: १६ : ‘आत्मधर्म’ २४८१ : कारतक :
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प्रवचन त्रीजाुं
[वीर सं. २४८० भादरवा वद १४]
जे समजवाथी आत्मानुं हित थाय एवो उपदेश ते ईष्टोपदेश छे. आ ‘योग्यता’ कहीने समय
समयनी पर्यायनी स्वतंत्रता बतावाय छे ते ज उपदेश ईष्ट छे, आ सिवाय परने लीधे कांई थवानुं
बतावे एटले के पराधीनता बतावे ते उपदेश ईष्ट नथी–हितकारी नथी–प्रिय नथी. समय समयनी
क्रमबद्धपर्याय बतावीने आत्माने पोताना ज्ञायकस्वभाव तरफ लई जाय ते उपदेश ईष्ट छे.
[६१] अधिकारनी स्पष्टता.
आ सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार छे, ‘सर्वविशुद्धज्ञान’ एटले एकलो ज्ञायकभाव. ज्ञायकस्वरूप जीव कर्मनो
कर्ता नथी ए वात अहीं सिद्ध करवी छे. क्रमबद्धपर्यायना वर्णनमां आत्मानो ज्ञायकस्वभाव सिद्ध करीने तेने
अकर्ता बताव्यो छे, आत्मा निमित्त तरीके पण जडकर्मनो कर्ता नथी–एवो तेनो स्वभाव छे.
[६२] क्रमबद्धपर्यायमां शुद्धतानो क्रम क्यारे चालु थाय?
प्रथम तो जीवनी वात करी के जीव पोताना अनंतगुणोना परिणामोथी क्रमबद्ध नियमितपणे ऊपजे छे,
अने ते परिणाममां अनन्यपणे ते जीव ज छे, अजीव नथी. आमां द्रव्य–गुण ने पर्याय त्रणे आवी गया.
पोताना अनादिअनंत परिणामोमां क्रमबद्धपणे ऊपजतो ज्ञायकस्वभावी जीव कोई परना कार्यमां कारण नथी
अने कोई पर तेना कार्यमां कारण नथी; कोईने कारणे कोईनी अवस्थाना क्रममां फेरफार थाय एम बनतुं नथी.
‘हुं ज्ञायक छुं’ एवी स्वभावसन्मुख द्रष्टि थतां धर्मीने क्रमबद्धपर्याय निर्मळपणे परिणमवा लागे छे, परंतु
पर्यायने आघीपाछी फेरववा उपर तेनी द्रष्टि नथी. आ रीते ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टिनो पुरुषार्थ थतां
क्रमबद्धपर्यायमां शुद्धतानो क्रम चालु थई जाय छे.
[६३] अकर्तापणुं सिद्ध करवा क्रमबद्धपर्यायनी वात केम लीधी?
कोईने एम प्रश्न थाय के अहीं तो आत्माने अकर्ता सिद्ध करवो छे, तेमां आ क्रमबद्धपर्यायनी वात केम
लीधी? –तो तेनुं कारण ए छे के जीव ने अजीव बधां द्रव्यो स्वयं पोतपोतानी क्रमबद्धपर्यायथी ऊपजे छे–ए
वात बेठा विना, ‘हुं परने फेरवी दउं’ एवी कर्ताबुद्धि छूटती नथी ने अकर्तापणुं थतुं नथी. हुं ज्ञायकस्वभाव छुं–
ने दरेक वस्तुनी अवस्था क्रमबद्ध थया करे छे तेनो हुं जाणनार छुं पण फेरवनार नथी, आवो निश्चय थतां
कर्ताबुद्धि छूटी जाय छे ने अकर्तापणुं एटले के साक्षीपणुं–ज्ञायकपणुं थई जाय छे. स्वभावथी तो बधा आत्मा
अकर्ता ज छे, परंतु पर्यायमां अकर्तापणुं थई जाय छे तेनी आ वात छे.
[६४] क्रमबद्ध छे तो उपदेश केम?
पर्याय तो क्रमबद्ध ज थाय छे तो शास्त्रमां आटलो बधो उपदेश केम आप्यो–एम कोई पूछे, तो कहे छे के
भाई! ए बधा उपदेशनुं तात्पर्य तो ज्ञायकस्वभावनो निर्णय कराववानुं छे. उपदेशनी वाणी तो वाणीना कारणे
क्रमबद्ध नीकळे छे. आ काळे आवी ज भाषा काढीने हुं बीजाने समजावी दउं–एवी कर्ताबुद्धि ज्ञानीने नथी.
[६५] वस्तुस्वरूपनो एक ज नियम.
सौ द्रव्य पोतपोताना परिणामना कर्ता छे, कोई बीजानी लप तेमां नथी. ‘आवुं निमित्त आवे तो आम
थाय ने बीजुं निमित्त आवे तो बीजी रीते थाय’ एवुं वस्तुस्वरूपमां नथी. वस्तुस्वरूपनो एक ज नियम छे के
दरेक द्रव्य क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजतुं थकुं पोते ज पोतानी पर्यायनुं कर्ता छे, अने बीजाथी ते निरपेक्ष छे. वस्तु
पोते पोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे छे एम न मानतां, बीजो तेमां