: ९४ : आत्मधर्म : मागसर–पोष : २४८१ :
माटे परप्रकाशकपणाने व्यवहार कह्यो छे. परप्रकाशकपणानुं ज्ञाननुं जे सामर्थ्य छे ते कांई व्यवहारथी नथी, ते तो
निश्चयथी पोतानुं स्वरूप छे. भगवानना केवळज्ञानमां त्रण काळना पदार्थोनी नोंध छे. पं. राजमल्लजी
समयसार कलशनी टीकामां कहे छे के: संसारी जीवोमां एक भव्यराशि छे ने एक अभव्यराशि छे; तेमां
अभव्यराशि जीव तो त्रण काळमां मोक्ष पामता नथी, भव्य जीवोमांथी केटलाक जीवो मोक्ष जवाने योग्य छे;
अने तेनो मोक्ष पहोंचवानो काळ परिणाम छे अर्थात् आ जीव आटलो काळ वीत्ये मोक्ष जशे––एवी नोंध
केवळज्ञानमां छे. –– ‘यह जीव इतना काल वीत्या मोक्ष जासै–इसौ न्यौधु केवलज्ञान मांहे छै’ (पृष्ठ १०)
केवळी भगवानना ज्ञानमां त्रणकाळ त्रणलोकनी बधी नोंध छे. जे जीवने अंर्तस्वभावना ज्ञाननो पुरुषार्थ
थयो तेने अल्पकाळमां मोक्ष थवानो छे एम केवळज्ञाननी नोंधमां आवी गयुं छे. जेना ज्ञानमां सर्वज्ञ भगवान
बेठा तेनी मुक्ति भगवानना ज्ञानमां लखाई गई.
प्रश्न:– केवळी भगवानने विकल्प तो नथी, तो विकल्प वगर परने शी रीते जाणे?
उत्तर:– परने जाणतां केवळीने कांई पर तरफ उपयोग नथी मूकवो पडतो; पण पोतानुं ज्ञानसामर्थ्य जे
एवुं स्व–पर प्रकाशक खीली गयुं छे के स्व–पर बधुं एक साथे––विकल्प वगर–ज्ञानमां जणाय छे. परने जाणवुं
ते कांई विकल्प नथी. (ज्ञानने सविकल्प कहेवाय छे तेमां जुदी अपेक्षा छे. अहीं रागरूप विकल्पनी वात छे.)
केवळी भगवानने ज्ञाननुं सामर्थ्य ज एवुं परिणमी रह्युं छे के रागना विकल्प वगर ज स्व–पर बधुं प्रत्यक्ष
जणाय छे.
अहो आत्मानो ज्ञानस्वभाव छे, ते स्वभावमांथी जे केवळज्ञान खील्युं तेनुं अचिंत्य सामर्थ्य छे. ते
केवळज्ञान––
अस्पष्ट जाणे नहि,
विकल्पथी जाणे नहि,
परसन्मुख थईने जाणे नहि,
छतां जाण्या विनानुं कांई पण रहे नहि.
––आवुं केवळज्ञान छे!
आवा केवळज्ञानने यथार्थपणे ओळखे तो आत्माना ज्ञायकस्वभावनी सन्मुखता थईने सम्यग्दर्शन थया
विना रहे नहि. प्रवचनसारनी ८०मी गाथामां आचार्य भगवाने ए ज वात अलौकिक रीते करी छे.
[८८] भविष्यनी पर्याय थया पहेलांं केवळज्ञान तेने कई रीते जाणे? –तेनो खुलासो.
प्रश्न:– भविष्यनी जे पर्यायो थई नथी पण भविष्यमां थवानी छे, तेने ज्ञान वर्तमानमां जाणे?
उत्तर:– हा; केवळज्ञान एक समयनी वर्तमान पर्यायमां त्रणेकाळनुं बधुं जाणी ले छे.
प्रश्न:– तो शुं भविष्यमां जे पर्याय थवानी छे तेने वर्तमानमां प्रगट रूप जाणे?
उत्तर:– भविष्यनी पर्यायने भविष्यरूपे जाणे, पण कांई ते पर्याय वर्तमानमां प्रगट वर्ते छे––एम न जाणे.
जाणे तो बधुं वर्तमानमां, पण जेम होय तेम जाणे. भविष्यमां जे थवानुं होय तेने अत्यारे भविष्यरूपे जाणे.
प्रश्न:– ज्ञानमां भविष्यनी पर्यायने पण जाणवानी शक्ति छे, एटले ज्यारे ते पर्याय थशे त्यारे ज्ञान
तेने जाणशे, ––ए प्रमाणे छे?
उत्तर:– ना; एम नथी. भविष्यने पण जाणवानुं कार्य तो वर्तमानमां ज छे, ते कांई भविष्यमां नथी.
जेमके अमुक जीवने अमुक वखते भविष्यमां केवळज्ञान थवानुं छे, तो ज्ञान वर्तमानमां एम जाणे के आ जीवने
आ समये आवी पर्याय थशे. पण ज्ञान कांई एम न जाणे के आ जीवने अत्यारे केवळज्ञान पर्याय व्यक्त वर्ते
छे! तेम ज भविष्यनी ते पर्याय थाय त्यारे ज्ञान तेने जाणशे––एम पण नथी. भविष्यनी पर्यायने भविष्यनी
पर्याय तरीके वर्तमानमां ज ज्ञान जाणे छे. जेम भूतकाळनी पर्याय अत्यारे वर्तती न होवा छतां वर्तमान ज्ञान
तेने जाणे छे, तेम भविष्यनी पर्याय अत्यारे वर्तती न होवा छतां ज्ञान तेने प्रत्यक्ष जाणे छे.
[८९] केवळीने क्रमबद्ध, ने छद्मस्थने अक्रम, –एम नथी.
प्रश्न:– ‘बधुं क्रमबद्ध छे’ ए वात केवळी भगवानने माटे बराबर छे, केवळी भगवाने बधुं जाण्युं छे
तेथी तेमने माटे तो बधुं क्रमबद्ध ज छे; परंतु छद्मस्थने तो पूरुं ज्ञान नथी, तेथी तेने माटे बधुं क्रमबद्ध नथी,
छद्मस्थने तो फेरफार पण थाय, –ए प्रमाणे कोई कहे, तो ते बराबर छे?
उत्तर:– ना; ए वात बराबर नथी. वस्तुस्वरूप बधाने माटे एक सरखुं ज छे, केवळीने माटे जुदुं वस्तुस्वरूप