Atmadharma magazine - Ank 134-135
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: मागसर–पोष : २४८१ : आत्मधर्म : १०१ :
‘केवळज्ञान’ साथे क्रमबद्धपर्यायनी संधि करावनारा
आ तेरे प्रवचनो जयवंत वर्तो.
ज्ञायकस्वभाव अने क्रमबद्धपर्यायनुं अलौकि रहस्य
समजावीने, केवळज्ञान – मार्गना प्रकाशनार
श्री कहान गुरुदेवनी जय हो.
‘ज्ञायक सन्मुखनी क्रमबद्धपर्याय’ उपर,
परम कृपाळु पू. गुरुदेवनां जे आ अतिशय
महत्त्वनां तेर प्रवचनो छे, ते प्रवचनोनां
लखाणमां पू. गुरुदेवनो आशय बराबर जळवाई
रहे ते माटे मने पू. बेनश्रीबेनजी तरफथी जे
खास सहाय मळी छे तेनो उल्लेखपूर्वक अहीं
भक्तिपूर्वक तेओश्रीनो उपकार मानुं छुं.
हरिलाल जैन