बेसतो नथी.
जोवानुं रह्युं. आत्माना स्वभाव उपर द्रष्टि गई त्यां स्वकाळ अल्प समयमां पाकवानो ज होय.
अहीं द्रष्टांतमां पण एवी केरी लीधी छे के उनाळानो काळ आवतां जे पाकी जाय छे, तेम
सिद्धांतमां एवो आत्मा लेवो के स्वभावनो निर्णय करीने स्वभाव तरफना सम्यक् पुरुषार्थथी
जेने मुक्ति नो काळ पाकी जाय छे. सर्वज्ञदेवे तो मुक्तिनो जे समय छे ते जोयो छे, पण ‘हुं मुक्त
थईश, मुक्त थवानो मारा आत्मानो स्वभाव छे’–एम जेणे नक्की कर्युं तेने बंधननी के रागनी
रुचि रहेती नथी, पण जेमांथी मुक्तदशा आववानी छे एवा स्वद्रव्य तरफ ते जुए छे, ने
अल्पकाळे तेने मुक्तिनो स्वकाळ पाकी ज जाय छे. जेने रागनी के निमित्तनी रुचि छे तेने खरेखर
मुक्तिनो निर्णय नथी. मुक्तिनो निर्णय करनार आत्माने जुए छे, केमके मुक्ति कोई निमित्तना
आश्रये रागना आश्रये के पर्यायना आश्रये नथी पण आत्मद्रव्यना आश्रये छे; तेथी ते
आत्मद्रव्यनुं अवलंबन करीने ज्ञाताद्रष्टा रहे छे, तेने पर्याय बुद्धिनी अधीरज के उतावळ थती
नथी, ज्ञाताद्रष्टापणे वर्तता तेने मुक्ति अल्पकाळमां थई जाय छे.
एकाग्र करीने ते निर्णय कर्यो छे एटले वर्तमानमां ते साधक तो थयो छे. हवे तेनी द्रष्टि
आत्माना स्वभाव उपर छे, ‘हुं झट मुक्ति करुं ने संसार टाळुं’–एवी पर्याय द्रष्टि तेने नथी, हवे
स्वभावमां एकाग्र थतां तेने अल्पकाळमां मुक्तदशा थई जशे.
विषमताथी मुक्ति थती नथी, पण हुं तो ज्ञान छुं–एम ज्ञानस्वभावने लक्षमां लईने तेमां एकाग्र
थतां मुक्ति थई जाय छे, ज्ञाताद्रष्टा स्वभावमां रहेतां जे समये मुक्ति थवानी छे ते समये थई जाय
छे, तेने मुक्तिना समय वच्चे लांबो काळ होतो नथी. अरे! वेलो मोक्ष करुं–ए पण विषमभाव छे,
केम के अवस्था ए ज वस्तुनी व्यवस्था छे, झट मोक्ष करुं–एम कहे पण मोक्ष थवानो उपाय तो
स्वद्रव्यनो आश्रय करवो ते छे, ते उपाय तो करे नहि तो मोक्ष क्यांथी थाय? स्वद्रव्यनी द्रष्टि करतां
मोक्ष अल्पकाळमां थई जाय छे पण त्यां मोक्षपर्याय उपर द्रष्टि रहेती नथी. स्वभावनुं अवलंबन
राखीने ज्ञाताद्रष्टा थयो तेमां पर्यायनी उतावळ करवानुं रहे छे ज क्यां? केमके स्वभावना
अवलंबने तेनी पर्याय खीलती ज जाय छे, हवे तेने मोक्ष थतां झाझी वार लागशे नहि.