख द्रष्टिमां तेने पर्याय फेरववानी बुद्धि
रहेती नथी, परंतु द्रव्यना आश्रयमां पर्यायनुं निर्मळ परिणमन थई जाय छे अने तेने
अल्पकाळमां केवळज्ञान थई जाय छे.
अहो! वीतरागी संतो गमे ते पडखांथी वात समजावे, पण तेमां वस्तुनो मूळ स्वभाव ज
बताववा मागे छे.
* * * * *
जे मुक्तिनो समय छे ते समये ज मुक्ति थाय छे–आवो काळनयथी आत्मानो स्वभाव
छे. हवे आत्मानी मुक्तिनो समय नक्की करनारने स्वभावसन्मुख द्रष्टिथी ज ते नक्की थाय छे,
एटले स्वभावसन्मुख द्रष्टिमां अल्पकाळे मुक्ति थाय एवो काळ तेने होय ज. सर्वज्ञ भगवाने
जोयुं ते ज समये मुक्ति थाय–एवो काळनये आत्मानो धर्म छे; पण ते धर्म नक्की क्यारे थाय?
ते धर्म परना आश्रये नथी पण आत्माना आश्रये छे एटले ज्यारे आखो आत्मा द्रष्टिमां ल्ये
त्यारे तेनो आ धर्म नक्की थाय. अने जेणे आत्माने द्रष्टिमां लीधो तेने अल्पकाळमां ज मुक्तिनो
स्वकाळ अवश्य होय छे. आ काळनय पण कांई पुरुषार्थ ऊडाडवा माटे नथी, परंतु तेमां
वीतरागी ज्ञाताद्रष्टापणानो सम्यक् पुरुषार्थ आवी जाय छे, ते
ः २३पः आत्मधर्मः १३२