: कारतक : २४८१ ‘आत्मधर्म’ : ३५ :
एक करतूति दोइ दर्व कबहूं न करैं, दोइ करतूति एक दर्व न करतु है।।
जीव पुदगल एक खेत–अवगाही दोउ, अपनें अपनें रूप कोउ न टरतु है।
जड परनामनिकौ करता है पुदगल, चिदानंद चेतन सुभाउ आचरतु है।। १०।।
अर्थात्–एक परिणामना कर्ता बे द्रव्य न होय; एक द्रव्य बे परिणामने न करे. एक क्रियाने बे द्रव्य कदी
न करे, तेम ज एक द्रव्य बे क्रियाने न करे.
जीव अने पुद्गल जो के एक क्षेत्रे रहेलां छे तो पण पोतपोताना स्वभावने कोई छोडता नथी. पुद्गल
तो तेना जड परिणामोनुं कर्ता छे, अने चिदानंद आत्मा पोताना चेतन स्वभावने आचरे छे–करे छे.
–आ प्रमाणे दरेक द्रव्यना भिन्न भिन्न स्वतंत्र परिणमनने ज्यां सुधी जीव न जाणे त्यां सुधी परथी
भेदज्ञान थाय नहि ने स्वभावमां एकता प्रगटे नहि, एटले सम्यग्दर्शनादि कांई थाय नहि.
[११६] पर्यायमां जे तन्मय होय ते ज तेनो कर्ता.
क्रमबद्धपरिणामे परिणमतुं द्रव्य पोतानी पर्याय साथे एकमेक छे, ए सिद्धांत समजाववा आचार्यदेव
अहीं सोनानुं द्रष्टांत आपे छे. जेम सोनामां कुंडळ वगेरे जे अवस्था थई तेनी साथे ते सोनुं एकमेक छे, जुदुं
नथी; सोनानी अवस्थाथी सोनी जुदो छे पण सोनुं जुदुं नथी. तेम जगतना जीव के अजीव बधाय द्रव्यो
पोतपोतानी जे अवस्था थाय छे तेनी साथे एकमेक छे, बीजा साथे एकमेक नथी, माटे ते बीजाना अकर्ता छे. जे
पर्याय थई, ते पर्यायमां जे तन्मय होय ते ज तेनो कर्ता होय, पण तेनाथी जे जुदो होय ते तेनो कर्ता न होय–
ए नियम छे. जेम के–
घडो थयो, त्यां ते घडारूप अवस्था साथे माटीना परमाणुओ एकमेक छे, पण कुंभार तेनी साथे एकमेक
नथी, माटे कुंभार तेनो अकर्ता छे,
वस्त्र थयुं, त्यां ते वस्त्ररूप पर्याय साथे ताणा–वाणाना परमाणुओ एकमेक छे, पण वणकर तेनी साथे
एकमेक नथी, माटे ते तेनो अकर्ता छे.
कबाट थयो, त्यां ते कबाटनी अवस्था साथे लाकडाना परमाणुओ एकमेक छे, पण सुतार तेनी साथे
एकमेक नथी, माटे ते तेनो अकर्ता छे.
रोटली थई, त्यां रोटलीनी अवस्था साथे लोटना परमाणुओ एकमेक छे, पण बाई (रसोई करनार)
तेनी साथे एकमेक नथी, माटे बाई रोटलीनी अकर्ता छे.
सम्यग्दर्शन थयुं, त्यां ते पर्याय साथे आत्मा पोते एकमेक छे तेथी आत्मा तेनो कर्ता छे, पण अजीव
तेमां एकमेक नथी माटे ते अकर्ता छे. ए प्रमाणे सम्यग्ज्ञान, सुख, आनंद, सिद्धदशा वगेरे बधी अवस्थाओमां
समजी लेवुं. ते ते अवस्थापणे ऊपजतो थको जीव ज तेमां तद्रूप थईने तेनो कर्ता छे, ते अजीव नथी एटले
अजीव साथे तेने कार्य–कारकपणुं नथी.
[११७] ज्ञाता रागनो अकर्ता.
अहीं तो आचार्यदेव ए सिद्धांत समजावे छे के ज्ञायकस्वभाव सन्मुख थईने जे जीव ज्ञातापरिणामपणे
ऊपज्यो ते जीव रागनो पण अकर्ता छे; पोताना ज्ञातापरिणाममां तन्मय होवाथी तेनो कर्ता छे, ने रागनो
अकर्ता छे, केमके रागमां ते तन्मय नथी. ज्ञायकभावमां जे तन्मय थयो ते रागमां तन्मय थतो नथी, माटे ते
रागनो अकर्ता ज छे.
–आवा ज्ञातास्वभावने जाणवो ते निश्चय छे. स्वसन्मुख थईने आवुं निश्चयनुं ज्ञान करे तो, कई
पर्यायमां केवो राग होय ने त्यां निमित्त–नैमित्तिक संबंध केवा प्रकारनो होय, –ते बधा व्यवहारनो पण यथार्थ
विवेक थई जाय.
[११८] निश्चय–व्यवहारनो जरूरी खुलासो.
घणा लोको कहे छे के आ तो निश्चयनी वात छे, पण व्यवहारे तो जीव जडकर्मनो कर्ता छे! तो आचार्यदेव
कहे छे के अरे भाई! जेनी द्रष्टि ज्ञायक उपर नथी ने कर्म उपर छे एवा अज्ञानीने ज कर्मना कर्तापणानो
व्यवहार लागु पडे छे, ज्ञायकद्रष्टिवाळा ज्ञानीने तेवो व्यवहार लागु पडतो नथी. ज्ञायकस्वभावी जीव
मिथ्यात्वादि कर्मनो अकर्ता होवा छतां तेने कर्मनो कर्ता कहेवो ते व्यवहार छे, अने ते व्यवहार अज्ञानीने ज
लागु पडे छे. ज्ञायक स्वभावनी द्रष्टिवाळो ज्ञानी तो अकर्ता ज छे.