: १८ : ‘आत्मधर्म’ २४८१ : कारतक :
प्रायश्चित वगेरेनुं वर्णन करीने वचली भूमिकामां केवा केवा भाव होय छे–तेनुं ज्ञान कराव्युं छे. खरेखर तो
ज्ञाताने ज्ञाननी अधिकतामां ते प्रायश्चित वगेरेनो विकल्प पण ज्ञेयपणे ज छे.
[६९] क्रम–अक्रम संबंधमां अनेकान्त अने सप्तभंगी.
कोई एम कहे छे के “बधी पर्यायो क्रमबद्ध ज छे एम कहेवामां तो एकांत थई जाय छे, माटे केटलीक
पर्यायो क्रमबद्ध छे ने केटलीक अक्रमबद्ध छे–एम अने कान्त कहेवुं जोईए”–तो एम कहेनार मूढने एकान्त–
अनेकान्तनी खबर नथी. बधी पर्यायो क्रमबद्ध ज ‘छे’ ने अक्रमरूप ‘नथी’–एवो अनेकान्त छे; अथवा क्रम–
अक्रमनो अनेकान्त लेवो होय तो आ प्रमाणे छे के बधा गुणो द्रव्यमां एक साथे सहभावीपणे वर्ते छे तेथी ते
अपेक्षाए द्रव्य अक्रमरूप छे, अने पर्याय अपेक्षाए क्रमरूप छे, ए रीते कथंचित् क्रमरूप ने कथंचित् अक्रमरूप
एवो अनेकान्त छे, परंतु केटलीक पर्यायो क्रमरूप ने केटलीक पर्यायो अक्रमरूप एम मानवुं ते तो अनेकान्त नथी
पण मिथ्यात्व छे.
पर्याय अपेक्षाए तो क्रमबद्धपणुं ज छे–ए नियम छे. छतां आमां अनेकान्त अने सप्तभंगी आवी जाय
छे. गुणो अपेक्षाए अक्रमपणुं ने पर्यायो अपेक्षाए क्रमपणुं–एवुं अनेकान्त स्वरूप छे ते उपर कहेवाई गयुं छे.
तथा वस्तुमां (१) स्यात् क्रमपणुं, (२) स्यात् अक्रमपणुं, (३) स्यात् क्रम–अक्रमपणुं, (४) स्यात्
अवक्तव्यपणुं, (प) स्यात् क्रमअवक्तव्यपणुं (६) स्यात् अक्रम–अवक्तव्यपणुं, अने (७) स्यात् क्रम–
अक्रमअवक्तव्यपणुं–ए प्रमाणे क्रम–अक्रम संबंधमां सप्तभंगी पण उतरे छे, कई रीते? ते कहेवाय छे–
(१) पर्यायो एक पछी एक क्रमबद्ध थाय छे तेथी पर्यायोनी अपेक्षाए कहेतां वस्तु क्रमरूप छे.
(२) गुणो बधा एकसाथे सहभावी छे तेथी गुणोनी अपेक्षाए कहेतां वस्तु अक्रमरूप छे.
(३) पर्यायो तथा गुणो–ए बंनेनी अपेक्षा (एकसाथे) लईने कहेतां वस्तु क्रम–अक्रमरूप छे.
(४) एक साथे बंने कही शकता नथी ते अपेक्षाए वस्तु अवक्तव्य छे.
(५) वस्तुमां क्रमपणुं ने अक्रमपणुं बंने एक साथे होवा छतां, क्रमरूप कहेती वखते अक्रमपणानुं कथन
बाकी रही जाय छे, ते अपेक्षाए वस्तु क्रम–अवक्तव्यरूप छे.
(६) ए ज प्रमाणे अक्रमरूप कहेतां क्रमपणानुं कथन बाकी रही जाय छे, ते अपेक्षाए वस्तु अक्रम–
अवक्तव्यरूप छे.
(७) क्रमपणुं तथा अक्रमपणुं बंने अनुक्रमे कही शकाय छे पण एक साथे कही शकाता नथी, ते अपेक्षाए
वस्तु क्रम–अक्रम–अवक्तव्यरूप छे.
–ए प्रमाणे क्रम–अक्रम संबंधमां सप्तभंगी समजवी.
[७०] अनेकान्त क्यां अने कई रीते लागु पडे? (सिद्धनुं द्रष्टांत)
यथार्थ वस्तुस्थिति शुं छे ते समज्या वगर घणा लोको अनेकान्तना नामे के स्याद्वादना नामे गपगोळा
चलावे छे. जेम अस्ति–नास्तिमां वस्तु स्वपणे अस्तिरूपे छे ने परपणे नास्तिरूप छे–एवो अनेकान्त छे; पण–
वस्तु स्वपणे अस्तिरूप छे ने परपणे पण अस्तिरूप छे एवो अनेकान्त नथी, ते तो एकांतरूप मिथ्यात्व छे.
तेम अहीं क्रम–अक्रममां पण समजवुं. पर्यायो क्रमबद्ध छे ने गुणो अक्रम छे–एम अनेकान्त छे, पण पर्यायो
क्रमबद्ध छे ने पर्यायो अक्रम पण छे–एम मानवुं ते कांई अनेकान्त नथी, ते तो मिथ्याद्रष्टिनो एकांत छे. पर्यायो
तो क्रमबद्ध ज छे ने अक्रम नथी एवो अनेकांत छे. पर्यायमां अक्रमपणुं तो छे ज नहि, तेथी तेमां ‘कथंचित् क्रम
ने कथंचित् अक्रम’ एवो अनेकान्त लागु न पडे. वस्तुमां जे धर्मो होय तेमां सप्तभंगी लागु पडे पण वस्तुमां जे
धर्मो होय ज नहि तेमां सप्तभंगी लागु न पडे.
‘सिद्ध भगवंतो एकांत सुखी ज छे’ एम कहेतां कोई अज्ञानी पूछे के सिद्ध भगवानने एकांत सुख ज
केम कहो छो? कथंचित् सुख ने कथंचित् दुःख एम अनेकांत कहोने? तेनुं समाधान : भाई, सिद्ध भगवानने जे
सुख प्रगट्युं ते एकांत सुख ज छे, तेमां दुःख जरापण छे ज नहि, तेथी तेमां सुख–दुःखनो तें कह्यो तेवो
अनेकान्त लागु न पडे; सिद्ध भगवानने शक्तिमां के व्यक्तिमां कोई रीते दुःख नथी तेथी त्यां सुख–दुःखनो
एवो अनेकान्त के सप्तभंगी लागु न पडे; पण सिद्ध