Atmadharma magazine - Ank 133
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : ‘आत्मधर्म’ २४८१ : कारतक :
उपादान निजगुण जहां तहां निमित्त पर होय।
भेदज्ञान परमाण विधि विरला बूझे कोय।।
४।।
अर्थात् –ज्यां उपादाननी पोतानी निजशक्तिथी कार्य थाय छे, त्यां बीजी चीज निमित्त होय छे; आम
उपादान अने निमित्त बंने चीज तो छे, पण त्यां उपादाननी पोतानी योग्यताथी ज कार्य थाय छे, ने निमित्त
तो तेमां अभावरूप–अकिचित्कर छे,–एवी भेदज्ञाननी यथार्थ विधि कोई विरला ज जाणे छे, एटले के समकीति
ज जाणे छे.
[१२५] अहीं सिद्ध करवुं छे–आत्मानुं अकर्तापणुं.
अत्यार सुधीमां आचार्यदेवे ए वात सिद्ध करी के–“प्रथम तो जीव क्रमबद्ध एवा पोताना परिणामोथी
ऊपजतो थको जीव ज छे, अजीव नथी; एवी रीते अजीव पण क्रमबद्ध पोताना परिणामोथी ऊपजतुं थकुं
अजीव ज छे, जीव नथी; कारण के जेम सुवर्णने कंकण आदि परिणामो साथे तादात्म्य छे तेम सर्व द्रव्योने
पोताना परिणामो साथे तादात्म्य छे.”
हवे आ सिद्धांत उपरथी जीवनुं अकर्तापणुं सिद्ध करवा माटे आचार्यदेव कहे छे के “आम जीव पोताना
परिणामोथी ऊपजतो होवा छतां तेने अजीवनी साथे कार्यकारणभाव सिद्ध थतो नथी;×××” कर्ता थईने
पोताना ज्ञायकपरिणामपणे ऊपजतो जीव, कर्मना बंधननुं पण कारण थाय–एम बनतुं नथी, ए रीते तेनुं
अकर्तापणुं छे.
[१२६] ‘एकनो कर्ता ते ‘बे’नो कर्ता नथी. (ज्ञायकना अकर्तापणानी सिद्धि.)
प्रश्न:– जो जीव पोताना परिणामथी ऊपजे छे ने तेमां तद्रूप थईने तेने करे छे, तो एक भेगुं बीजानुं
पण करे–तेमां शो वांधो? ‘एकनो गोवाळ ते बेनो गोवाळ’ एटले जे गोवाळ एक गाय चराववा लई जाय ते
भेगो बे गाय लई जाय, तो तेमां तेने शुं महेनत? अथवा ‘एकनुं रांधवुं, भेगुं बेनुं रांधवुं.’ तेम कर्ता थईने
एक पोतानुं करे ते भेगुं बीजानुं पण करे तो शुं वांधो? जीव पोते ज्ञायकपणे ऊपजे पण खरो ने कर्मने बांधे
पण खरो–एमां शुं वांधो?
उत्तर:– दरेक द्रव्य पोतानी पर्याय साथे तद्रूप छे तेथी तेने तो करे, पण पर साथे तद्रूप नथी तेथी तेनो ते
कर्ता नथी. पर साथे तद्रूप थाय तो ज परने करे, परंतु एम तो कदी बनी शकतुं नथी. एटले ‘गायना गोवाळ’
वगेरे लौकिक कहेवत अहीं लागु न पडे. स्वभाव–सन्मुख थईने पोताना ज्ञायकभावपणे जे जीव परिणम्यो, ते
जीव पोताना ते ज्ञायकभाव साथे तद्रूप छे, तेथी तेनो तो ते कर्ता छे, परंतु रागादिभावो साथे ते तद्रूप नथी
तेथी ते खरेखर रागनो पण कर्ता नथी, एटले कर्मना कर्तापणानो व्यवहार पण तेने लागु पडतो नथी. आथी
आचार्यदेव कहे छे के ‘जीव पोताना परिणामोथी ऊपजतो होवा छतां तेने अजीवनी साथे कार्यकारणभाव सिद्ध
थतो नथी.’
क्यो जीव? ....के ज्ञानी;
केवा परिणाम? ....के ज्ञाताद्रष्टाना निर्मळ परिणाम;–ज्ञानी पोताना ज्ञाताद्रष्टाना निर्मळपरिणामपणे
ऊपजे छे, पण अजीव कर्मोना बंधनुं कारण थतो नथी; केमके तेने पोताना ज्ञायकभाव साथे ज एकता छे,
रागादि साथे के कर्म साथे एकता नथी, माटे ते रागादिनो ने कर्मनो अकर्ता ज छे. जीव पोताना
ज्ञायकपरिणामनो कर्ता थाय, ने साथे साथे अजीवमां नवा कर्मो बंधावामां पण निमित्त थाय–एम बनतुं नथी.
नवां कर्मोमां मुख्यपणे अहीं मिथ्यात्व आदि एकतालिस प्रकृतिनी वात लेवी छे, –तेनुं बंधन ज्ञानीने थतुं ज
नथी. ज्ञानीने पोताना निर्मळ ज्ञानपरिणाम साथे कार्यकारणपणुं छे, परंतु अजीव साथे के रागादि साथे तेने
कार्यकारणपणुं नथी, तेथी ते अकर्ता ज छे.
[१२७] व्यवहार –क्यो? अने कोने?
प्रश्न:– आ तो निश्चयनी वात थई, हवे व्यवहार समजावो.
उत्तर:– आ निश्चयस्वरूप समजे तेने व्यवहारनी खबर पडे. ज्ञाता जाग्यो अने स्व–पर–प्रकाशक शक्ति
खीली त्यारे निमित्त अने व्यवहार केवा होय तेने ते जाणे छे. पोते रागथी अधिक थईने ज्ञायकपणे परिणमतो,
अस्थिरतानो जे राग छे तेने पण जाणे छे ते ज्ञानीनो व्यवहार छे. पण ज्यां निश्चयनुं भान नथी, जाणनार
जाग्यो नथी, त्यां व्यवहारने जाणशे कोण? ते अज्ञानी तो रागने जाणतां तेमां ज एकता मानी ल्ये छे, एटले
तेने तो राग ते ज निश्चय थई गयो, रागथी जुदो कोई