: मागसर–पोष : २४८१ : आत्मधर्म : ७९ :
तेने पाप मनावे छे; जिनप्रतिमाना दर्शन वगेरेमां तेने पोताने शुभभाव थता होवा छतां, अने ज्ञानमां पण ते
वखते ‘आ शुभ छे’ एम आववा छतां, ऊंधी मान्यतानुं जोर ते शुभने पण पाप मनावे छे.
(४) वळी एक चोथो दाखलो लईए: दया, पूजा के व्रत वगेरेनो भाव ते शुभराग छे, ते कांई धर्म नथी;
छतां मिथ्याद्रष्टि तेने धर्म माने छे. ते शुभराग वखते अज्ञानीने पण ज्ञानमां तो एम आव्युं छे के ‘आ राग
थयो’ , पण कांई धर्म थयो–एम ज्ञानमां नथी आव्युं, एटले के राग वखते ते रागनुं ज ज्ञान थयुं छे, छतां
ऊंधी द्रष्टिने लीधे रागने ते धर्म माने छे. रागथी धर्म माननारने पोताने पण कांई रागथी धर्म थई जतो नथी,
छतां ऊंधी मान्यतानुं जोर तेने ए प्रमाणे मनावे छे.
–ते ऊंधी मान्यता केम टळे? –ए वात आचार्यदेव समजावे छे.
[४९] ज्ञायक सन्मुख था! –ए ज जैनमार्ग छे.
हे भाई! एकवार तुं स्वसन्मुख था, ने ज्ञायकस्वभावने प्रतीतमां लईने श्रद्धा–ज्ञानने साचा बनाव, –
तो तने बधुं सवळुं भासशे, ने तारी ऊंधी मान्यता टळी जशे. उपयोगने अंतरमां वाळीने ‘हुं ज्ञायक छुं’ एवुं
ज्यां सुधी वेदन न थाय त्यां सुधी सम्यग्दर्शन थाय नहि ने ऊंधी मान्यता टळे नहि. बस! ज्ञानने अंतरमां
वाळीने आत्मामां एकाग्र कर्युं तेमां आखो मार्ग समाई गयो, आखुं जैनशासन तेमां आवी गयुं.
[३]
प्रवचन त्रीजाुं
[वीर सं. २४८० आसो सुद नोम]
[प०] सम्यग्द्रष्टि–ज्ञाता शुं करे छे?
‘सर्वविशुद्धज्ञान’ कहो, के अभेदपणे ज्ञानात्मक शुद्ध द्रव्य कहो तेनो आ अधिकार छे. शुद्ध ज्ञायकद्रव्यनी
द्रष्टिथी सम्यग्ज्ञानीने ज्ञानमां शुं शुं थाय छे तेनुं आ वर्णन छे. सम्यग्दर्शन अर्थात् शुद्ध आत्मानुं ज्ञान थतां
जीव शुं करे छे?––अथवा तो सम्यग्द्रष्टि ज्ञानीनुं शुं कार्य छे? ते अहीं समजावे छे.
तत्त्वार्थश्रद्धान ते सम्यग्दर्शन छे; सात तत्त्वोमां जीवतत्त्व ज्ञायकस्वरूप छे. हुं ज्ञायकस्वरूप जीव छुं–एम
जाणतो समकीति पर्याये–पर्याये ज्ञाताभावे ज ऊपजे छे एटले ज्ञातापणानुं ज कार्य करे छे. ज्ञाता पोते क्षणेक्षणे
पोताने जाणतो थको ऊपजे छे. ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टिथी उपजतो ज्ञायक ज्ञाताद्रष्टापणानुं ज कार्य करे छे, ते क्षणे
वर्तता रागनो ते ज्ञायक छे पण तेनो कर्ता नथी. ज्ञाता ते काळे वर्तता रागादिने व्यवहारने जाणे छे, –ते रागने
कारणे नहि पण ते वखतना पोताना ज्ञानने कारणे ते रागने पण जाणे छे. आ रीते ज्ञानी जीव पोताना
क्रमबद्ध ज्ञानपरिणामे ऊपजे छे.
[प१] निमित्तनुं अस्तित्व कार्यनी पराधीनता नथी सूचवतुं.
अजीव पण पोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे स्वयं ऊपजे छे, कोई बीजो तेनो उपजावनार नथी. जुओ, घडो
थाय छे, त्यां माटीना परमाणुओ स्वयं ते पर्यायपणे ऊपजे छे, कुंभार तेने उपजावतो नथी. कुंभारे घडो
उपजाव्यो–एम कहेवुं ते तो फक्त निमित्तना संयोगनुं कथन छे. ‘निमित्त’