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साथे निमित्त छे, छतां कोई परमाणु स्कंधमां जोडाय, ते ज वखते बीजो तेमांथी छूटो पडे, एक जीव सम्यग्दर्शन
पामे ने बीजो जीव ते ज वखते केवळज्ञान पामी जाय, –ए प्रमाणे जीव–अजीव द्रव्योमां पोतपोतानी योग्यता
प्रमाणे भिन्नभिन्न अवस्थारूपे क्रमबद्ध परिणाम थाय छे. माटे, पोताना ज्ञानपरिणामनो प्रवाह ज्यांथी वहे
छे–एवा ज्ञायकस्वभाव उपर द्रष्टि राखीने ज क्रमबद्धपर्यायनुं यथार्थज्ञान थाय छे.
मिथ्या थई. पर्यायने अंतरमां वाळीने ज्ञायकभाव साथे तद्रूप करवी जोईए, तेने बदले पर साथे तद्रूप
मानीने कद्रूप करी, तेणे दिवाळीने बदले होळी करी. जेम होळीने बदले दिवाळीना तहेवारमां मोढा उपर मस
चोपडीने मेलुं करे तो ते मूरख कहेवाय. तेम ‘दि....वाळी’ एटले पोतानी निर्मळ स्वपर्याय, तेमां पोते तद्रूप
थवुं जोईए तेने बदले अज्ञानी पर साथे पोताने तद्रूपता मानीने पोतानी पर्यायने मलिन करे छे एटले ते
दि.....वाळीने बदले पोताना गुणनी होळी करे छे. भाई, ‘दि’ एटले स्वकाळनी पर्याय तेने ‘वाळ’ तारा
आत्मामां,–तो तारा घरे दिवाळीना दीवा प्रगटे एटले के सम्यग्ज्ञानना दीवडा प्रगटे ने मिथ्यात्वनी होळी
मटे. स्वकाळनी पर्यायने अंतरमां न वाळतां पर साथे एकपणुं मानीने, ते ऊंधी मान्यतामां अज्ञानी
पोताना गुणने होमी दे छे एटले तेने पोताना गुणनी होळी थाय छे–गुणनी निर्मळदशा प्रगटवाने बदले
मलिनदशा प्रगटे छे; तेमां आत्मानी शोभा नथी.
पर्यायमां बीजो तद्रूप थईने तेने करे तो तेमां द्रव्यनी प्रभुता रहेती नथी; अथवा आत्मा पोते पर साथे तद्रूपता
मानीने तेनो कर्ता थवा जाय तो तेमां पण पोतानी के परनी प्रभुता रहेती नथी. परनो कर्ता थवा जाय ते
पोतानी प्रभुताने भूले छे. क्रमबद्धपर्यायनुं ज्ञातापणुं न मानतां तेमां आडुंअवळुं करवानुं माने तो ते जीव
पोताना ज्ञाताभाव साथे तद्रूप न रहेतां, मिथ्याद्रष्टि कद्रूप थई जाय छे.
आवी जाय छे. हुं ज्ञायक, ने पदार्थोमां स्वतंत्र क्रमबद्ध परिणमन–बस! आमां बधो सार आवी गयो. पोताना
ज्ञायकस्वभावनो ने पदार्थोना क्रमबद्धपरिणामनी स्वतंत्रतानो निर्णय करीने, पोते पोताना ज्ञायकस्वभावमां
अभेद थईने परिणम्यो, त्यां पोते ज्ञायक ज रह्यो ने परनो अकर्ता थयो, तेनुं ज्ञान, रागादिथी छूटुं पडीने
‘सर्वविशुद्ध’ थयुं. आनुं नाम जैनशासन, ने आनुं नाम धर्म.
स्वभाव तरफ लई जाय–ते ज ईष्ट–उपदेश छे,–अने ते ज जैनधर्मनो मर्म छे तेथी जैननुं उपनिषद छे.
निमित्तना नामे ऊलटो स्व–परनी एकताबुद्धि पोषे छे; “जुओ, शास्त्रमां निमित्त तो कह्युं छे ने? बे कारण तो
कह्या छे ने?”–एम कहीने ऊलटो स्व–परनी एकताबुद्धि घूंटे छे. पं. बनारसीदासजी कहे छे के–