Atmadharma magazine - Ank 134-135
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: ७४ : आत्मधर्म : मागसर–पोष : २४८१ :
[२]
प्रवचन बीजाुं
[वीर सं. २४८० आसो सुद आठम]
[
३३] ‘जीव’ अजीवनो कर्ता नथी, –केम नथी?
आ सर्वविशुद्धज्ञान अधिकारमां क्रमबद्धपर्यायनुं वर्णन करीने आचार्यदेवे आत्मानुं अकर्तापणुं बताव्युं
छे. दरेक द्रव्य पोतपोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे छे ने तेमां ज ते तन्मय छे, पण बीजा द्रव्यनी पर्यायपणे
कोई उपजतुं नथी, एटले के कोई द्रव्य बीजा द्रव्यनी अवस्थानुं कर्ता नथी. ए उपरांत ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टिमां
क्रमबद्ध ऊपजतो जीव रागनो के कर्मनो कर्ता निमित्तपणे पण नथी, ए वात अहीं ओळखाववी छे.
जीव अजीवनो कर्ता नथी;––केम नथी? के अजीव पण पोताना क्रमबद्ध परिणामपणे ऊपजतुं थकुं तेमां
तद्रूप छे, ने जीव पोताना ज्ञायकभावनी क्रमबद्धपर्याये ऊपजतो थको ज्ञायक ज छे, तेथी ते रागादिनो कर्ता नथी
तेमज अजीव कर्मोनो निमित्त कर्ता पण नथी.
अहीं जीवने समजाववो छे के हे जीव! तुं ज्ञायक छो, तारी क्रमबद्धपर्याय ज्ञाता–द्रष्टापणे ज थवी जोईए,
तेने बदले तुं रागना कर्तापणे परिणमे छे ते तारुं अज्ञान छे.
[३४] कर्म साथेनो निमित्त–नैमित्तिक संबंध तोड्यो तेणे संसार तोड्यो.
जीव बीजाने परिणमावे, अने बीजो निमित्त थईने जीवने परिणमावे–एम अज्ञानी माने छे. वळी कोई
भाषा फेरवीने आम कहे छे के–“बीजो आ जीवने परिणमावे तो नहि, पण जेवुं निमित्त आवे तेवा निमित्तने
अनुसरीने जीव पोते स्वत: परिणमी जाय; नहितर निमित्त–नैमित्तिक संबंध ऊडी जाय छे! ” ––आम
माननारा पण अज्ञानी छे; एने हजी निमित्तने अनुसरवुं छे ने निमित्त साथे संबंध राखवो छे, पण
ज्ञायकस्वभावने नथी अनुसरवुं––एवा जीवोने माटे आचार्यदेव हवेनी गाथाओमां कहेशे के अज्ञानीने कर्म
साथेना निमित्त–नैमित्तिकभावने लीधे ज संसार छे. ज्ञानी तो ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टिमां निमित्तने अनुसरतो ज
नथी, ज्ञायकने ज अनुसरे छे; ज्ञायकस्वभावमां एकता करीने निमित्त साथेनो संबंध तेणे तोडी नांख्यो छे, तेथी
द्रष्टि अपेक्षाए तेने संसार छे ज नहीं.
[३प] ‘ईश्वर जगत्कर्ता,’ ने ‘आत्मा परनो कर्ता’ –ए बंने मान्यतावाळा सरखा!
निमित्त पामीने जीवनी पर्याय थाय, अथवा तो जीव निमित्त थईने बीजा जीवने बचावी द्ये––एवुं
कर्तृत्व माननारा, भले जैन नाम धरावता होय तो पण, ईश्वरने जगतना कर्ता माननारा लौकिकजनोनी माफक,
तेओ मिथ्याद्रष्टि ज छे. ––ए वात भगवान कुंदकुंदआचार्यदेव ३२१–२२–२३ मी गाथामां समजावशे.
[३६] ज्ञानीनी द्रष्टि अने ज्ञान.
पोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे द्रव्य पोते समये–समये ऊपजे ज छे, तेमां अन्य कर्तानी अपेक्षा नथी,
बीजाथी निरपेक्षपणे द्रव्यमां कर्ता–कर्मपणुं छे. द्रव्य पोतानी पर्यायने करे, त्यां भूमिका प्रमाणे निमित्त–नैमित्तिक