Atmadharma magazine - Ank 133
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: ६० : ‘आत्मधर्म’ २४८१ : कारतक :
अकर्ता ज छे ने कर्मनो पण अकर्ता छे, ते कर्मबंधननो निमित्तकर्ता पण नथी एटले तेने बंधन थतुं ज नथी;–हवे
ज्ञायकस्वभावसन्मुख रहीने ज्ञाताद्रष्टापणाना निर्मळ–निर्मळ परिणामे परिणमतां तेने रागादि सर्वथा टळी जशे ने
केवळज्ञान थई जशे. आ ज केवळज्ञाननो पंथ अने राह छे.
. ज य ह.
ज्ञायकस्वभावनी सन्मुख लई जईने,
‘सर्वज्ञशक्ति’नी.ने ‘क्रमबद्धपर्याय’ नी प्रतीत करावनार
केवळीप्रभुना लघुनन्दन श्री कहानगुरुदेवनो जय हो.
ज्ञायकमूर्तिनो जय हो.