Atmadharma magazine - Ank 134-135
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: ८६ : आत्मधर्म : मागसर–पोष : २४८१ :
जो कदी बाह्यकारणोथी कार्यनी उत्पत्ति थती होय तो चोखाना बीजमांथी घउंनी उत्पत्ति थवी जोईए, पण एम
कदी बनतुं नथी.
निमित्त ते बाह्यकारण छे; ते बाह्यकारणना कोई द्रव्यक्षेत्र–काळ के भाव एवा सामर्थ्यवाळा नथी के जेना
बळथी लीमडाना झाडमांथी आंबा पाके, के चोखामांथी घउं पाके, अथवा जीवमांथी अजीव थई जाय. जो
बाह्यकारण अनुसार कार्यनी उत्पत्ति थाय तो तो अजीवना निमित्ते जीव पण अजीवरूप थई जशे! –पण एम
कदी बनतुं नथी, केमके बाह्यकारणथी कार्यनी उत्पत्ति थती नथी, अंतरंगकारणथी ज कार्यनी उत्पत्ति थाय छे. (–
जुओ, षटखंडागम पु. ६ पृ. १६४)
[६८] निमित्त अने नैमित्तिकनी स्वतंत्रता.
द्रव्यमां कया समये परिणमन नथी? –अने जगतमां कया समये निमित्त नथी? जगतना दरेक द्रव्योमां
परिणमन समये समये थई ज रह्युं छे अने निमित्त पण सदाय होय ज छे;––तो पछी आ निमित्तने लीधे आ
थयुं–ए वात क्यां रहे छे? अने निमित्त न होय तो न थाय––ए प्रश्न पण क्यां रहे छे? अहीं कार्य थवाने,
अने सामे निमित्त होवाने कांई समयभेद नथी. निमित्तनुं अस्तित्व कांई नैमित्तिक–कार्यनी पराधीनता नथी
बतावतुं; पण निमित्त कोनुं? –के नैमित्तिककार्य थयुं तेनुं;–एम ते नैमित्तिकने जाहेर करे छे. –आवी निमित्त
नैमित्तिकनी स्वतंत्रता पण जे न जाणे तेने तो स्व–परनुं भेदज्ञान नथी, अने अंतरनी ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टि
तो तेने होय ज नहि. अहीं तो ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टि थतां निमित्त साथेनो संबंध तूटी जाय छे–एवी सूक्ष्म
वात छे. ज्ञानीनी द्रष्टिमां कर्म साथेनो निमित्त–नैमित्तिक संबंध छूटी गयो छे.
[६९] ज्ञायकद्रष्टिमां ज्ञानीनुं अकर्तापणुं.
ज्ञायकभावे ऊपजता जीवने पर साथे कार्यकारणपणुं नथी, एटले के ते नवा कर्मने बंधावामां निमित्त
थतो नथी तेम ज जुनां कर्मोने निमित्त बनावतो नथी. कोई पूछे के रागनो तो कर्ता छे ने? तो कहे छे के ना;
राग उपर द्रष्टि नहि होवाथी ज्ञानी रागना कर्ता नथी; ज्ञायकद्रष्टिमां ज्ञायकभावपणे पण ऊपजे ने रागपणे
पण ऊपजे–एम बनतुं नथी; ज्ञायक तो ज्ञायकपणे ज ऊपजे छे ने रागपणे ऊपजतो नथी, रागना ज्ञातापणे
ऊपजे छे.
[७०] जीवना निमित्त विना पुद्गलनुं परिणमन.
प्रश्न:– पुद्गल तो अजीव छे, कांई जीवना निमित्त विना तेनी अवस्था थाय?
उत्तर:– भाई, जगतमां अनंतानंत एवा सूक्ष्म परमाणुओ––छूटा तेमज स्कंधरूपे––छे के जेमने
परिणमनमां काळद्रव्य ज निमित्त छे, जीवनुं निमित्तपणुं नथी. जीव साथे निमित्त–नैमित्तिक संबंध तो अमुक
पुद्गल स्कंधोने ज छे, पण तेनाथी अनंतगुणा परमाणुओ तो जीव साथे निमित्त–नैमित्तिक संबंध वगर ज
परिणमी रह्या छे. एक छूटो परमाणु एक अंशमांथी बे अंश लूखास के चीकासरूपे परिणमे, त्यां क्यो जीव
निमित्त छे? –तेने फक्त काळद्रव्य ज निमित्त छे. अज्ञानीने संयोगथी ज जोवानी द्रष्टि छे एटले वस्तुना
स्वाधीन परिणमनने ते जोतो नथी. (निमित्त न होय तो? ... शुं निमित्त विना थाय छे? –ईत्यादि प्रश्नोना
खूलासा माटे पहेली वखतना प्रवचनोमां नं १००–१०१, ११४ अने १प० जुओ)
[७१] ज्ञायकभावपणे ऊपजतो ज्ञानी कर्मनो निमित्तकर्ता पण नथी.
अहीं तो ‘सर्वविशुद्धज्ञान’ नी एटले जीवना स्वभावनी वात चाले छे. जीवनो ज्ञानस्वभाव छे ते
परनो अकर्ता छे. ––निमित्तपणे पण ते परनो अकर्ता छे. परमां अहीं मुख्यपणे मिथ्यात्वादि कर्मनी वात छे.
ज्ञानस्वभावपणे उपजता जीवने मिथ्यात्वादि कर्मोनुं निमित्तकर्तापणुं पण नथी. जीवने अजीव साथे उत्पाद्य–
उत्पादकभावनो अभाव छे, एटले जीव पोताना ज्ञायकस्वभावपणे ऊपजतो थको, निमित्त थईने जड कर्मने पण
ऊपजावे–एम कदी बनतुं नथी.
सर्वे द्रव्योने बीजा द्रव्यो साथे उत्पाद्य–उत्पादकभावनो अभाव छे. दरेक द्रव्य पोताना क्रमबद्ध परिणामनुं
उत्पादक छे पण बीजाना परिणामनुं उत्पादक नथी. जेम के कुंभार पोताना हाथनी हलन–चलनरूप अवस्थानो
उत्पादक छे, पण माटीमांथी घडारूप जे अवस्था थई तेनो उत्पादक कुंभार नथी, तेनो उत्पादक माटी ज छे––माटी
पोते ते अवस्थामां तन्मय थईने घडारूपे उपजी