कदी बनतुं नथी.
बाह्यकारण अनुसार कार्यनी उत्पत्ति थाय तो तो अजीवना निमित्ते जीव पण अजीवरूप थई जशे! –पण एम
कदी बनतुं नथी, केमके बाह्यकारणथी कार्यनी उत्पत्ति थती नथी, अंतरंगकारणथी ज कार्यनी उत्पत्ति थाय छे. (–
जुओ, षटखंडागम पु. ६ पृ. १६४)
थयुं–ए वात क्यां रहे छे? अने निमित्त न होय तो न थाय––ए प्रश्न पण क्यां रहे छे? अहीं कार्य थवाने,
अने सामे निमित्त होवाने कांई समयभेद नथी. निमित्तनुं अस्तित्व कांई नैमित्तिक–कार्यनी पराधीनता नथी
बतावतुं; पण निमित्त कोनुं? –के नैमित्तिककार्य थयुं तेनुं;–एम ते नैमित्तिकने जाहेर करे छे. –आवी निमित्त
नैमित्तिकनी स्वतंत्रता पण जे न जाणे तेने तो स्व–परनुं भेदज्ञान नथी, अने अंतरनी ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टि
तो तेने होय ज नहि. अहीं तो ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टि थतां निमित्त साथेनो संबंध तूटी जाय छे–एवी सूक्ष्म
राग उपर द्रष्टि नहि होवाथी ज्ञानी रागना कर्ता नथी; ज्ञायकद्रष्टिमां ज्ञायकभावपणे पण ऊपजे ने रागपणे
पण ऊपजे–एम बनतुं नथी; ज्ञायक तो ज्ञायकपणे ज ऊपजे छे ने रागपणे ऊपजतो नथी, रागना ज्ञातापणे
उत्तर:– भाई, जगतमां अनंतानंत एवा सूक्ष्म परमाणुओ––छूटा तेमज स्कंधरूपे––छे के जेमने
पुद्गल स्कंधोने ज छे, पण तेनाथी अनंतगुणा परमाणुओ तो जीव साथे निमित्त–नैमित्तिक संबंध वगर ज
परिणमी रह्या छे. एक छूटो परमाणु एक अंशमांथी बे अंश लूखास के चीकासरूपे परिणमे, त्यां क्यो जीव
निमित्त छे? –तेने फक्त काळद्रव्य ज निमित्त छे. अज्ञानीने संयोगथी ज जोवानी द्रष्टि छे एटले वस्तुना
स्वाधीन परिणमनने ते जोतो नथी. (निमित्त न होय तो? ... शुं निमित्त विना थाय छे? –ईत्यादि प्रश्नोना
खूलासा माटे पहेली वखतना प्रवचनोमां नं १००–१०१, ११४ अने १प० जुओ)
ज्ञानस्वभावपणे उपजता जीवने मिथ्यात्वादि कर्मोनुं निमित्तकर्तापणुं पण नथी. जीवने अजीव साथे उत्पाद्य–
उत्पादकभावनो अभाव छे, एटले जीव पोताना ज्ञायकस्वभावपणे ऊपजतो थको, निमित्त थईने जड कर्मने पण
ऊपजावे–एम कदी बनतुं नथी.
उत्पादक छे, पण माटीमांथी घडारूप जे अवस्था थई तेनो उत्पादक कुंभार नथी, तेनो उत्पादक माटी ज छे––माटी
पोते ते अवस्थामां तन्मय थईने घडारूपे उपजी