मोक्ष जोयो छे. काळनयथी आत्मानी मुक्ति समय उपर आधार राखे छे–एम कह्युं तेमां
पुरुषार्थनी नबळाई नथी पण स्वभाव द्रष्टिनुं जोर छे; आनो निर्णय करनार जीव द्रव्यस्वभाव
उपर द्रष्टि राखीने बंध–मोक्षनो पण ज्ञाता रही जाय छे, ने अल्पकाळमां तेनी मुक्ति थई जाय
छे, केवळी भगवानना ज्ञानमां तेनी मुक्तिनां प्रमाण नोंधाई गया छे, अने ते आत्माना
स्वभावमां पण तेवो धर्म छे. अहो? आमां मोक्षनो पुरुषार्थ छे पण आकुळता नथी,
ज्ञाताद्रष्टापणानी धीरज छे. उतावळ करे तो तेने ज्ञाताद्रष्टापणुं न रह्युं पण आकुळता थई–
विषमभाव थयो, ते तो मोक्षने रोकनार छे. श्रीमद् राजचंद्र पण कहे छे के–उतावळ तेटली कचाश,
अने कचाश तेटली खटाश. स्वभावद्रष्टिमां धर्मीने उतावळ नथी, अने पुरुषार्थनी कचाश पण
नथी; स्वभावनी द्रष्टिमां ज्ञाताद्रष्टापणे मोक्षनो प्रयत्न तेने चालु ज छे ने अल्पकाळे तेने
मोक्षदशा थई जाय छे.
स्वच्छंद कल्पनाथी ऊंधा अर्थ करे छे.
ने मोक्ष करुं–एम पर्यायनी विषमता उपर तेनी द्रष्टि नथी पण एकरूप चिदानंद स्वभाव उपर
तेनी द्रष्टि छे ते स्वभावनी द्रष्टिमां अल्पकाळे भव टळीने मोक्ष थया विना रहे नहि.
सामे न होय पण शुद्धस्वभाव उपर तेनी द्रष्टि होय; शुद्धस्वभावमां विकार नथी एटले ते
स्वभावनी द्रष्टिथी विकार टळी जाय छे ने अविकारी मोक्षदशा प्रगटी जाय छे.
पडी छे अने ते द्रव्यना आश्रये अल्पकाळमां जरूर तेनी मुक्ति थई जाय छे.
स्वभावनी ताकात छे, जीवने लईने तेनुं कार्य थाय–एम बनतुं नथी. परंतु अज्ञानी स्व–परनी भिन्नताने भूलीने
परनां कार्य हुं करुं एवुं अभिमान करे छे. पण भाई! एमां तारी महत्ता नथी, तुं तो ज्ञानस्वभाव छो–ते
स्वभावनी महत्ताने लक्षमां तो ले. परनां कार्योथी तारी महत्ता नथी पण चैतन्यस्वरूपथी तारी महत्ता छे. तारा
चैतन्यस्वरूपनी महत्ताने लक्षमां लीधा वगर पोताने तुच्छ मानीने तुं संसारमां रखडयो. हवे तारा चैतन्यनी
प्रभुताने जाण ने परना कर्तापणानुं अभिमान छोड तो तारा भवभ्रमणनो अंत आवे.
ः २३७ः