थयुं छे. जेम एक छूटा परमाणुमां स्थूळतारूप परिणमन नथी थतुं, तेम स्थूळस्कंधमां पण जो तेनुं स्थूळ
परिणमन न थतुं होय तो आ शरीरादि नोकर्म वगेरे कांई सिद्ध ज नहि थाय. छूटो परमाणु स्थूळ स्कंधमां
भळतां तेनामां स्थूळतारूप परिणमन तो थाय छे पण ते परने लीधे थतुं नथी, तेनी पोतानी योग्यताथी ज
थाय छे.
तो पोतानो जे ऊंधो भाव छे ते ज अभाग्य छे. आत्माना ज्ञायकस्वभाव तरफ झूकीने जेणे क्रमबद्धपर्यायनो
निर्णय कर्यो तेने एवुं अभाग्य होय ज नहि एटले के कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्रनुं सेवन तेने होय ज नहीं.
अवस्थापणे परिणम्या छे. पोताना आत्माने स्वाधीनद्रष्टिथी ज्ञायकभावे परिणमतो जोनार जगतना बधा
पदार्थोने पण स्वाधीन परिणमता जुए छे; तेथी ते ज्ञाता ज छे, अकर्ता ज छे. आत्मा तो अजीवना कार्यने न
करे, परंतु एक स्कंधमां रहेला अनेक परमाणुओमां पण एक परमाणु बीजा परमाणुनुं कार्य न करे. आवी
स्वतंत्रता छे.
तो पछी पर्यायना क्रमबद्धपणानो नियम क्यां रह्यो?
पड्या, तेथी पर्यायमां नवा संस्कार कह्या. तोपण त्यां क्रमबद्धपर्यायनो नियम तूटयो नथी. शुं सर्वज्ञभगवाने
तेम नहोतुं जोयुं ने थयुं? अथवा शुं क्रमबद्धपर्यायमां तेम नहोतुं ने थयुं?–एम नथी. पोते पोताना
ज्ञायकस्वभाव सन्मुखना पुरुषार्थ वडे निर्मळपर्यायपणे ऊपज्यो त्यां, केवळी भगवाने क्रमबद्धपर्यायमां जे
निर्मळ पर्याय थवानुं जोयुं हतुं ते ज पर्याय आवीने ऊभी रही. आ रीते, ज्ञायकस्वभावनो पुरुषार्थ करनारने
पर्यायमां मिथ्यात्व टळीने सम्यग्दर्शनना अपूर्व नवा संस्कार पड्या वगर रहे नहि, अने क्रमबद्धपर्यायनो क्रम
पण तूटे नहि.–आवो मेळ ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टि वगर समजाशे नहि.
नथी, परथी भिन्नता जाण्या विना, अंतरमां ज्ञान अने रागनी भिन्नता तेना ख्यालमां आवी शकशे नहि.
अहीं तो एवी वात छे के जे पोताना ज्ञानस्वभाव तरफ वळ्यो ते क्रमबद्धपर्यायनो ज्ञाता छे, रागने पण ते
ज्ञानथी भिन्न ज्ञेय तरीके जाणे छे. आवो ज्ञाता रागादिनो अकर्ता ज छे.