: मागसर–पोष : २४८१ : आत्मधर्म : ९९ :
केवळज्ञाननी श्रद्धा तो थई गई अर्थात् श्रद्धापणे केवळज्ञान थयुं.
श्रीमद् राजचंद्रजीए पण कह्युं छे के–“जो कदी प्रगटपणे वर्तमानमां केवळज्ञाननी उत्पत्ति थई नथी पण
जेना वचनना विचारयोगे शक्तिपणे केवळज्ञान छे––एम स्पष्ट जाण्युं छे,
–एम श्रद्धापणे केवळज्ञान थयुं छे,
–विचारदशाए केवळज्ञान थयुं छे,
–ईच्छादशाए केवळज्ञान थयुं छे;
–मुख्यनयना हेतुथी केवळज्ञान वर्ते छे,
–ते केवळज्ञान सर्व अव्याबाध सुखनुं प्रगट करनार, जेना योगे सहजमात्रमां जीव पामवा योग्य थयो
ते सत्पुरुषना उपकारने सर्वोत्कृष्ट भक्तिए नमस्कार हो! नमस्कार हो! ”
जुओ, आटला टुकडामां केटली गंभीरता छे!!
• सौथी पहेलांं एम कह्युं के “जो कदी प्रगटपणे वर्तमानमां केवळज्ञाननी उत्पत्ति थई नथी” ––ए
कथनमां ए वात पण गर्भित राखी छे के वर्तमान प्रगट नथी पण शक्तिपणे छे, अने वर्तमान प्रगट नथी पण
भविष्यमां अल्पकाळमां केवळज्ञन प्रगट थवानुं छे.
• पछी कह्युं के: “जेना वचनना विचारयोगे शक्तिपणे केवळज्ञान छे एम स्पष्ट जाण्युं छे.” केवळज्ञान
प्रगट न होवा छतां केवळज्ञान प्रगटवानुं सामर्थ्य मारामां छे––एम जाण्युं छे, ––स्पष्ट जाण्युं छे एटले के स्व
सन्मुख थईने निःशंक जाण्युं छे. कोणे जाण्युं? ––के वर्तमानपर्याये ते जाण्युं. सर्वज्ञतानुं सामर्थ्य मारामां छे एम
पहेलांं नहोतुं जाण्युं, ने हवे स्वसन्मुख थईने एटले पर्यायमां निर्मळतानो क्रम शरू थई गयो.
मारी शक्तिमां केवळज्ञान छे––एम ‘स्पष्ट’ जाण्युं छे एटले के रागना अवलंबन वगर जाण्युं छे, ––
स्वभावना अवलंबनथी जाण्युं छे, स्वसंवेदनथी जाण्युं छे.
• जाणवामां निमित्त कोण? तो कहे छे के “जेनां वचनना विचारयोगे... जाण्युं छे” जेनां वचन एटले
केवळी भगवान, गणधरदेव, कुंदकुंदआचार्य आदि संतोमुनिओ, तेम ज समकीति–ए बधानां वचनो तेमां आवी
जाय छे. अज्ञानीनी वाणी तेमां निमित्त न होय, समकीतिथी मांडीने केवळीभगवान सुधीना बधायनी वाणी
अविरुद्ध छे; जेवी केवळीभगवाननी वाणी छे तेवी ज समकीतिनी वाणी छे, भले केवळीभगवाननी वाणीमां
घणुं आवे ने समकीतिनी वाणीमां थोडुं आवे, पण बंनेनो अभिप्राय तो एक ज छे.
अने, “जेनां वचनना विचारयोगे... जाण्युं” ––एमां ‘विचारयोग’ ते पोताना उपादाननी तैयारी
बतावे छे. ज्ञानीनां वचन ते निमित्त, अने ते वचनने झीलीने समजवानी योग्यता पोतानी, ––ए रीते
उपादान–निमित्त बंनेनी वात आवी गई छे.
वर्तमानपर्यायमां केवळज्ञान न होवा छतां, तारा स्वभावमां केवळज्ञाननुं सामर्थ्य छे––एम ज्ञानीनां
वचन बतावे छे; एटले तारामां जे शक्ति पडी छे तेना अवलंबने तारुं केवळज्ञान प्रगटशे, बीजा कोईना
(निमित्तना के व्यवहारना) अवलंबने केवळज्ञान नहि थाय, –आम ज्ञानी बतावे छे, एनाथी विरुद्ध जे कहेता
होय ते वचन ज्ञानीनां नथी.
• ‘जो कदी प्रगटपणे वर्तमानमां केवळज्ञाननी उत्पत्ति थई नथी, पण जेना वचनना विचारयोगे
शक्तिपणे केवळज्ञान छे एम स्पष्ट जाण्युं छे’ ––एम जाणतां शुं थयुं? ते हवे कहे छे:–
‘––एम श्रद्धापणे केवळज्ञान थयुं छे...’
केवळज्ञान प्रगट न होवा छतां तेनी श्रद्धा तो प्रगटी छे, एटले श्रद्धापणे केवळज्ञान थयुं छे. जुओ,
अज्ञानीओ तो कहे छे के “भव्य–अभव्यनो निर्णय आपणाथी न थई शके, ते केवळी जाणे,” त्यारे अहीं तो कहे
छे के केवळज्ञाननो निर्णय थई गयो छे, श्रद्धामां केवळज्ञान थई गयुं छे. जेमांथी केवळज्ञान प्रगटवानुं छे एवो
अखंड ज्ञायकस्वभाव ज्यां प्रतीतमां आवी गयो त्यां श्रद्धापणे केवळज्ञान थयुं छे.
• ‘श्रद्धा’ नी वात करी, हवे ज्ञान, –चरित्रनी वात करे छे.
“––विचारदशाए केवळज्ञान थयुं छे,” “ईच्छादशाए केवळज्ञान थयुं छे...”
विचारदशाए केवळज्ञान थयुं छे एटले केवळज्ञान केवुं होय ते ज्ञानमां आवी गयुं छे–सर्वज्ञतानो निर्णय
थई गयो छे तथा ईच्छादशाए केवळज्ञान थयुं छे एटले के भावना