Atmadharma magazine - Ank 133
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : ‘आत्मधर्म’ २४८१ : कारतक :
पोतपोतानी क्रमबद्ध योग्यताथी ज कार्य थाय छे, परथी तेमां कांई पण थतुं नथी. वस्तु पोतानी
क्रमबद्धपर्यायपणे पोतानी योग्यताथी ज स्वयं परिणमी जाय छे, बीजी चीज तो धर्मास्तिकायवत् निमित्तमात्र
छे. अहीं धर्मास्तिकायनो दाखलो आपीने पूज्यपादस्वामीए निमित्तनुं स्वरूप एकदम स्पष्ट करी दीधुं छे.
धर्मास्तिकाय तो आखा लोकमां सदाय एम ने एम स्थित छे; जे जीव के पुद्गलो स्वयं पोतानी
योग्यताथी ज गति करे छे तेमने ते निमित्तमात्र छे. गतिरूपे ‘स्वयं परिणमताने’ ज निमित्त छे, स्वयं नहि
परिणमताने ते परिणमावतुं नथी, तेम ज निमित्त पण थतुं नथी.
“योग्यता वखते निमित्त न होय तो?”–एम शंका करनार खरेखर योग्यताने के निमित्तना स्वरूपने
जाणतो नथी. जेम कोई पूछे के “जीव–पुद्गलमां गति करवानी योग्यता तो छे, पण धर्मास्तिकाय न होय
तो?”–तो एम पूछनार खरेखर जीव–पुद्गलनी योग्यताने के धर्मास्तिकायने जाणतो नथी. केम के गति वखते
सदाय धर्मास्तिकाय निमित्तपणे होय ज छे, जगतमां धर्मास्तिकाय न होय एम कदी बनतुं ज नथी.
‘योग्यता वखते निमित्त न होय तो?’
‘गतिनी योग्यता वखते धर्मास्तिकाय न होय तो?’
‘पाणी ऊनुं थवानी योग्यता वखते अग्नि न होय तो?’
‘माटीमां घडो थवानी योग्यता वखते कुंभार न होय तो?’
‘जीवमां मोक्ष थवानी योग्यता होय पण वज्रर्षभनाराचसंहनन न होय तो?’
–ए बधा प्रश्नो एक ज जातना–निमित्ताधीन द्रष्टिवाळाना –छे. ए ज प्रमाणे गुरु–शिष्य, क्षायक
सम्यक्त्व अने केवळी–श्रुतकेवळी, वगेरे बधामां समजी लेवुं. जगतमां जीव के अजीव दरेक द्रव्य पोतपोताना
नियमित स्वकाळनी योग्यताथी ज परिणमे छे, ते वखते बीजी चीज निमित्तपणे होय ते ‘गतेः
धर्मास्तिकायवत्’ छे. कोई पण कार्य थवामां वस्तुनी ‘योग्ता ही’ निश्चय कारण छे, बीजुं कारण कहेवुं ते
‘गतिमां धर्मास्तिकायवत्’ उपचारमात्र छे, एटले के खरेखर ते कारण नथी. पोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे वस्तु
पोते ज ऊपजे छे–ए नियम समजे तो निमित्ताधीन द्रष्टिना बधा गोटा नीकळी जाय. वस्तु एक समयमां
उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वरूप छे. एक समयमां पोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे, ते ज समये पूर्व पर्यायथी व्यय
पामे, ने ते ज समये सळंगतापणे धु्रव टकी रहे–एम उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वरूप वस्तु पोते वर्ते छे, एक वस्तुना
उत्पाद–व्यय–धु्रवमां वच्चे कोई बीजुं द्रव्य घूसी जाय–एम बनतुं नथी.
जेम, खरेखर मोक्षमार्ग तो एक ज छे, पण तेनुं निरूपण बे प्रकारथी छे; निश्चयरत्नत्रयने मोक्षमार्ग
कहेवो ते तो खरेखर मोक्षमार्ग छे, अने व्यवहाररत्नत्रयना रागने मोक्षमार्ग कहेवो ते खरेखर मोक्षमार्ग नथी,
पण उपचारमात्र छे;
तेम, कार्यनुं कारण खरेखर एक ज छे. वस्तुनी योग्यता ते ज खरुं कारण छे, अने निमित्तने बीजुं
कारण कहेवुं ते खरुं कारण नथी पण उपचारमात्र छे;
ए ज प्रमाणे, कार्यनो कर्ता पण एक ज छे, बे कर्ता नथी. बीजाने कर्ता कहेवो ते उपचारमात्र छे.
[११५] दरेक द्रव्यनुं स्वतंत्र परिणमन जाण्या विना भेदज्ञान थाय नहि.
अहीं कहे छे के द्रव्य ऊपजतुं थकुं पोताना परिणामथी अनन्य छे, एटले ते परिणामना कर्ता बे न होय.
एक द्रव्यना परिणाममां बीजुं द्रव्य तन्मय न थाय, माटे बे कर्ता न होय; तेम ज एक द्रव्य बे परिणाममां
(पोताना ने परना बंनेना परिणाममां) तन्मय न थाय, माटे एक द्रव्य बे परिणामने न करे. नाटक–
समयसारमां पं. बनारसीदासजी कहे छे के–
करता परिनामी दरव, करमरूप परिनाम।
किरिया परजयकी फिरनी, वस्तु एक त्रय नाम।।
७।।
अर्थात्–अवस्थारूपे जे द्रव्य परिणमे छे ते कर्ता छे; जे परिणाम थाय छे ते तेनुं कर्म छे; अने अवस्थाथी
अवस्थांतर थवुं ते क्रिया छे. आ कर्ता, कर्म अने क्रिया वस्तुपणे भिन्न नथी, एटले के ते भिन्न भिन्न वस्तुमां
रहेता नथी. वळी–
एक परिनाम के न करता दरव दोइ, दोइ परिनाम एक दर्व न धरतु है।