Atmadharma magazine - Ank 133
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४८१ ‘आत्मधर्म’ : २३ :
आ वातने ‘रोगचाळो, एकांत’ वगेरे कहीने केटलाक विरोध करे छे, केम के पोतानी मानेली ऊंधी वातनो
आग्रह तेमने छूटतो नथी. अरे! ऊंधी मान्यताने साची मानी बेठा छे तो तेने केम छोडे? पं. टोडरमलजी पण
मोक्षमार्ग–प्रकाशकमां कहे छे के अन्यथा श्रद्धाने सत्य श्रद्धा मानतो जीव तेना नाशनो उपाय पण शा माटे करे?
आ तो जेने मान अने आग्रह मूकीने आत्मानुं हित करवुं होय–एवा जीवने बेसे तेवी वात छे.
[८६] ‘करे छतां अकर्ता’–एम नथी.
अहीं जे वात कहेवाय छे तेना उपरथी केटलाक लोको समज्या वगर एम कहे छे के “ज्ञानी परनां काम
करे छे खरो परंतु ते अकर्ता छे.”–पण ए वात जूठी छे. ‘अकर्ता’ ने वळी पाछो ‘करे’ ए वात क्यांथी लाव्यो?
अहीं तो एम कहेवाय छे के–ज्ञानी के अज्ञानी कोई परना कर्ता नथी, परनां काम कोई करी शकतो ज नथी. दरेक
द्रव्य पोते ज पोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे छे, तेमां बीजानुं कर्तापणुं छे ज नहि. कर्तापणुं जोनार पोताना
ज्ञानस्वभावथी भ्रष्ट थईने जुए छे एटले ऊंधुंं देखे छे; ज्ञायक रहीने देखे तो कर्तापणुं न माने. वस्तुस्वरूप तो
जेम छे तेम ज रहे छे, अज्ञानी ऊंधुंं माने तेथी कांई वस्तुस्वरूप अन्यथा थई जतुं नथी.
[८७] जो कुंभार घडाने करे तो............
जीव ने अजीव बधांय द्रव्यो पोतपोतानी पर्यायपणे स्वयं ऊपजे छे. अजीवनो एकेक परमाणु पण तेनी
क्रमबद्ध अवस्थापणे स्वयं ऊपजे छे; तेनी वर्ण–गंध वगेरे रूप अर्थपर्याय पण क्रमबद्ध तेनाथी छे, ने घडो
वगेरेना आकाररूप व्यंजनपर्याय पण क्रमबद्ध तेनाथी ज छे. माटी घडारूपे ऊपजी त्यां तेनी व्यंजनपर्याय
(आकार) कुंभारे करी–एम नथी. घडापणे माटी पोते ऊपजी छे ने माटी ज तेमां व्यापी छे, कुंभार नहीं, माटे
कुंभार तेनो कर्ता नथी. ‘निमित्त विना न थाय’–ए वातनुं अहीं काम नथी. अहीं तो कहे छे के दरेक द्रव्य
पोताना परिणाम साथे तद्रूप–तन्मय छे. जीव जो अजीयवनी अवस्थाने करे (–जेम के कुंभार घडाने करे) तो
अजीवनी अवस्था साथे तद्रूपपणुं थतां ते पोते पण अजीव बनी जशे! जो निमित्त प्रमाणे कार्य थतुं होय तो
अजीवना निमित्ते आत्मा पण अजीव थई जशे, ईत्यादि अनेक दोष आवी पडशे.
[८८] ‘योग्यता’ क्यारे मानी कहेवाय?
प्रश्न:– एक प्यालामां पाणी भर्युं छे, पासे अनेक जातना लाल–लीला रंग पड्या छे, तेमांथी जेवो रंग
लईने पाणीमां नांखशो तेवा रंगनुं पाणी थई जशे. तेनामां योग्यता तो बधी जातनी छे, पण जे रंगनुं निमित्त
आपशो ते ज रंगनुं ते थशे. माटे निमित्त प्रमाणे कार्य थाय छे! भले थाय छे तेनी योग्यताथी, पण जेवुं
निमित्त आवे तेवुं थाय!
उत्तर:– अरे भाई! तारी बधी वात ऊंधी छे. योग्यता कहेवी, ने वळी निमित्त आवे तेवुं थाय–एम
कहेवुं, ए वात विरुद्ध छे. निमित्त आवे तेवुं थाय एम माननारे ‘योग्यता’ मानी ज नथी एटले के वस्तुना
स्वभावने मान्यो ज नथी. पाणीना परमाणुओमां जे समये जेवी लीला के लाल रंगरूपे थवानी योग्यता छे ते
ज रंगरूपे ते परमाणुओ स्वयं ऊपजे छे, बीजो निमित्त लावी शके के तेमां फेरफार करी शके–एम नथी. अरे!
रंगना परमाणु जुदा ने पाणीना परमाणु पण जुदा, एटले रंगनुं निमित्त आव्युं माटे पाणीना परमाणुओनो
रंग बदल्यो एम पण नथी, पाणीना परमाणुओ ज स्वयं पोतानी तेवी रंग अवस्थापणे परिणम्या छे.
लोटना परमाणुओमांथी रोटलीनी अवस्था होशीयार बाईए बनावी–एम नथी, पण स्वयं ते
परमाणुओ ज ते अवस्थारूपे ऊपज्या छे.–ए वात पण उपरना द्रष्टांत प्रमाणे समजी लेवी.
स्कंधमां रहेलो दरेक परमाणु स्वतंत्रपणे पोतानी क्रमबद्धयोग्यताथी परिणमे छे; स्कंधना बीजा
परमाणुओने लीधे ते स्थूळरूपे परिणम्यो एम नथी पण तेनामां ज स्थूळरूपे परिणमवानी स्वतंत्र लायकात
थई छे. जुओ, एक परमाणु छूटो होय त्यारे तेनामां स्थूळपरिणमन न थाय, पण स्थूळस्कंधमां भळे त्यारे
तेनामां स्थूळ परिणमन थाय छे, तो तेना परिणमनमां एटलो फेरफार थयो के नहि?–हा फेरफार तो थयो छे,
पण ते कोना कारणे? के पोतानी ज क्रमबद्ध अवस्थाना कारणे, परने कारणे नहि. एक छूटो परमाणु स्थूळ
स्कंधमां भळ्‌यो, त्यां जेवो छूटो हतो तेवो ज स्कंधमां ते नथी रह्यो पण सूक्ष्ममांथी स्थूळस्वभावरूपे तेनुं
परिणमन थयुं छे. तेनामां सर्वथा फेरफार नथी थयो–एम पण नथी अने परने कारणे फेरफार