: मागसर–पोष : २४८१ : आत्मधर्म : ७७ :
तेनी साथे पूर्ण आनंद, वीर्य वगेरे... क्रमबद्ध परिणमी रह्या छे. ज्ञान अने ज्ञेय बंने व्यवस्थित–क्रमबद्ध
परिणमी रह्या छे छतां कोई कोईने फेरवतुं नथी, कोईने कारणे कोई नथी.
ज्ञेयोमां, पहेलां समये जे वर्तमानरूप छे ते बीजा समये भूतरूप थई जाय छे, ने भविष्य ते वर्तमानरूप
थतुं जाय छे, ए रीते ज्ञाननी पर्यायो पण पलटे छे, परंतु ज्ञान तो भूत–भविष्य ने वर्तमान त्रणेने एक साथे
जाणे छे, ते कांई क्रमथी नथी जाणतुं. अहीं पूरो ज्ञायकभाव, ने सामे बधा ज्ञेयो–एम ज्ञान अने ज्ञेयनी
परिणमनधारा चाली जाय छे, तेमां वच्चे भगवानने रागादि आवता नथी. अहीं केवळी भगवाननो दाखलो
आपीने एम समजाववुं छे के, जेम भगवान एकला ज्ञायकभावपणे ज परिणमे छे तेम साधकज्ञानी पण
पोताना ज्ञायक स्वभावना अवलंबने ज्ञायकभावपणे ज परिणमे छे; तेनुं ज्ञान, रागने ज्ञेयपणे जाणतुं प्रवर्ते
छे पण रागने अवलंबीने प्रवर्ततुं नथी. ‘भगवाननुं केवळज्ञान लोकालोकने अवलंबीने प्रवर्ते छे’ एम
कहेवाय, पण ते तो ज्ञानना परिपूर्ण सामर्थ्यनी विशाळता बताववा माटे कह्युं छे, केवळज्ञानमां कांई परनुं
अवलंबन नथी. तेम साधकना ज्ञानमां पोताना ज्ञायकस्वभाव सिवाय बीजा कोईनुं अवलंबन नथी.
केवळीभगवानने तो रागादिरूप व्यवहार रह्यो ज नथी, साधकने भूमिका अनुसार अल्परागादि छे ते
व्यवहारज्ञेयपणे छे; तेथी कह्युं के ‘व्यवहार जाणेलो ते काळे प्रयोजनवान छे’ पण साधकने ते व्यवहारनुं
अवलंबन नथी, अवलंबन तो अंतरना परमार्थभूत ज्ञायकस्वभावनुं ज छे. स्व–परप्रकाशक ज्ञानसामर्थ्यमां ते
ते काळनो व्यवहार अने निमित्तो ज्ञेयपणे छे.
[४३] ‘जीव’ केवो? अने जीवनी प्रभुता शेमां?
अहीं स्वभाव साथे अभेद थईने जे परिणाम ऊपज्या तेने ज जीव कह्यो छे, रागादिमां अभेद थईने
खरेखर ज्ञानी जीव ऊपजतो नथी. ज्ञायकभावना अवलंबने जे निर्मळ परिणाम ऊपज्या ते जीव साथे अभेद
छे तेथी ते जीव छे, तेमां रागनुं के अजीवनुं अवलंबन नथी तेथी ते अजीव नथी.
जुओ, आ जीवनी प्रभुता! प्रभो! तारी प्रभुतामां तुं छो, –रागमां के अजीवमां तुं नथी. तारी प्रभुता
तारा ज्ञायकस्वभावना अवलंबनमां छे, अजीवना अवलंबनमां तारी प्रभुता नथी; तारा ज्ञायकभावना
परिणमनमां तारी प्रभुता छे, रागना परिणमनमां तारी प्रभुता नथी. कोई भगवान जगतना नियामक छे–ए
वात तो जूठी छे, पण तारो ज्ञानस्वभाव स्व–परनो निश्चायक छे––निश्चय करनार छे, ––जाणनार छे. ज्ञेयनी
क्रमबद्ध अवस्थाने कारणे अहीं तेनुं ज्ञान थाय छे––एम नथी, तेमज ज्ञानने कारणे ज्ञेयोनुं क्रमबद्ध तेवुं
परिणमन थाय छे–एम पण नथी.
[४४] ‘पर्याये पर्याये ज्ञायकपणानुं ज काम. ’
जुओ, पालेज गामनुं स्टेशन बजारथी तद्न नजीकमां छे, घरे बेठा बेठा गाडीनो पावो संभळाय ने बे
मिनिटमां स्टेशन पहोंची जवाय–एटलुं नजीक छे. कोईवार गाडीमां जवुं होय ने जमवा बेठा होय त्यां गाडीनो
अवाज संभळाय; पहेलांं धीमे धीमे जमता होय, ने गाडी आववानी खबर पडतां ज उतावळथी जमवानी
ईच्छा थाय, ने कोळिया पण जलदीथी उपडवा मांडे, छतां बधुं क्रमबद्ध पोतपोताना कारणे ज छे.
गाडी आवी माटे ज्ञान थयुं––एम नथी, तेमज
ज्ञानने कारणे गाडी आवी नथी.
गाडी आववानुं ज्ञान थयुं माटे ते ज्ञानने
लीधे जलदी खावानी ईच्छा थई––एम नथी;
ज्ञानने लीधे के ईच्छाने लीधे खावानी क्रियामां
झडप आवी––एम पण नथी.
––दरेक द्रव्य स्वतंत्रपणे पोतपोतानी क्रमबद्ध लायकात प्रमाणे परिणमे छे, एम समजे तो ज्ञायकपणुं
थया विना रहे नहि.
ए ज प्रमाणे, कोई माणस फरवा जाय ने धीमे धीमे चालतो होय, पण ज्यां वरसाद आवे त्यां एकदम
झडपथी पग उपडवा मांडे, ––तेमां पण उपरना द्रष्टांतनी जेम जीव–अजीवना परिणमननी स्वतंत्रता समजी
लेवी, ने ए प्रमाणे सर्वत्र समजी लेवुं. लोकोमां कहेवत छे के ‘दाणे दाणे खानारनुं नाम’ तेम अहीं ‘पर्याये
पर्याये स्वकाळनुं नाम’ छे, अने आत्मामां ‘पर्याये पर्याये ज्ञायक–