
* परम पूज्य सद्गुरुदेव सुखशांतिमां बिराजे छे; हाल सवारना प्रवचनमां मोक्षमार्गप्रकाशक अने
हवे पछी प्रसिद्ध थशे. आ बधाय प्रवचनो एक साथे पुस्तक रूपे पण प्रसिद्ध करवानुं नक्की थयुं छे. आ प्रवचनो
प्रसिद्ध थतां पहेला पूज्य गुरुदेवे वांची जवा कृपा करी छे.
* जे ग्राहकोए हजी सुधी लवाजम न भर्युं होय, तेओ हजी पण वहेलासर सोनगढना सरनामे लवाजम
अंतरना चिदानंद स्वभावने ओळखीने तेमां एकाग्रताथी राग टाळीने जेमणे सर्वज्ञता
असली स्वभाव तरफ कदी वलण कर्युं नथी; तारो आत्मा एक समयमां परिपूर्ण ज्ञान ने
आनंदस्वभावथी भरेलो छे तेने ओळखीने तेनी प्रीति कर. अंतर आत्मामां एकाग्र थतां राग
टळी जाय छे ने सर्वज्ञतां प्रगटी जाय छे, माटे राग ते तारुं खरुं स्वरूप नथी पण पूर्णज्ञान ते
तारुं स्वरूप छे. – आ प्रमाणे रागथी भिन्न ज्ञान–स्वरूप आत्मानो निर्णय करवो ते मुक्तिना
उपायनुं पहेलुं सोपान छे.
अज्ञानी जीव जगतथी भिन्न पोताना चैतन्यस्वरूपने चूकीने देशनुं–परनुं–घरनुं अने
व्रत वगेरेना शुभरागमां धर्म मानीने त्यां अटकी जाय छे; पण शरीरादिनी क्रियाथी भिन्न ने
शुभरागथी पण पार एवा पोताना ज्ञानानंद स्वरूप आत्मानुं लक्ष करतो नथी, तेथी तेना
जन्ममरणना दुःखनो अंत आवतो नथी. अनादिकाळमां पुण्य कर्यां तोपण जीव संसारमां ज
रखडयो छे, तो ते संसारनुं मूळकारण शुं छे ते जाणीने तेने टाळवानो उपाय करवो जोईए.