Atmadharma magazine - Ank 132
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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मोक्षनुं कारण छे. स्वभाव उपर द्रष्टि करे तेने ज आ नय यथार्थपणे बेसे छे, बीजाने आ नय
बेसतो नथी.
शंकाः–काळनये आत्मानी सिद्धि समय उपर आधार राखे छे, एटले हवे अमारे शुं रह्युं?
अमारे तो काळ सामे जोईने बेसी रहेवानुं ज रह्युं?
समाधानः–एम नथी; सांभळ भाई! काळनये जेनी सिद्धि समय उपर आधार राखे छे–
एवुं कोण छे?–के आत्मद्रव्य! तो आ धर्म माननारे काळ सामे जोवानुं न रह्युं पण आत्मा सामे
जोवानुं रह्युं. आत्माना स्वभाव उपर द्रष्टि गई त्यां स्वकाळ अल्प समयमां पाकवानो ज होय.
अहीं द्रष्टांतमां पण एवी केरी लीधी छे के उनाळानो काळ आवतां जे पाकी जाय छे, तेम
सिद्धांतमां एवो आत्मा लेवो के स्वभावनो निर्णय करीने स्वभाव तरफना सम्यक् पुरुषार्थथी
जेने मुक्ति नो काळ पाकी जाय छे. सर्वज्ञदेवे तो मुक्तिनो जे समय छे ते जोयो छे, पण ‘हुं मुक्त
थईश, मुक्त थवानो मारा आत्मानो स्वभाव छे’–एम जेणे नक्की कर्युं तेने बंधननी के रागनी
रुचि रहेती नथी, पण जेमांथी मुक्तदशा आववानी छे एवा स्वद्रव्य तरफ ते जुए छे, ने
अल्पकाळे तेने मुक्तिनो स्वकाळ पाकी ज जाय छे. जेने रागनी के निमित्तनी रुचि छे तेने खरेखर
मुक्तिनो निर्णय नथी. मुक्तिनो निर्णय करनार आत्माने जुए छे, केमके मुक्ति कोई निमित्तना
आश्रये रागना आश्रये के पर्यायना आश्रये नथी पण आत्मद्रव्यना आश्रये छे; तेथी ते
आत्मद्रव्यनुं अवलंबन करीने ज्ञाताद्रष्टा रहे छे, तेने पर्याय बुद्धिनी अधीरज के उतावळ थती
नथी, ज्ञाताद्रष्टापणे वर्तता तेने मुक्ति अल्पकाळमां थई जाय छे.
जेणे पोतानी मुक्ति थवानो निर्णय कर्यो के स्वकाळे मुक्ति पर्याय थवानो धर्म मारा
आत्मामां छे, तेणे रागमां एकाग्र थईने ते निर्णय नथी कर्यो पण ज्ञाताद्रव्यमां ज्ञान पर्यायने
एकाग्र करीने ते निर्णय कर्यो छे एटले वर्तमानमां ते साधक तो थयो छे. हवे तेनी द्रष्टि
आत्माना स्वभाव उपर छे, ‘हुं झट मुक्ति करुं ने संसार टाळुं’–एवी पर्याय द्रष्टि तेने नथी, हवे
स्वभावमां एकाग्र थतां तेने अल्पकाळमां मुक्तदशा थई जशे.
हुं घणुं जोस करीने झट मारी मुक्ति करी नांखुं, दया आकरा व्रत तप वगेरे करीने मारी
मुक्ति वहेली करी दउं–एम पर्याय सामे जोईने आकुळता करे तेमां तो विषमता छे, एवी
विषमताथी मुक्ति थती नथी, पण हुं तो ज्ञान छुं–एम ज्ञानस्वभावने लक्षमां लईने तेमां एकाग्र
थतां मुक्ति थई जाय छे, ज्ञाताद्रष्टा स्वभावमां रहेतां जे समये मुक्ति थवानी छे ते समये थई जाय
छे, तेने मुक्तिना समय वच्चे लांबो काळ होतो नथी. अरे! वेलो मोक्ष करुं–ए पण विषमभाव छे,
केम के अवस्था ए ज वस्तुनी व्यवस्था छे, झट मोक्ष करुं–एम कहे पण मोक्ष थवानो उपाय तो
स्वद्रव्यनो आश्रय करवो ते छे, ते उपाय तो करे नहि तो मोक्ष क्यांथी थाय? स्वद्रव्यनी द्रष्टि करतां
मोक्ष अल्पकाळमां थई जाय छे पण त्यां मोक्षपर्याय उपर द्रष्टि रहेती नथी. स्वभावनुं अवलंबन
राखीने ज्ञाताद्रष्टा थयो तेमां पर्यायनी उतावळ करवानुं रहे छे ज क्यां? केमके स्वभावना
अवलंबने तेनी पर्याय खीलती ज जाय छे, हवे तेने मोक्ष थतां झाझी वार लागशे नहि.
जुओ, आ काळनयनुं रहस्य! जेणे आ काळनयथी पण आत्मानो निर्णय कर्यो तेना
ज्ञानमां ज्ञाताद्रष्टापणानी धीरज थई गई, तेना
आश्विनः २४८० ः २३६ः