: कारतक : २४८१ ‘आत्मधर्म’ : ४७ :
द्रष्टि करीने परिणम्यो त्यां–
ज्ञानगुण पोताना निर्मळ परिणाम साथे तद्रूप थईने परिणम्यो,
श्रद्धागुण पोताना सम्यग्दर्शन परिणाम साथे तद्रूप थईने परिणम्यो;
आनंदगुण पोताना आनंदपरिणाम साथे तद्रूप थईने परिणम्यो;
–ए प्रमाणे ज्ञायकस्वभाव सन्मुख थईने परिणमतां श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र–वीर्य वगेरे बधा गुणोनी
निर्मळ परिणमनधारा वधवा लागी.–आ छे ज्ञायकस्वभावनी ने क्रमबद्धपर्यायनी प्रतीतनुं फळ!
[७]
प्रवचन सातमुं
[वीर सं. २४८० आसो सुद त्रीज]
एक तरफ एकलो ज्ञायकस्वभाव, ने बीजी तरफ क्रमबद्धपर्याय,–एनो यथार्थ निर्णय करवामां बधुं
आवी जाय छे, ते मूळ वस्तुधर्म छे, ते केवळी भगवाननुं पेट छे, संतोनुं हार्द छे, शास्त्रोनो मर्म छे,
विश्वनुं दर्शन छे, अने मोक्षमार्गनुं कर्तव्य केम थाय तेनी आ रीत छे.
अज्ञानी कहे छे के आ ‘रोगचाळो’ छे, त्यारे अहीं कहे छे के आ तो सर्वज्ञना हृदयनुं हार्द छे, जेने
आ वात बेठी तेना हृदयमां सर्वज्ञ बेठा,–ते अल्पज्ञ होवा छतां ‘हुं सर्वज्ञ जेवो ज्ञाता ज छुं, एवो तेने
निर्णय थयो.
[१५२] अधिकारनुं नाम.
आ सर्वविशुद्धज्ञान–अधिकारनी पहेली चार गाथाओ वंचाय छे; सर्वविशुद्धज्ञान–अधिकार कहो,
ज्ञायकद्रव्यनो अधिकार कहो, के क्रमबद्धपर्यायनो अधिकार कहो; ज्यां ज्ञायकद्रव्यने पकडीने ज्ञान एकाग्र थयुं त्यां ते
ज्ञान सर्वविशुद्ध थयुं, अने ते ज्ञानना विषय तरीके बधा द्रव्योनी क्रमबद्धपर्याय छे तेनो पण तेने निर्णय थयो.
[१५३] ‘क्रमबद्ध’ अने ‘कर्मबंध’ !
जुओ, छ दिवसथी आ क्रमबद्धपर्यायनी वात चाले छे, ने आजे तो सातमो दिवस छे; घणा घणा
पडखांथी स्पष्टीकरण आवी गयुं छे. छतां केटलाकने आ वात समजवी कठण पडे छे. कोई तो कहे के “महाराज!
आप क्या कहते हो, ‘कर्मबंध’ मानना यह सम्यग्दर्शन है–ऐसा आप कहते हो?”–अरे भाई! आ
‘क्रमबद्ध’ जुदुं ने ‘कर्मबंध’ जुदुं! बंने वच्चे तो मोटो फेर छे. कर्मबंध वगरनो ज्ञायकस्वभाव केवो छे ने
वस्तुनी पर्यायमां क्रमबद्धपणुं कई रीते छे ते ओळखे तो सम्यग्दर्शन थाय. आ ‘क्रमबद्ध’ समजे तो ‘कर्मबंध’
नो नाश थाय, अने ‘क्रमबद्ध’ न समजे तेने ‘कर्मबंध’ थाय.
[१५४] ‘ज्ञायक’ अने ‘क्रमबद्ध’ बंनेनो निर्णय एक साथे.
जीवमां के अजीवमां समये समये जे क्रमबद्धपर्याय थवानी छे ते ज थाय छे; पहेला थनारी पर्याय पछी न
थाय, ने पछी थनारी पर्याय पहेला न थाय. अनादि अनंत काळप्रवाहना जेटला समयो छे तेटली ज दरेक द्रव्यनी
पर्यायो छे; तेमां जे समये जे पर्यायनो नंबर (क्रम) छे ते समये ते ज पर्याय थाय छे. जेम सात वारमां रवि पछी
सोम, सोम पछी मंगळ–एम बराबर क्रमबद्ध ज आवे छे, आडाअवळा आवता नथी, तेम ज १ थी १०० सुधीना
नंबरमां एक पछी बे, पचास पछी एकावन, नव्वाणुं पछी सो, एम बधा क्रमबद्ध ज आवे छे, तेम द्रव्यनी
क्रमबद्धपर्यायोमां जे ५१ मी पर्याय होय ते ५० के परमी न थाय, ५० मी के ‘५२’ मी पर्याय होय ते ५१ मी न
थाय. एटले के पर्यायना क्रमबद्धपणामां कोई पण पर्याय वच्चेथी खसेडीने आघी के पाछी थई शकती नथी. जेम
पदार्थनी पर्यायनुं आवुं क्रमबद्धस्वरूप छे तेम आत्मानुं ज्ञायकस्वरूप छे. हुं सर्वविशुद्धज्ञानमात्र ज्ञायक छुं, एवा
ज्ञायकस्वरूपना निर्णय साथे क्रमबद्धपर्यायनो पण निर्णय थई जाय छे. आत्मानुं