: कारतक : २४८१ ‘आत्मधर्म’ : १९ :
भगवानने एकांत सुख ज छे ने दुःख जरापण नथी–एम अनेकान्त लागु पडे. (जुओ, पंचाध्यायी गाथा
३३३–४–५) तेम अहीं पर्यायमां क्रमबद्धपणुं छे ने अक्रमपणुं नथी–एवो अनेकान्त लागु पडे, पण पर्यायमां
क्रमपणुं छे ने पर्यायमां अक्रमपणुं पण छे–एवो अनेकान्त नथी; केमके पर्यायमां अक्रमपणुं नथी. पर्यायथी
क्रमरूप ने पर्यायथी ज अक्रमरूप एवुं क्रम–अक्रमरूप जीवनुं स्वरूप नथी, पण पर्यायथी क्रमवर्तीपणुं ने गुणथी
अक्रमपणुं–एवुं क्रम–अक्रमरूप जीवनुं स्वरूप छे.
[७१] ट्रेईनना द्रष्टांते शंका अने तेनुं समाधान.
प्रश्न:– एक माणस ट्रेईनना डबामां बेठो छे, ने ट्रेईन पूर्व दिशा तरफ जाय छे, त्यां ट्रेईन चालतां
माणसनुं पण पूर्व दिशा तरफ जे गमन थाय छे ते तो क्रमबद्ध छे, पण ते माणस डबामां ऊभो थईने पश्चिम
तरफ जाय तो ते गमननी अवस्था अक्रमरूप थईने?
उत्तर:– अरे भाई! तने हजी क्रमबद्धपर्यायनी खबर नथी. पर्यायनुं क्रमबद्धपणुं कहेवाय छे ते तो ऊर्ध्व
प्रवाह अपेक्षाए (–काळप्रवाह अपेक्षाए) छे, क्षेत्र अपेक्षाए नहि. ते माणस पहेला पूर्वमां चाले ने पछी
पश्चिममां चाले तेथी कांई तेनी पर्यायना काळनो क्रम तूटी गयो नथी. ट्रेईन पूर्वमां जती होय ने तेमां बेठेलो
माणस डबामां पश्चिम तरफ चालतो होय, तेथी कांई तेनी ते पर्याय अक्रमपणे नथी थई. अरे! ट्रेईन पूर्वमां
जती होय ने आखी ट्रेईन पाछी चालीने पश्चिममां जाय, तो ते पण क्रमबद्ध ज छे. पर्यायोनुं क्रमबद्धपणुं द्रव्यना
ऊर्ध्वप्रवाह क्रमनी अपेक्षाए छे. आ क्रमबद्धपर्यायनी वात घणा जीवोए तो हजी यथार्थपणे सांभळी पण नथी.
क्रमबद्धपणुं शुं छे अने कई रीते छे, तथा तेनो निर्णय करनारनुं ध्येय क्यां जाय छे–ते वात लक्षमां लईने समजे
पण नहि, तो तेनी प्रतीत क्यांथी थाय? वस्तुमां अनंत गुणो छे ते बधा एक साथे–पथरायेला–तिर्यक्प्रचयरूप
छे तेथी ते अक्रमरूप छे, अने पर्यायो एक पछी एक–व्यतिरेकरूप–ऊर्ध्वप्रचयरूप छे तेथी ते क्रमरूप छे.
[७२] क्रमबद्धपर्यायनो ज्ञाता कोण?
जुओ, क्रमबद्धपर्याय तो जीव तेम ज अजीव बधा द्रव्योमां छे; परंतु आ वात कांई अजीवने नथी
समजावता, आ वात तो जीवने समजावे छे केम के जीव ज ज्ञाता छे. ज्ञाताने पोताना ज्ञायकस्वभावनुं भान
थतां ते क्रमबद्ध–पर्यायनो पण ज्ञाता थई जाय छे.
[७३] भाषानो उत्पादक जीव नथी.
पांचे अजीव द्रव्यो पण पोतपोताना गुणोथी पोताना क्रमबद्ध नियमित परिणामपणे ऊपजता थका
अजीव ज छे, जीव नथी. अजीवद्रव्यो–तेनो एकेक परमाणु पण–पोते पोताना छ कारकरूपे थईने पोतानी
क्रमबद्धपर्यायपणे स्वयं ऊपजे छे; ते कोई बीजाना कर्ता नथी, तेमज बीजानुं कार्य थईने तेने पोतानुं कर्ता
बनावे एम पण नथी. भाषा बोलाय ते अजीवनी क्रमबद्धपर्याय छे, ने ते पर्यायपणे अजीवद्रव्य ऊपजे छे,
जीव तेने उपजावतो नथी.
प्रश्न:– केवळीभगवाननी दिव्यवाणी तो ईच्छा वगर सहजपणे नीकळे छे तेथी ते क्रमबद्धपर्याय छे अने
तेने तो जीव उपजावतो नथी–एम भले कहो, परंतु छद्मस्थनी वाणी तो ईच्छापूर्वक छे तेथी छद्मस्थ तो पोतानी
ईच्छा मुजब भाषाने परिणमावे छे ने?
उत्तर:– भाई, एम नथी. केवळीभगवानने के छद्मस्थने जे वाणी नीकळे छे ते तो अजीवना पोताना
तेवा क्रमबद्ध परिणामोथी ज नीकळे छे, जीवने लीधे नहि. छद्मस्थने ते काळे ईच्छा होय, पण ते ईच्छाए
वाणीने उपजावी नथी. अने ईच्छा छे ते पण ज्ञातानुं ज्ञेय छे, ज्ञाननी अधिकतामां धर्मी जीव ते ईच्छानो पण
ज्ञायक ज छे.
[७४] ज्ञायकने ज जाणवानी मुख्यता.
खरेखर तो, ईच्छाने जाणवी ते पण व्यवहार छे, ज्ञानने अंतरमां वाळीने ज्ञायकने जाणवो ते परमार्थ
छे. क्रमबद्धपर्यायना निर्णयमां रागने जाणवानी मुख्यता नथी पण ज्ञायकने जाणवानी मुख्यता छे. ज्ञानमां
ज्ञायकनी मुख्यता थई त्यारे रागने तेनुं व्यवहार ज्ञेय कह्युं; ज्ञाता जाग्यो त्यारे रागने रागरूपे जाण्यो अने
त्यारे ज रागने व्यवहार कहेवायो. आ रीते निश्चयपूर्वक ज व्यवहार होय छे, केम के ज्ञान अने राग बंने एक
साथे ऊपजे छे, पहेलो रागरूप व्यवहार ने पछी निश्चय–एम नथी. जो रागने अर्थात् व्यवहारने पहेलो कहो
तो ज्ञान वगर