
कांई पण पहेलेथी नक्की थई शके नहि, एटले तेनुं ज्ञान ज कोईने न थाय. परंतु एवुं ज्ञान तो थाय छे, माटे
वस्तुनुं परिणमन व्यवस्थित–क्रमबद्ध–नियमबद्ध ज छे.
छे. परने अव्यवस्थित मानतां तारुं ज्ञान ज अव्यवस्थित थई जाय छे, एटले के तने तारा ज्ञाननी ज प्रतीत
रहेती नथी. अने ज्ञाननी प्रतीत करे तेने परने फेरववानी बुद्धि रहेती नथी.
आ रीते जीव अकर्ता छे–ज्ञायक छे–साक्षी छे. ज्ञायकस्वभाव सन्मुख थईने आवुं ज्ञायकपणानुं जे परिणमन थयुं
तेमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र आवी जाय छे, ने ते ज मोक्षनुं कारण छे.
एकता कर तो छूटवानो मार्ग तारा हाथमां ज छे; आ सिवाय बहारना लाख उपाय कर्ये पण छूटकारो
(मुक्तिनो मार्ग) हाथ आवे तेम नथी.
ने अजीव तारुं कार्य एम नथी. जीव ने अजीव क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे छे, जे समये जे पर्याय थवानी छे ते
समये ते ज थवानी, ते आघीपाछी के ओछी–वधती न थाय; द्रव्य पोते पोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे छे, तो
बीजो तेमां शुं करे? तेमां बीजानी अपेक्षा शुं होय? माटे हे जीव! तुं ज्ञायकपणे ज रहे. तुं ज्ञायक छो, परनो
अकर्ता छो, तुं तारा जाणनार स्वभावमां अभेद थईने निर्विकल्प प्रतीत कर. स्वसन्मुख थईने ज्ञाताभावपणे
ज परिणमन कर, पण हुं निमित्त थईने परनुं काम करी दउं–एवी द्रष्टि छोडी दे.
अवस्था न थवानी होय ने निमित्त आवीने करी द्ये–एवो कोई निमित्त–नैमित्तिक संबंध नथी. जड ने चेतन बधा द्रव्यो
पोते ज पोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे छे, एटले निमित्तथी कांई थाय ए वात ऊडी जाय छे. आत्मा अजीवनो कर्ता
नथी.–ए समजवानुं फळ तो ए