ए ज प्रमाणे २१ थी ३२ सुधीना बधा नंबरमां समजी लेवुं.
अतीन्द्रिय चैतन्यतत्त्वनुं अवलंबन करतां
देहातीतपणुं
अत्यार सुधी शुं कर्युं
अनादिना मोहनो क्षय करीने अपूर्व
सम्यग्दर्शन पामवानी रीत
अपूर्व अहिंसा धर्म अने आत्मानुं
भगवानपणुं
अपूर्व आत्मशांति
अपूर्व आत्महितनो मार्ग
अपूर्व कल्याणनो उपाय शुं?
अपूर्व प्रयोग
अरिहंत भगवानने ओळखो (१)
अरिहंत भगवानने ओळखो (२)
‘अवसर वार वार नहि आवे’
अचिंत्य सामर्थ्य
आचार्यदेव अप्रतिबुद्धजीवने आत्मानुं
स्वरूप ओळखावे छे
आचार्य भगवान कहे छे के.....
आजना युवक बंधुओने (संपादकीय)
आटलुं समजी लेवुं के......
आत्मकल्याणनी अद्भुत प्रेरणा
आत्मधर्म (अगियारमा वर्षना प्रारंभे)
आत्मबोध
आत्मधर्मनुं भेट पुस्तक
आत्मधर्मना ग्राहकोनी फरज
‘आत्मधर्म’ ना लेखोनी कक्कावारी (वर्ष
अगियारमुंः अंक १२१ थी १३२)
‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?’
(१६)
(प्रवचनसार परिशिष्ट उपरनां प्रवचनो)
३२–२२६
(१७)
आत्माना शुद्ध स्वरूपनी समजण
आत्माना हितनी दरकार
आत्मानी ओळखाण
आत्मानी गरज
आत्मानी साची शांति केम थाय?
आत्मानी महत्ता
आत्मानुं ध्येय
आत्मानुं ध्येय शुं?
आत्मानुं भगवानपणुं
आत्मानुं स्वभाव सामर्थ्य
आत्मानो अतीन्द्रिय आनंद
आत्मानो प्रयत्न (चर्चामांथी)
आत्मार्थीनो विचार अने उद्यम
आनंद क्यां? ने आदरणीय शुं?
‘उजमबा–जैन स्वाध्याय गृह’
उत्तम अने निर्दोष कर्तव्य शुं?
उत्तम चैतन्यतत्त्वनी ओळखाणनो उपदेश
उमराळा नगरीमां उद्घाटन महोत्सव
प्रसंगे
उमराळा नगरीमां मंगल प्रवचन
उमराळा नगरीमां ‘श्री कहानगुरु
जन्मधाम’ तथा ‘उजमबा जैन स्वाध्याय
गृह’ नो उद्घाटन महोत्सव
उमराळामां वेदी प्रतिष्ठा (समाचार)
एक क्षण पण तारा स्वरूपनो विचार कर
एक क्षण पण न कर्युं
एक समयमां बे (मोक्ष अने बंधना
कारणरूप भावो)
एक सहेलुं प्रवचन
२९–१७प