Atmadharma magazine - Ank 133
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: ५४ : ‘आत्मधर्म’ २४८१ : कारतक :
कया नक्षत्र पछी कयुं नक्षत्र आवशे–ए पण कई रीते नक्की थई शके? अव्यवस्थित परिणमन होय तो आ
कांई पण पहेलेथी नक्की थई शके नहि, एटले तेनुं ज्ञान ज कोईने न थाय. परंतु एवुं ज्ञान तो थाय छे, माटे
वस्तुनुं परिणमन व्यवस्थित–क्रमबद्ध–नियमबद्ध ज छे.
–अने व्यवस्थित ज परिणमन दरेक वस्तुमां छे, तो आत्मा तेमां कांई फेरफार करी द्ये–ए वात रहेती
नथी, ज्ञायकपणुं ज रहे छे. माटे तुं तारा ज्ञायकपणानो निर्णय कर, ने परने फेरववानी बुद्धि छोड–एवो उपदेश
छे. परने अव्यवस्थित मानतां तारुं ज्ञान ज अव्यवस्थित थई जाय छे, एटले के तने तारा ज्ञाननी ज प्रतीत
रहेती नथी. अने ज्ञाननी प्रतीत करे तेने परने फेरववानी बुद्धि रहेती नथी.
[१७९] ज्ञाताना परिणमनमां मुक्तिनो मार्ग.
आवा पोताना ज्ञायकस्वभावनो निर्णय करीने, स्वसन्मुख ज्ञाताभावपणे क्रमबद्धपरिणमता जीवने पर
साथे (कर्म साथे) कार्यकारणपणुं सिद्ध थतुं नथी, ते जीव कर्ता थईने अजीवनुं कार्य पण करे–एम बनतुं नथी.
आ रीते जीव अकर्ता छे–ज्ञायक छे–साक्षी छे. ज्ञायकस्वभाव सन्मुख थईने आवुं ज्ञायकपणानुं जे परिणमन थयुं
तेमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र आवी जाय छे, ने ते ज मोक्षनुं कारण छे.
[८]
प्रवचन आठमुं
[वीर सं. २४८० आसो सुद चोथ]
भाई! आ वात समजीने तुं स्वसन्मुख था....तारा ज्ञायकस्वभाव सन्मुख था.–आ सिवाय बीजो
कोई हितनो रस्तो नथी. छूटवानो रस्तो तारामां ज पड्यो छे, अंतरना ज्ञायकस्वरूपने पकडीने तेमां
एकता कर तो छूटवानो मार्ग तारा हाथमां ज छे; आ सिवाय बहारना लाख उपाय कर्ये पण छूटकारो
(मुक्तिनो मार्ग) हाथ आवे तेम नथी.
[१८०] हे जीव! तुं ज्ञायकपणे ज रहे.
आत्मा ज्ञायक छे; जड–चेतनना क्रमबद्धपरिणाम थया करे छे, त्यां तेनो ज्ञायक न रहेतां परमां कर्तापणुं
माने छे ते जीव अज्ञानी छे. अहीं आचार्यदेव समजावे छे के तारे पर साथे कर्ताकर्मपणुं नथी; तुं अजीवनो कर्ता,
ने अजीव तारुं कार्य एम नथी. जीव ने अजीव क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे छे, जे समये जे पर्याय थवानी छे ते
समये ते ज थवानी, ते आघीपाछी के ओछी–वधती न थाय; द्रव्य पोते पोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे छे, तो
बीजो तेमां शुं करे? तेमां बीजानी अपेक्षा शुं होय? माटे हे जीव! तुं ज्ञायकपणे ज रहे. तुं ज्ञायक छो, परनो
अकर्ता छो, तुं तारा जाणनार स्वभावमां अभेद थईने निर्विकल्प प्रतीत कर. स्वसन्मुख थईने ज्ञाताभावपणे
ज परिणमन कर, पण हुं निमित्त थईने परनुं काम करी दउं–एवी द्रष्टि छोडी दे.
[१८१] भाई, तुं ज्ञायक उपर द्रष्टि कर, निमित्तनी द्रष्टि छोड!
केटलाक एम माने छे के ‘निमित्त थईने आपणे बीजानुं करी दईए’ –ए पण ऊंधी द्रष्टि छे. भाई, वस्तुनी
क्रमबद्धपर्याय स्वयं तेनाथी थाय त्यारे बीजी चीज निमित्तपणे होय छे–एनुं नाम निमित्त–नैमित्तिक संबंध छे, पण
अवस्था न थवानी होय ने निमित्त आवीने करी द्ये–एवो कोई निमित्त–नैमित्तिक संबंध नथी. जड ने चेतन बधा द्रव्यो
पोते ज पोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे छे, एटले निमित्तथी कांई थाय ए वात ऊडी जाय छे. आत्मा अजीवनो कर्ता
नथी.–ए समजवानुं फळ तो ए