
क्यां रही? प्रभाव पडवानुं कहेवुं ते तो फक्त उपचार छे. जो परना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी पोतानी पर्याय
थवानुं माने तो, पोताना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी पोते नथी–एम थई जाय छे एटले पोतानी नास्ति थई जाय
छे. ए ज प्रमाणे पोते निमित्त थईने परनी अवस्थाने करे तो सामी वस्तुनी नास्ति थई जाय छे. तेमज, कोई
द्रव्य परनुं कार्य करे तो ते द्रव्य पररूपे छे–एम थई गयुं एटले पोते पोतापणे न रह्युं. जीवना स्वकाळमां जीव
छे ने अजीवना स्वकाळमां अजीव छे; कोई कोईना कर्ता नथी.
झट ते बच्चांओना गळामां ऊतरी जाय छे.–माटे जुओ, निमित्तनुं केवुं सामर्थ्य छे! –एम कहे छे, पण भाई
रे! दूधनो एकेक रजकण तेना स्वतंत्र क्रमबद्धस्वभावथी ज परिणमी रह्यो छे. ए ज प्रमाणे “हळदर ने खारो
भेगो थतां लाल रंग थयो, माटे त्यां एकबीजा उपर प्रभाव पडीने नवी अवस्था थई के नहि?”–एम पण
कोई कहे छे, पण ते वात साची नथी. हळदर अने खाराना रजकणो भेगा थया ज नथी, ते बंनेना दरेक रजकण
स्वतंत्रपणे पोतपोताना क्रमबद्धपरिणामथी ज तेवी अवस्थारूपे ऊपज्या छे, कोई बीजाने कारणे ते अवस्था
नथी थई. जेम हारमां अनेक मोती गूंथायेला छे, तेम द्रव्यमां अनादि अनंत पर्यायोनी हारमाळा छे, तेमां दरेक
पर्यायरूपी मोती क्रमसर गोठवायेलुं छे.
कदी काट नथी लागतो तेम आ मूळभूत नियम कदी फरतो नथी. जेम कंकण वगेरे पर्यायोरूपे ऊपजता सुवर्णने
पोताना कंकण आदि परिणामो साथे तादात्म्य छे, तेम सर्व द्रव्योने पोतानां परिणामो साथे तादात्म्य छे.
सोनामां बंगडी वगेरे जे अवस्था थई, ते अवस्थारूपे सोनुं पोते ऊपज्युं छे, सोनी नहि; जो सोनी ते अवस्था
करतो होय तो तेमां ते तद्रूप होवो जोईए. परंतु सोनी अने हथोडी तो एक कोर जुदा रहेवा छतां ते कंकण
पर्याय तो रहे छे, माटे सोनी के हथोडी तेमां तद्रूप नथी, सोनुं ज पोतानी कंकण आदि पर्यायमां तद्रूप छे. ए
प्रमाणे बधाय द्रव्योने पोतपोताना परिणाम साथे ज तादात्म्य छे, पर साथे नहि.
परंतु अत्यारे सुतार के करवत निमित्तपणे न होवा छतां पण ते परमाणुओमां टेबल पर्याय तो वर्ते छे; माटे
नक्की थाय छे के ते सुतारनुं के करवतनुं कार्य नथी. आ प्रमाणे दरेक वस्तुने पोतानी क्रमबद्ध ऊपजती पर्याय साथे
ज तादात्म्यपणुं छे, परंतु जोडे संयोगरूपे रहेली बीजी चीज साथे तेने तादात्म्यपणुं नथी. आम होवाथी जीवने
अजीवनी साथे कार्य–कारणपणुं नथी, तेथी जीव अकर्ता छे–ए वात आचार्यदेव युक्तिपूर्वक सिद्ध करशे.