: ८८ : आत्मधर्म : मागसर–पोष : २४८१ :
व्यवहारनो! अभाव थशे तो वीतरागता थशे. पण व्यवहारना अवलंबननी ज जेने रुचि अने होंस छे तेने
तो ज्ञायकस्वभाव तरफ वळीने सम्यग्दर्शन करवानो पण अवकाश नथी. अंतरमां ज्ञायकस्वभावना अवलंबन
विना पोतानी क्रमबद्धपर्यायमां सम्यग्दर्शनादि निर्मळ पर्याय थाय नहि. ज्ञानी तो पोताना ज्ञायकस्वभावना
अवलंबने ज सम्यग्दर्शनादि निर्मळ क्रमबद्धपर्यायरूपे परिणमे छे, एनुं नाम धर्म अने मोक्षनो मार्ग छे.
[प]
प्रवचन पांचमुं
[वीर सं. २४८० आसो सुद अगीयारस]
[७प] क्रमबद्धपर्याय क्यारनी छे? –अने ते निर्मळ क्यारे थाय?
आत्मा ज्ञायकस्वभाव छे, ते परनो अकर्ता छे; ते बताववा माटे आ क्रमबद्धपर्यायनी वात चाले छे.
प्रश्न:– आ क्रमबद्धपर्याय क्यारनी चाले छे?
उत्तर:– अनादिथी चाले छे. जेम द्रव्य अनादि छे तेम तेनी पर्यायनो क्रम पण अनादिथी चाली ज रह्यो
छे. जेटला त्रणकाळना समयो छे तेटली ज दरेक द्रव्यनी पर्यायो छे.
प्रश्न:– अनादिथी क्रमबद्धपर्याय थया करती होवा छतां हजी निर्मळपर्याय केम न थई?
उत्तर:– बधा जीवोने अनादिथी क्रमबद्धपर्याय थती होवा छतां, ज्ञायक तरफना सवळा पुरुषार्थ वगर
निर्मळ पर्याय थई जाय–एम कदी बनतुं नथी. ऊंधो पुरुषार्थ होय त्यां क्रमबद्धपर्याय पण विकारी ज होय छे.
अज्ञानीने ज्ञायकस्वभावना भान वगर क्रमबद्धपर्यायनी साची प्रतीत नथी, अने ज्ञायकस्वभावना पुरुषार्थ
वगर निर्मळ पर्याय थती नथी. ज्ञानीने पोताना ज्ञायकस्वभावनी प्रतीत थतां क्रमबद्धपर्यायनी पण साची
प्रतीत छे, अने ज्ञायकस्वभाव–सन्मुखता पुरुषार्थ वडे तेने निर्मळ क्रमबद्धपर्याय थाय छे. आ रीते
ज्ञायकस्वभावसन्मुखनो पुरुषार्थ करवानो आ उपदेश छे––आवुं समजे ते ज क्रमबद्धपर्याय समज्यो छे.
[७६] क्रमबद्धपर्यायना निर्णयनुं मूळ.
‘क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे छे...’
––कोण ऊपजे छे?
‘द्रव्य ऊपजे छे...’
––केवुं द्रव्य?
‘ज्ञायकस्वभावी द्रव्य.’
जेने आवा द्रव्यस्वभावनी सन्मुखता थाय तेने ज क्रमबद्धपर्याय यथार्थ समजाय छे. आ रीते
ज्ञायकस्वभावनी सन्मुखता ते ज क्रमबद्धपर्यायना निर्णयनुं मूळ छे.
[७७] अत्यारे पर्यायनुं परमां ‘अकर्तापणुं’ सिद्ध करवानी मुख्यता छे, निरपेक्षपणुं सिद्ध
करवानी मुख्यता नथी.
अहीं, पर्यायनुं परमां अकर्तापणुं बताववुं छे तेथी ‘द्रव्य ऊपजे छे’ ए वात लीधी छे; द्रव्य पोतानी
क्रमबद्धपर्यायपणे ऊपजे छे, ने ऊपजतुं थकुं ते पर्यायमां ते तन्मय छे, ––ए रीते द्रव्य–पर्याय बंनेनी अभेदता
बतावीने परनुं अकर्तापणुं सिद्ध कर्युं छे.