Atmadharma magazine - Ank 132
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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आनंद कयां? ने आदरणीय शुं?
*
आत्मानो स्वभाव चिदानंद छे, ज्ञान ने आनंद तेना स्वभावमां ज भर्या छे; पण
अनादिथी तेने भूलीने, बहारमां आनंद मानीने संसारमां रखडे छे. अनादिथी संसारमां रखडतां
आत्माना भान सिवाय बीजुं बधुं कर्युं–स्वर्गमां गयो ने नरकमां पण गयो, रंक थयो ने राजा
पण थयो, परंतु आत्माना भान विना तेने क्यांय शांति न थई. शांति तो आत्माना स्वभावमां
छे तेने ओळखे तो शांति प्रगटे, शांति ज्यां भरी होय त्यांथी प्रगटे, पण बहारथी न आवे. जेम
चणामां ज मीठास भरी छे, तेने सेकतां तेमांथी ज ते बहार आवे छे, तावडामांथी ते मीठास
नथी आवती; तेम आत्मा पोते ज आनंदस्वभावथी भरेलो छे, तेनी श्रद्धा करीने तेमां एकाग्र
थतां तेमांथी ज ते आनंद प्रगटे छे, क्यांय बहारथी ते आनंद नथी आवतो. आत्मा सिवाय
बहारना कोई विषयोमां आनंद मानवो ते भ्रांति छे. परमां आनंद मानीने जे राग थाय छे ते
रागमां पण आनंद नथी. हिंसादि पापनो राग तो दुःखदायक छे ने दया–दान वगेरेनो पुण्यराग
थाय ते पण दुःखरूप छे, तेमां चैतन्यनो आनंद के शांति नथी.
आत्माना स्वभावमां आनंद छे तेने भूलीने बहारमां ने रागमां आनंद मान्यो, तोपण
जीवना स्वभावमां जे आनंद भर्यो छे तेनो नाश थई गयो नथी. जेम काचा चणानो स्वाद तूरो
लागे छे तोपण तेना स्वभावमां जे मीठो स्वाद छे तेनो नाश थई गयो नथी, तेने सेकतां ते
मीठास बहार आवे छे. तेम अज्ञानभावने लीधे अनादिथी जीव संसारमां दुःखी छे तोपण
तेनामां आनंदस्वभाव भर्यो छे, सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र वडे आत्मानुं प्रतपन करतां ते
आनंदनो अनुभव थाय छे. पहेलां अंतर्मुख स्वभावनी श्रद्धा करीने सम्यग्दर्शन करतां ज
निर्विकल्प आनंदना अंशनो अपूर्व स्वाद आवे छे, अने पूर्णानंद प्रतीतमां आवी जाय छे के
अहो! सिद्ध भगवान जेवो परिपूर्ण आनंद तो अहीं ज भर्यो छे. आवा आत्माना अतीन्द्रिय
आनंदनुं भान थतां बहारना विषयो तुच्छ भासे छे. तेमां क्यांय स्वप्नेय सुख भासतुं नथी.
आनंदनिधान चैतन्यमूर्ति आत्मानी रुचि छोडीने बहारनी रुचि ते संसारनुं कारण छे, अने
आत्माना आनंद–स्वभावनी रुचि करवी ते मोक्षनुं कारण छे.
भाई! अनादिथी तुं संसारमां रखडी रह्यो छे, तेमां तारा आत्मानो आनंदस्वभाव पण
तारी साथे ने साथे ज छे, आत्मानी शक्तिमां जे आनंदस्वभाव पडयो छे ते कदी तेनाथी जुदो
पडतो नथी. पण अनादिथी जीवे तेनी सामे जोईने स्वशक्तिनी संभाळ कदी करी नथी तेथी ते
आनंदनो अनुभव थतो नथी. मारा आत्मानो आनंदस्वभाव एवो ने एवो छे–एम
स्वभावशक्तिनी संभाळ करीने तेमां एकाग्र थतां आत्माना आनंदनो अनुभव थाय छे.
आ शरीर जड छे. तेमां क्यांय आत्मानो आनंद नथी. शरीर आत्माथी जुदुं छे, तेनी
क्रियाने आत्मा करी शकतो नथी. शरीरनी क्रियाओ स्वयं थाय छे, त्यां ‘आने हुं करुं छुं’ एम
अज्ञानी तेनुं अभिमान करे छे, तेने जडथी भिन्न आत्मस्वरूपनी खबर नथी. भाई! तारो
आत्मा तो ज्ञान छे, ते जडमां शुं करे? शरीरमां रोग थाय त्यां ज्ञान तेने जाणे पण ते
आश्विनः २४८० ः २३१ः