कारको जेवा स्वरूपे पहेला समये हता तेवा ज स्वरूपे बीजा समये नथी रह्या; पहेला समये पहेली पर्याय साथे
तद्रूप थईने तेनुं कर्तापणुं हतुं, ने बीजा समये बीजी पर्याय साथे तद्रूप थईने ते बीजी पर्यायनुं कर्तापणुं थयुं.
आम पर्याय अपेक्षाए, नवी नवी पर्यायो साथे तद्रूप थतुं–थतुं आखुं द्रव्य समये समये पलटी रह्युं छे; द्रव्य
अपेक्षाए धु्रवता छे. आ जराक सूक्ष्म वात छे.
अनन्यपणे द्रव्य ऊपजे छे एम कहेतां, पर्याय परिणमतां द्रव्य पण परिणम्युं छे–ए वात सिद्ध थाय छे; केमके
जो द्रव्य सर्वथा न ज परिणमे तो पहेली पर्यायथी छूटीने बीजी पर्याय साथे ते कई रीते तद्रूप थाय? पर्याय
पलटतां जो द्रव्य न पलटे तो ते जुदुं पड्युं रहे! –एटले बीजी पर्याय साथे तेने तद्रूपपणुं थई शके ज नहि.
परंतु एम बनतुं नथी, पर्याय परिणम्ये जाय ने द्रव्य जुदुं रही जाय–एम बनतुं नथी.
पर्याय आवे एम माननारने तो ‘पर्यायमूढ’ कह्यो छे. पर्याय पलटतां तेनी साथे द्रव्य क्षेत्र ने भाव पण
(पर्याय अपेक्षाए) पलटी गयां छे. जो एम न होय तो समय समयनी नवी पर्याय साथे द्रव्यनुं तद्रूपपणुं सिद्ध
थई शके नहि. ‘सर्व द्रव्योने पोतानां परिणामो साथे तादात्म्य छे’–एम कहीने आचार्यदेवे अलौकिक नियम
गोठवी दीधो छे. चिद्दविलासमां पण ए वात लीधी छे.
खबर नथी. ‘जीवतो जीव’ तो पोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे छे, तेने बदले अजीव वगेरे निमित्तने लीधे
जीव ऊपजे एम माने, अथवा तो जीव निमित्त थईने अजीवने ऊपजावे एम माने, तो तेणे जीवना जीवतरने
जाण्युं नथी. जीवनुं जीवतर तो आवुं छे के परना कारणकार्य वगर ज पोते पोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे छे.
जीवतत्त्वने तेणे जाण्युं नथी. कर्तापणुं मानीने क्यांय पण फेरफार करवा गयो त्यां पोते ज्ञातापणे न रह्यो, ने
क्रमबद्धपर्याय ज्ञेयपणे छे तेने पण न मानी; एटले अकर्तासाक्षीस्वरूप ज्ञायक जीवतत्त्व तेनी द्रष्टिमां न रह्युं.
ज्ञायकस्वभाव उपर जेनी द्रष्टि छे ते ज्ञाता छे–अकर्ता छे, अने निर्मळ क्रमबद्धपर्यायपणे ते ऊपजे छे;
ज्ञातास्वभाव उपर जेनी द्रष्टि नथी ने पर साथे निमित्त–नैमित्तिक संबंध उपर ज जेनी द्रष्टि छे तेने ऊंधी
द्रष्टिमां क्रमबद्धपर्याय अशुद्ध थाय छे. आ रीते द्रष्टि फेरववानी आ वात छे, परनी द्रष्टि छोडीने ज्ञायक
स्वभावनी द्रष्टि करवानी आ वात छे; एवी द्रष्टि प्रगट कर्या वगर आ वात यथार्थपणे समजाय तेवी नथी.
प्रवाहक्रममां जे जे पर्यायने ते द्रवे छे ते ते पर्यायनी साथे ते अनन्य छे. जेम मकानना बारीबारणां नियत छे,
नाना मोटां अनेक बारीबारणामां जे ठेकाणे जे बारी के बारणुं गोठववानुं होय ते ज बंध बेसतुं आवे; मोटुं
बारणुं कापीने नाना बारणानी जगाए गोठवी दे तो ते मोटा बारणानी जग्याए शुं मूकशे? मोटा बारणाने
ठेकाणे कांई नानुं बारणुं बंध बेसतुं नहीं आवे त्यां तो सूतार दरेक बारी–