भगवान आत्मानो ज्ञायकस्वभाव छे, ते तो ज्ञाता–द्रष्टापणानुं ज कार्य करे छे. क्यांय फेरफार करे एवो तेनो
स्वभाव नथी, ने रागने पण फेरववानो तेनो स्वभाव नथी, रागनो पण ते ज्ञायक छे. जीव ने अजीव बधा
पदार्थोनी त्रणेकाळनी अवस्था क्रमबद्ध थाय छे, आत्मा तेनो ज्ञायक छे.–आवो ज्ञायक आत्मा ते सम्यग्दर्शननो
विषय छे.
परिणामोथी ऊपजतुं थकुं अजीव ज छे, जीव नथी. जुओ आ महा सिद्धांत! जीव के अजीव दरेक वस्तुमां
क्रमबद्धपर्याय थाय छे, तेमां आडुंअवळुं थतुं ज नथी. अत्यारे घणा पंडितो अने त्यागी वगेरे लोकोमां आनी
सामे मोटो वांधो ऊठ्यो छे, केम के आ वातनो निर्णय करवा जाय तो पोतानुं अत्यार सुधी मानेलुं कांई रहेतुं
नथी. २००३ नी सालमां (प्रवचन–मंडपना उद्घाटन प्रसंगे) हुकमीचंदजी शेठनी साथे देवकीनंदनजी पंडित
आवेला, तेमने ज्यारे आ वात बतावी त्यारे ते आश्चर्य पाम्या हता के अहो! आवी वात छे!! आ वात
अत्यार सुधी अमारा लक्षमां नहोती आवी. छए द्रव्योमां तेनी त्रणेकाळनी दरेक पर्यायनो स्वकाळ नियमित छे.
जगतमां अनंत जीवो छे ने जीव करतां अनंतगुणा अजीव छे, ते बधाय द्रव्यो पोतपोताना क्रम नियमित
परिणामे ऊपजे छे. जे समये जे पर्यायनो क्रम छे ते एक समय पण आगळ पाछळ न थाय. १०० नंबरनी जे
पर्याय होय ते ९९मा नंबरे न थाय, तेमज १०० नंबरनी पर्याय १०१मा नंबरे पण न थाय. आ रीते दरेक
पर्यायनो स्वकाळ नियमित छे, ने बधांय द्रव्यो क्रमबद्धपर्याये परिणमे छे. पोताना स्वभावनो निर्णय थयो त्यां
धर्मी जाणे छे के हुं तो ज्ञायक छुं, हुं कोने फेरवुं? एटले धर्मीने परने फेरववानी बुद्धि नथी, रागने पण
फेरववानी बुद्धि नथी, ते रागनो पण ज्ञायकपणे ज रहे छे.
क्रमबद्धपर्यायपणे परिणमे छे, पदार्थना त्रणकाळनी पर्यायनो क्रम निश्चित छे; सर्वज्ञदेवे त्रणकाळ त्रणलोकनी
पर्यायो जाणी छे. सर्वज्ञे जाण्युं ते फरे नहि.–छतां सर्वज्ञदेवे जाण्युं माटे तेवी अवस्था थाय छे–एम पण नथी.
सर्वज्ञभगवान तो ज्ञापकप्रमाण छे, ते कांई पदार्थोना कारक नथी; कारक–