आत्मा ज्ञायकस्वरूप छे ने पदार्थो तेना ज्ञेय छे, ते पदार्थोनी क्रमबद्धपर्यायमां जे पर्यायनुं जे स्थान (–स्वकाळ)
छे ते आघुंपाछुं थतुं नथी. जो एक पण पर्यायना स्थानने (प्रवाहक्रमने) फेरवीने आघुंपाछुं करवा जाय तो कांई
व्यवस्था ज नहि रहे, केम के एक पर्याय फेरवीने बीजे स्थाने मूकी तो बीजा स्थाननी पर्यायने फेरवीने वळी
त्रीजा स्थाने मूकवी पडशे –ए रीते आखुं द्रव्य चूंथाई जशे,–एटले के ते जीवनी द्रष्टिमां द्रव्य खंडखंड थईने
मिथ्यात्व थई जशे, सर्वज्ञता के ज्ञायकपणुं तो सिद्ध ज नहि थाय. ‘हुं ज्ञायक छुं’–ए वातनुं ज्यांसुधी लक्ष न
थाय त्यांसुधी एक पण न्याय साचो समजाय तेम नथी. आत्मा ज्ञायक अने बधा पदार्थो ज्ञेय,–आम ज्ञान अने
ज्ञेय बंने व्यवस्थित छे. जेवा पदार्थो छे तेवुं ज्ञान जाणे छे, ने जेवुं ज्ञान जाणे छे, तेवा ज पदार्थो छे, छतां
कोईने कारणे कोई नथी–आवुं वस्तुस्वरूप छे. आवुं वस्तुस्वरूप जाणीने जे ज्ञाता थयो ते रागनो पण ज्ञाता ज
छे ने ते राग पण तेना ज्ञाननुं ज्ञेय थईने रहे छे. पदार्थोनी व्यवस्थानो ज्ञायक न रहेतां फेरफार करवानुं माने
छे तेने पोताना ज्ञाननो ज विश्वास नथी.
रहेतुं नथी, ज्ञातापणुं ज रहे छे; अने जो अव्यवस्थित कहो तो ज्ञाने जाण्युं शुं? पदार्थोनुं परिणमन
अव्यवस्थित कहेतां ज्ञान ज अव्यवस्थित ठरशे. केम के अव्यवस्थित होय तो केवळीभगवाने जाण्युं शुं? एटले
केवळज्ञान ज सिद्ध नहि थाय अने आत्मानो ज्ञानस्वभाव पण सिद्ध नहि थाय, ज्ञानस्वभावनी ओळखाण
वगर मिथ्यात्व टळे नहि ने धर्मनो अंश पण थाय नहि.
अजीव कोईनुं एवुं स्वरूप नथी के अक्रमे परिणमे. केवळज्ञान चोथा गुणस्थाने थई जाय ने सम्यग्दर्शन तेरमा
गुणस्थाने थाय–एम कदी बनतुं नथी, पहेला केवळज्ञान थई जाय ने पछी मुनिदशा ल्ये एम पण कदी बनतुं
नथी, एवो ज वस्तुना परिणमननो स्वभाव छे. धर्मीने स्वभावद्रष्टिमां ज्ञायकभावनो पुरुषार्थ चालु ज छे,
ज्ञानमां धीरज छे, चारित्रमां अल्पराग थाय छे तेने पण जाणे छे, पण तेने मूंझवण नथी, उतावळ नथी, हठ
नथी, ते तो क्रमबद्ध पोताना ज्ञाताभावपणे ऊपजतो थको तेमां तद्रूप छे.
पर्याय थाय छे ते तेनाथी थाय छे, ते पर्यायपणे ते अजीव पोते ऊपजे छे, जीव तेनुं कारण नथी, ने ते जीवनुं
कार्य नथी. आम अकार्यकारणपणुं जीवमां पण छे, ने अजीवमां पण छे एटले तेमने परस्पर कांईपण
कारणकार्यपणुं नथी; आवुं वस्तुस्वरूप बतावीने अहीं आत्मानो ज्ञायकस्वभाव ओळखाववो छे.
तो सिद्धमां ज छे ने संसारी जीवोने तो पर साथे कार्य–कारणपणुं छे”–ए वात जूठी छे.