Atmadharma magazine - Ank 133
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४८१ ‘आत्मधर्म’ : १५ :
पुद्गलमां ते अवस्था थवानी न हती अने जीवे विकार करीने ते अवस्था ऊपजावी–एम नथी.
पुद्गलकर्ममां उपशम–उदीरणा–संक्रमण–क्षय वगेरे जे अवस्थाओ थाय छे ते अवस्थापणे पुद्गल पोते ज
क्रमबद्धपर्यायथी ऊपजे छे. आम होवा छतां एवो नियम छे के ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टिथी ज्ञाता थईने जीव
ज्यां अकर्तापणे परिणम्यो, त्यां जगतमां एवी क्रमबद्धपर्यायनी लायकातवाळा कोई परमाणु ज नथी के जे
तेने मिथ्यात्वप्रकृतिरूपे बंधाय. मिथ्यात्वप्रकृति साथेनो निमित्तनैमित्तिकसंबंध ज तेने ज्ञायक–द्रष्टिमां छूटी
गयो छे. आ वात आचार्यदेव हवे पछीनी गाथाओमां बहु सरस रीते समजावशे.
[५९] क्रमबद्धपर्याय नहि समजनारनी केटलीक भ्रमणाओ.
अजीवमां ज्ञान नथी एटले तेनी अवस्था तो जेम थवानी होय तेम क्रमबद्ध थया करे, पण जीवनी
अवस्था क्रमबद्ध न होय, ते तो अक्रमे पण थाय–एम कोई माने तो ते वात जूठी छे.
अजीवमां ज्ञान नथी माटे तेनी अवस्था जीव जेवी करवा धारे तेवी थाय एटले तेनी अवस्था
क्रमबद्ध नथी पण अक्रम छे,–पाणी भर्युं होय तेमां जेवो रंग नाखशो तेवा रंगनुं ते थई जशे–एम कोई
माने तो तेनी वात पण जूठी छे.
क्रमबद्धपर्याय छे माटे आपणे कांई पुरुषार्थ न करवो–एम कोई माने तो ते पण अज्ञानी छे,
क्रमबद्धपर्यायने ते समज्यो नथी.
हुं ज्ञायक छुं–एवा स्वभावनो पुरुषार्थ करतां बधा द्रव्योनी क्रमबद्धपर्यायनो पण निर्णय थाय छे, ते
यथार्थ छे. आ तरफ आत्मानो ज्ञायकस्वभाव न माने, तथा बीजी तरफ पदार्थोमां क्रमबद्धपरिणाम न माने,
ने फेरफार करवानुं माने तो ते जीव वस्तु स्वरूपने जाणतो नथी ने पंचपरमेष्ठी भगवंतोने पण खरेखर
मानतो नथी.
[६०] जीवना कारण वगर ज अजीवनी क्रमबद्धपर्याय.
शरीरनी अवस्था पण अजीवथी थाय छे. हुं तेनी अवस्थाने फेरवुं अथवा तो अनुकूळ आहार–
विहारनुं बराबर ध्यान राखीने हुं शरीरने सरखुं राखी दउं–एम जे माने छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. आहारना
एक रजकणने पण फेरववो ते जीवनी क्रिया नथी. ‘दाणे दाणे खानारनुं नाम’ एवी पुराणी कहेवत छे ते
पण शुं सूचवे छे? –के जेना पेटमां जे दाणो आववानो ते ज आववानो; जीव तेनुं ध्यान राखीने शरीरने
साचवी द्ये–एम नथी. जीवना कारण वगर ज अजीव तेनी क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे छे. आत्मानो स्वभाव
पोताना ज्ञायकभावपणे ऊपजवानो छे.
“अरे! आ शरीरनो हाथ जेम ऊंचो नीचो करवो होय तेम आपणे करी शकीए, शुं आपणामां
एटली शक्ति नथी के परमाणुने फेरवी शकीए?” एम अज्ञानीओ दलील करे छे.
ज्ञानी कहे छे के अरे भाई! शुं परमाणुमां एवी शक्ति नथी के ते तेना क्रमबद्धपरिणामथी ऊंचानीचा
थाय? शुं अजीवद्रव्योमां कांई ताकात नथी? भाई! अजीवमां पण एवी ताकात छे के तारा कारणपणा
वगर ज स्वयं ते पोतानी हलन–चलनादि अवस्थारूपे ऊपजे छे, तेनी अवस्थामां ते तद्रूप छे; तेनामां
कांईपण फेरफार करवानी जीवनी शक्ति नथी. जीवमां तेने जाणवानी शक्ति छे. माटे तुं तारा
ज्ञायकस्वभावनो निर्णय कर, ने अजीवना कर्तापणानी बुद्धि छोड.