
निर्विकल्प प्रतीत कर. ‘हुं कर्ता नथी पण निमित्त थईने परनुं काम करुं’ ए वात पण आमां रहेती नथी, केमके
ज्ञायक तरफ वळेलो परनी सामे जोतो नथी,–ज्ञायकनी द्रष्टिमां पर साथेना निमित्त–नैमित्तिक संबंधनुं पण लक्ष
छूटी गयुं छे, तेमां तो एकला ज्ञायकभावनुं ज परिणमन छे. अज्ञानीओ तो निमित्त–नैमित्तिक संबंधना बहाने
कर्ता–कर्मपणुं मानी ले छे, एनी वात तो दूर रही, परंतु अहीं तो कहे छे के एकवार पर साथेना निमित्त–
नैमित्तिक संबंधने पण द्रष्टिमांथी छोडीने, एकला ज्ञायकस्वभावने ज द्रष्टिमां ले, द्रष्टिने अंतरमा वाळीने
ज्ञायकमां एकाग्र कर,–तो सम्यग्दर्शन थाय. आवी अंतरनी सूक्ष्म वात छे, तेमां ‘निमित्त आवे तो थाय ने
निमित्त न आवे तो न थाय’–एवी स्थूळ वात तो क्यांय रही गई!–एने हजी निमित्तने शोधवुं छे, पण
ज्ञायकने नथी शोधवो,–ज्ञायक तरफ अंतरमां नथी वळवुं. पोताना ज्ञायकपणानी प्रतीत नथी ते जीव निमित्त
थईने परने फेरववा मांगे छे. भाई! परद्रव्य तेनी क्रमबद्धपर्याये ऊपजे छे, ने तुं तारी क्रमबद्धपर्याये ऊपजे
छे,–पछी तेमां कोई कोईनुं निमित्त थईने तेना क्रममां कांई फेरफार करी द्ये–ए वात क्यां रही? क्रमबद्धपर्याय
विनानो एवो क्यो समय खाली छे, के बीजो आवीने कांई फेरफार करे? द्रव्यमां तेनी क्रमबद्धपर्याय वगरनो
कोई समय खाली नथी, अने आत्मामां ज्ञायकपणा वगरनो कोई समय खाली नथी. माटे ज्ञायकसन्मुख थईने
तुं ज्ञाता रहीजा. ज्ञायकस्वभावनो निर्णय करे तो बधी ऊंधी मान्यताना मींडां वळी जाय.
करे एम बनतुं नथी, तेथी जीव अकर्ता छे. दरेक द्रव्य पोतानी ते ते समयनी क्रमबद्धपर्याय साथे अनन्य छे; जो
बीजो आवीने तेनी पर्यायमां हाथ नांखे तो तो तेने परनी साथे अनन्यपणुं थई जाय, एटले भेदज्ञान न
रहेतां बे द्रव्यनी एकताबुद्धि थई जाय. भाई! क्रमबद्धपर्यायपणे द्रव्य पोते उपजे छे, तो बीजो तेमां शुं करशे?–
आवी समजण ते भेदज्ञाननुं कारण छे. वस्तुस्वभाव ज आवो छे, तेमां बीजुं थाय तेम नथी; बीजी रीते माने
तो मिथ्याज्ञान थाय छे.
कांई कर्युं–ए वात हराम छे. अने आ रीते छए द्रव्यो पोतपोताना स्वभावथी ज पोतानी क्रमबद्धपर्यायरूपे
परिणमे छे, आवी स्वतंत्रता जाणीने भेदज्ञान करे तो ज, निमित्त–नैमित्तिकसंबंध केवो होय तेनुं यथार्थज्ञान
थाय छे. बीजी चीज आवे तो कार्य थाय ने न आवे तो न थाय–एम माने तो त्यां निमित्त–नैमित्तिकसंबंध सिद्ध
नथी थतो, पण कर्ताकर्मपणानी मिथ्यामान्यता थई जाय छे. बीजी चीज आवे तो कार्य थाय– एटले के निमित्तने
लीधे कार्य थाय–एम माननारा, द्रव्यना क्रमबद्ध स्वतंत्र परिणमनने नहि जाणनारा, ज्ञानस्वभावने नहि
माननारा, ने परमां कर्तापणुं माननारा मूढ छे.
एटले खरेखर अकर्ता–एम तुं समज. एक वस्तुनी क्रमबद्धपर्याय वखते बीजी चीज पण क्रमबद्धपर्यायथी
ऊपजती थकी निमित्तपणे भले हो; अहीं जे पर्याय, अने ते वखते सामे जे निमित्त, ते बंने सुनिश्चित ज छे.
आवुं व्यवस्थितपणुं जाणे तेने ‘निमित्त आवे तो थाय ने निमित्त न आवे तो न थाय’ ए प्रश्न रहे ज नहि.