Atmadharma magazine - Ank 133
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : ‘आत्मधर्म’ २४८१ : कारतक :
चारित्र प्रगट करीने मुनिपणुं लई लेवुं जोईए–एम हठ न होय, अने गमे तेवो राग थाय तेनो वांधो नथी–
एवो स्वछंद पण न होय, ज्ञायकभावरूप मोक्षमार्गनो उद्यम तेने चाल्या ज करे छे.
[४५] आ समजे तो बधा गोटा नीकळी जाय.
अत्यारे उपादान–निमित्तना ने निश्चय–व्यवहारना घणा गोटा चाले छे, जो आ क्रमबद्धपर्यायनुं स्वरूप
बराबर समजे तो ते बधा गोटा नीकळी जाय तेम छे. ‘द्रव्य पोताना क्रमबद्धपरिणाम पणे ऊपजे छे’ एम कह्युं
तेमां ते ते पर्यायनुं क्षणिक उपादान आवी जाय छे. एकेक समयनी पर्याय पोतपोताना क्षणिक उपादानथी ज
क्रमबद्धपणे–नियमितपणे ऊपजे छे; पोताना परिणामोथी ज एटले के ते समयनी क्षणिक लायकातथी ज ऊपजे
छे, निमित्तथी ऊपजतां नथी. दरेक गुणमां पोतपोताना क्षणिक उपादानथी क्रमबद्धपरिणाम ऊपजे छे, ए रीते
अनंत गुणोना अनंत परिणामो एक समयमां ऊपजे छे, आ जे क्रमबद्धपणुं कहेवामां आवे छे ते
‘उद्धर्वतासामान्य’ अपेक्षाए एटले के काळप्रवाहनी अपेक्षाए कहेवाय छे.
[४६] वज्रभींत जेवो निर्णय.
भाई! तारा ज्ञानने अंतरमां वाळीने एकवार वज्रभींत जेवो यथार्थ निर्णय तो कर. वज्रभींत जेवो
निर्णय कर्या वगर मोक्षमार्ग तरफ तारुं वीर्य ऊपडशे नहि. आ निर्णय करतां तारी प्रतीतमां ज्ञाननी अधिकता
थई जशे ने राग ते ज्ञाननुं ज्ञेय थई जशे आ सिवाय परने हुं करुं ने परने हुं फेरवुं–एवी बुद्धि ते तो
संसारभ्रमणना कारणरूप छे.
[४७] केवळीनी माफक बधाय जीवो ज्ञानस्वरूप छे.
आत्मा ज्ञानस्वभाव छे; ज्ञान कोने फेरवे? जेम केवळीभगवान जगतना ज्ञाता–द्रष्टा ज छे, तेम आ
आत्मा पण ज्ञाता–द्रष्टापणानुं ज कार्य करी रह्यो छे. भगवान पूरुं एक समयमां जाणे छे ने आ जीव अल्प
जाणे छे, एटलो ज फेर छे. पण पोताना ज्ञाताद्रष्टापणानी प्रतीत न करतां, अन्यथा मानीने जीव संसारमां
रखडे छे. ओछुं ने वधारे एवा भेदने गौण करी नाखे तो बधा जीवोमां ज्ञाननो एक ज प्रकार छे, बधा य जीवो
ज्ञानस्वरूप छे ने जाणवानुं ज कार्य करे छे; पण ज्ञानपणे पोतानुं अस्तित्व छे तेने प्रतीतमां न लेतां, ज्ञानना
अस्तित्वमां परनुं अस्तित्व भेगुं भेळवीने पर साथे एकपणुं माने छे, ते ज दुःख अने संसार छे.
[४८] निमित्त ते खरेखर कारक नथी पण अकर्ता छे.
“सर्वज्ञभगवानने तो परिपूर्ण ज्ञान खीली गयुं छे, ते भगवान तो ‘ज्ञापक’ छे माटे ते परमां कांई
फेरफार न करे–ए वात तो बराबर, पण आ जीव तो निमित्तपणे कारक थईने पोतानी ईच्छा प्रमाणे पदार्थोमां
फेरफार–आडुंअवळुं करी शके!”–एम कोई कहे तो ते पण सत्य नथी. ज्ञापक हो के कारक हो, पण पदार्थनी
क्रमबद्धपर्यायने फेरवीने कोई आडी–अवळी करतुं नथी. दरेक द्रव्य पोते ज पोतानुं कारक थईने क्रमबद्धपर्यायपणे
ऊपजे छे, निमित्तरूप बीजुं द्रव्य ते खरेखर कारक नथी पण अकारक छे, अकारकने कारक कहेवुं ते उपचारमात्र
छे; ए ज प्रमाणे निमित्त ते अकर्ता छे, ते अकर्ताने कर्ता कहेवो ते उपचार छे–व्यवहार छे–अभूतार्थ छे.
[४९] ज्ञायकना निर्णयमां ज सर्वज्ञनो निर्णय.
भगवान सर्वना ज्ञायक छे–एवो निर्णय कोणे कर्यो? ज्ञानस्वभावनी सन्मुख थईने पोते ज्ञायक थयो
त्यारे ज भगवानना ज्ञायकपणानो यथार्थ निर्णय थयो.
[५०] पर्यायमां अनन्यपणुं होवाथी, पर्याय पलटतां द्रव्य पण पलटे छे, घंटीना नीचला
पडनी जेम ते सर्वथा कूटस्थ नथी.
अहीं एम कह्युं के क्रमबद्ध परिणामपणे द्रव्य ऊपजे छे– ‘दवियं जं उप्पज्जइ गुणेहिं तं तेहिं जाणसु
अणण्णं’ द्रव्य पोताना जे गुणोथी जे क्रमबद्ध परिणामपणे ऊपजे छे तेमां तेने अनन्य जाण. एटले, एकली
पर्याय ज पलटे छे ने द्रव्य–गुण तो ‘घंटीना नीचला पडनी जेम’ सर्वथा कूटस्थ ज रहे छे–एम नथी. पर्याय
पलटतां ते ते पर्यायपणे द्रव्य–गुण ऊपजे छे. पहेला समयनी पर्यायमां जे द्रव्य–गुण अनन्य हता ते बीजा समये
पलटीने बीजा समयनी पर्यायमां अनन्य छे. पहेला समये पहेली पर्यायनो जे कर्ता हतो ते पलटीने बीजी
पर्यायनो कर्ता थयो छे. ए ज प्रमाणे कर्तानी माफक कर्म, करण, संप्रदान, अपादान ने अधिकरण ए बधा
कारकोमां समये समये पलटो थाय छे. पहेला समये जेवुं कर्तापणुं