माने एवा जीवनुं ज्ञान परसन्मुखताथी खसीने स्वमां एकाग्र थाय ज नहि एटले तेने धर्मध्यान होय ज नहि;
परमां एकाग्रता वडे तेने तो ऊंधुंं ध्यान होय. ज्ञानी तो ज्ञायकनो अने क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय करीने, ज्ञायकमां
ज एकाग्रद्रष्टिथी क्रमबद्धज्ञातापणे ज परिणमे छे. ज्ञायकमां एकाग्रतानुं जे क्रमबद्ध परिणमन थयुं तेमां निश्चय
प्रतिक्रमण–प्रत्याख्यान–सामायिक–व्रत–तप वगेरे बधुं आवी गयुं. ज्ञाता तो क्रमबद्ध पोताना ज्ञायकभावपणे ज
परिणमे छे––ज्ञायकना अवलंबने ज परिणमे छे, त्यां निर्मळ पर्यायो थती जाय छे; वच्चे जे व्यवहारपरिणति
थाय छे तेने ज्ञान जाणे छे पण तेमां एकाग्र थईने वर्ततुं नथी, स्वभावमां एकाग्रपणे ज वर्ते छे, ने तेमां
जैनशासन आवी जाय छे.
लोको पासे धन वगेरेनो ‘अ भाव’ छे, अने धनवान लोको पासे तेनो ‘अति भाव’ छे, तेथी जगतमां
अथडामण अने कलेश थाय छे; जो अतिभाववाळा वधारानुं त्याग करीने अभाववाळाने आपी द्ये तो
‘समभाव’ थाय ने बधांने शांति थाय, ––माटे अमे अणुव्रतनो प्रचार करीए छीए.” ––ए बधी अज्ञानीनी
संयोगद्रष्टिनी वातो छे. कलेश के समभाव शुं संयोगने लीधे थाय छे? ––ए वात ज जूठी छे. ज्ञायक स्वभावे
बधा जीवो सरखा छे, तेथी ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टिमां ज खरो ‘समभाव’ छे; परनो आत्मामां ‘अभाव’ छे;
अने ‘विभाव’ छे ते उपाधि भाव होवाथी त्यागवा योग्य छे. आ सिवाय बाह्यमां ‘अभाव, अतिभाव ने
समभाव’ नी वात ते संयोगद्रष्टिनी वात छे, ते कांई साचो मार्ग नथी.
कोई समकीतिजीव चक्रवर्ती होय, छ खंडनो राजवैभव होय ने रोजना करोडो–अबजोनुं खर्च थतुं होय छतां तेने
पाप घणुं ज अल्प छे; अने खरेखर तो अखंड चैतन्यवैभवनी द्रष्टिमां तेने पाप नथी, ते ज्ञायकभावपणे ज
ऊपजे छे, अल्प रागादि छे ते तो ज्ञेयमां जाय छे, तेमां एकतापणे ज्ञानी ऊपजता नथी.
नथी माटे तेनो कर्ता नथी; आवुं अनेकान्तस्वरूप छे. आत्मा पोतानुं करे ने परनुं पण करे–एम अज्ञानी माने
छे पण एवुं वस्तुस्वरूप नथी. वस्तुनुं अनेकान्तस्वरूप ज एम पोकार करी रह्युं छे के आत्मा पोतानुं ज करे ने
परनुं त्रणकाळमां न करे. अज्ञानीओ विरोधनो पोकार करे तो करो, –पण तेथी कांई वस्तुस्वरूप फरी जाय तेम
नथी. ‘आप्तमीमांसा’ गा. ११० नी टीकामां कहे छे के–“
विरोधनो पोकार करे तेथी कांई वस्तुस्वरूप फरी जवानुं नथी. दरेक वस्तु पोताना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावरूप
स्वचतुष्टयपणे छे ने परना चतुष्टयपणे ते नथी, ––आवुं ज तेनुं अनेकान्तस्वरूप छे. परना चतुष्टयपणे
आत्मा अभावरूप छे, तो परमां ते शुं करे? अज्ञानीओ राडो पाडे तो पाडो, पण वस्तुस्वरूप तो आवुं ज छे.
तेम आ क्रमबद्धपर्याय बाबतमां पण अज्ञानीओ अनेक प्रकारे विरुद्ध माने छे, ते विरुद्ध माने