तेने आत्मा रोकी शकतो नथी. आ नजीकना शरीरनुं कार्य पण जीवने आधीन थतुं नथी तो पछी
बीजा परपदार्थोनां काम आत्मा करे ए वात तो क्यां रही? जड–चेतननी एकत्वबुद्धिथी
अज्ञानीने अनादिथी भ्रमणानो रोग लागु पडयो छे. ते भ्रमणानो रोग क्यारे टळे? तेनी आ
वात छे. हुं तो ज्ञानस्वरूप जाणनार छुं, ज्ञान सिवाय बीजुं कोई कार्य मारुं नथी, आ शरीरादि
परपदार्थो ते मारां ज्ञानना ज्ञेयो छे पण तेमना कार्यो मारां नथी, ते पदार्थो माराथी जुदा छे,
मारुं शुद्ध चिदानंदतत्त्व ते मारुं स्वज्ञेय छे ने ते स्वज्ञेयमां ज्ञाननी एकताथी जे वीतरागी निर्मळ
आनंददशा प्रगटी ते मारुं कार्य छे.–आवुं यथार्थ अंर्तभान करतां अनादिनी भ्रमणा छेदाई जाय
छे, ने परना कार्यो हुं करुं–एवुं अभिमान थतुं नथी. आवुं भान करवुं ते अपूर्व धर्मनी शरूआत
छे, ने तेनाथी ज आत्मानी महत्ता छे.
परंतु अंतरस्वभावनी प्रभुतानुं अवलंबन करतां जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप वीतरागी धर्म
प्रगटे तेना वडे आत्मानी महत्ता छे ने तेमां ज आत्मानी शोभा छे. जुओ, जगतमां मोटा
चक्रवर्तीओ ने इन्द्रो पण, महा मुनिराज वगेरे संतोना चरणोमां नमस्कार करे छे; मुनिराज पासे
तो कांई पैसा वगेरेनो संयोग नथी, अने चक्रवर्ती पासे तो धनना ढगला छे, छतां ते चक्रवर्ती
मुनिराजना चरणोमां केम नमे छे?–कारणके मुनिराज पासे आत्माना सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्ररूप धर्मनी अधिकता छे, तेथी चक्रवर्ती पण तेमना चरणोमां वंदन करे छे. आनो अर्थ ए
थयो के पुण्यना फळ करतां धर्मनो महिमा छे, संयोगथी आत्मानी महत्ता नथी पण आत्मामां जे
वीतरागी धर्म प्रगटयो तेनाथी ज आत्मानी महत्ता छे, पुण्य के पुण्यनां फळ आदरणीय के
वंदनीय नथी, परंतु वीतरागी धर्म ज आदरणीय ने वंदनीय छे. एटले जे जीव पुण्यनो के
पुण्यना फळनो आदर न करतां आत्मानो वीतरागी धर्म ज आदरणीय छे–एम समजे तेणे ज
धर्मात्मानो खरो आदर अने नमस्कार कर्या छे, जो पुण्यनो के संयोगनो आदर करे तो तेणे
धर्मात्मानो खरो आदर के नमस्कार कर्या नथी. धर्म अने पुण्य ए बंने चीज जुदी छे–ए वात
पण घणा जीवोना ख्यालमां आवती नथी, ने पुण्यने ज धर्म समजीने तेनो आदर करे छे, एवा
जीवो तो मिथ्याद्रष्टि छे, ने पुण्य करे तो पण तेओ संसारमां ज रखडे छे. जेने अंतरमां संयोगथी
पार चिदानंदस्वभावनुं भान छे–एवा धर्मात्माने मोटा पुण्यवंतो पण नमस्कार करीने आदर करे
छे, माटे पुण्य ते आदरणीय नथी पण आत्मानो वीतरागी धर्म आदरणीय छे.
आत्मा तेनी ममता करे छे, ते ममत्वभाव ज आत्मानो संसार छे, स्व–परनी भिन्नतानुं भान
करीने जेणे परनी ममता छोडीने पोताना चिदानंद स्वभावमां एकता करीने समता प्रगट करी,
तेने संसारनो नाश थईने मोक्षमार्ग प्रगट थाय छे. बहारमां घर–कुटुंब–लक्ष्मी वगेरे छोडीने