: २२ : ‘आत्मधर्म’ २४८१ : कारतक :
ऊपजवुं अने जाणवुं बंने क्रिया एक साथे छे, ज्ञानमां ते बंने क्रिया एक साथे होवामां कांई विरोध नथी.
“आत्मा पोते पोताने कई रीते जाणे–ए बाबतमां प्रवचनसारनी ३६मी गाथामां आचार्यदेवे शंका–समाधान कर्युं
छे. एक पर्यायमांथी बीजु पर्यायनी उत्पत्ति थवामां विरोध छे, पण ज्ञानपर्याय पोते ऊपजे अने ते ज वखते ते
स्वने जाणे–एवी बंने क्रिया एक साथे होवामां कांई विरोध नथी, केम के ज्ञाननो स्वभाव ज स्व–परने
प्रकाशवानो छे. ज्ञान पोते पोताने नथी जाणतुं–एम माननारे खरेखर ज्ञानने ज मान्युं नथी. अहीं तो कहे छे के
ज्ञानी पोते पोताने जाणतो थको क्रमबद्ध ज्ञायकभावपणे ज ऊपजे छे. आ वात बराबर समजवा जेवी छे.
[८२] लोकोत्तर द्रष्टिनी वात समजवा माटे ज्ञाननी एकाग्रता.
कोलेजना मोटा प्रोफेसरोना भाषण करतां पण आ तो जुदी जातनी वात छे; त्यां तो समजवा माटे ध्यान
राखे तो पण जेटलो पूर्वनो उघाड होय ते प्रमाणे ज समजाय; अने समजे तो पण तेमां तो आत्मानुं कांई
कल्याण नथी. अने आ तो लोकोत्तरद्रष्टिनी वात छे, आमां ध्यान राखीने समजवा माटे ज्ञानने एकाग्र करे तो
वर्तमानमां पण नवो नवो उघाड थतो जाय, ने अंतरमां एकाग्र थईने समजे तेनुं तो अपूर्व कल्याण थई जाय.
[८३] समकीति निर्मळ क्रमबद्धपर्यायपणे ज ऊपजे छे.
जीव पोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजतां, तेना अनंत गुणो एक साथे परिणमे छे;
ज्ञायकस्वभावसन्मुख झुकाव थयो त्यां श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र वगेरे बधा गुणोना परिणमनमां निर्मळताना
अंशनी शरूआत थई जाय छे, पछी भले तेमां ओछो–वधतो अंश व्यक्त होय; चोथा गुणस्थाने ज्ञायकश्रद्धा थई
जाय छतां ज्ञान–चारित्र पूरां थई जतां नथी परंतु तेनो अंश तो प्रगट थई जाय छे. आ रीते समकीतिने
निर्मळपर्यायपणे ऊपजवानी ज मुख्यता छे, अस्थिरताना जे रागादिभावो थाय छे ते तेनी द्रष्टिमां गौण छे,
अभूतार्थ छे. ज्ञायकभाव उपर द्रष्टि राखीने समकीति निर्मळक्रमबद्धपर्यायपणे ज ऊपजे छे, रागादिपणे ते
खरेखर ऊपजतो ज नथी.
[८४] क्रमबद्धपरिणाममां छ छ कारक.
आचार्यदेव कहे छे के ‘जीव पोताना क्रमबद्धपरिणामे ऊपजतो थको जीव ज छे, अजीव नथी;’ तेमां छए
कारक लागु पडे छे, ते आ प्रमाणे–
१ जीव पोते पोतानी पर्यायना कर्तापणे ऊपजतो थको जीव ज छे, अजीवनो कर्ता नथी.
२ जीवे पोते पोताना कर्मपणे ऊपजतो थको जीव ज छे, अजीवनुं कर्म नथी.
३ जीव पोते पोताना करणपणे ऊपजतो थको जीव ज छे, अजीवनुं करण नथी.
४ जीव पोते पोताना संप्रदानपणे ऊपजतो थको जीव ज छे, अजीवनुं संप्रदान नथी.
५ जीव पोते पोताना अपादानपणे ऊपजतो थको जीव ज छे, अजीवनुं अपादान नथी.
६ जीव पोते पोताना अधिकरणपणे ऊपजतो थको जीव ज छे, अजीवनुं अधिकरण नथी.
वळी ए प्रमाणे बीजा छ कारको पण नीचे मुजब समजवा–
१ जीव पोतानी पर्यायपणे ऊपजतो थको, अजीवने पोतानो कर्ता बनावतो नथी.
२ जीव पोतानी पर्यायपणे ऊपजतो थको, अजीवने पोतानुं कर्म बनावतो नथी.
३ जीव पोतानी पर्यायपणे ऊपजतो थको, अजीवने पोतानुं करण बनावतो नथी.
४ जीव पोतानी पर्यायपणे ऊपजतो थको, अजीवने पोतानुं संप्रदान बनावतो नथी.
५ जीव पोतानी पर्यायपणे ऊपजतो थको, अजीवने पोतानुं अपादान बनावतो नथी.
६ जीव पोतानी पर्यायपणे ऊपजतो थको, अजीवने पोतानुं अधिकरण बनावतो नथी.
तेमज, अजीव पण पोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजतुं थकुं अजीव ज छे, जीव नथी. –तेमां पण उपर
मुजब छ–छ कारको समजी लेवा.
ए रीते, जीव–अजीवने परस्पर अकार्यकारणपणुं छे.
[८५] –आ वात कोने बेसे?
जुओ आ भेदज्ञान! आवी स्पष्ट वात होवा छतां,