प२ द्रष्टि अनुसार क्रमबद्धपर्याय थाय छे.
प३ ‘ज्ञायक’ ना लक्ष वगर एक पण न्याय साचो न
पप जीव के अजीव बधानी पर्याय क्रमबद्ध छे, तेने जाणतो
प७ सर्वे द्रव्योमां ‘अकार्यकारणशक्ति.’
प८ पुद्गलमां क्रमबद्धपर्याय होवा छतां...
प९ क्रमबद्धपर्याय नहि समजनारनी केटलीक भ्रमणाओ.
६० जीवना कारण वगर ज अजीवनी क्रमबद्धपर्याय.
६२ क्रमबद्धपर्यायमां शुद्धतानो क्रम क्यारे चालु थाय?
६३ अकर्तापणुं सिद्ध करवा क्रमबद्धपर्यायनी वात केम
६प वस्तुस्वरूपनो एक ज नियम.
६६
क्रमबद्धपर्यायनी ओथ लईने बचाव करवा मांगे ते
६८ क्रमबद्धपर्यायमां भूमिका अनुसार प्रायश्चितदिनो
७० अनेकान्त क्यां अने कई रीते लागु पडे? (सिद्धनुं
७२ क्रमबद्धपर्यायनो ज्ञाता कोण?
७३ भाषानो उत्पादक जीव नथी.
७४ ज्ञायकने ज जाणवानी मुख्यता.
७प ‘ईष्टोपदेश!’ नी वात;–क्यो उपदेश ईष्ट छे?
७६ आत्मानुं ज्ञायकपणुं ने पदार्थोना परिणमनमां
७८ आ लोकोत्तर द्रष्टिनी वात छे, आनाथी विपरीत
८० अंदर नजर करतां बधो निर्णय थाय छे.
८१ ज्ञाता स्व–परने जाणतो थको ऊपजे छे.
८४ क्रमबद्ध परिणाममां छ छ कारक.
८प ––आ वात कोने बेसे?
८६ ‘करे छतां अकर्ता’ ––एम नथी.
८७ जो कुंभार घडाने करे तो...
८८ ‘योग्यता’ क्यारे मानी कहेवाय?
८९ क्रमबद्धनो निर्णय करनारने ‘अभाग्य’ होय ज नहि.
९० स्वाधीनद्रष्टिथी जोनार–ज्ञाता.
९१ संस्कारनुं सार्थकपणुं, ––छतां पर्यायनुं क्रमबद्धपणुं.
९२ क्रमबद्धपर्यायनो ज्ञाता कोण?
९४
९६ आचार्य देवना अलौकिक मंत्रो.
९७ स्पष्ट अने मूळभूत वात– ‘ज्ञानशक्तिनो विश्वास’
९८ अहो! ज्ञातानी क्रमबद्ध धारा.
९९ ज्ञानना निर्णयमां क्रमबद्धनो निर्णय.
१०० ‘निमित्त न आवे तो?’ –आम कहेनार माणस
१०२ शास्त्रोना उपदेश साथे क्रमबद्धपर्यायनी संधि.
१०३ स्वयं प्रकाशी ज्ञायक.
१०४ दरेक द्रव्य ‘निज–भवन’ मां ज बिराजे छे.
१०प आ वात नहि समजनाराओनी केटलीक भ्रमणाओ.
१०६ ‘ज्ञानी शुं करे छे’ –ते अंर्तद्रष्टि विना ओळखाय
१०८ अभाव छे त्यां ‘प्रभाव’ कई रीते पाडे?
१०९ दरेक द्रव्य पोतानी क्रमबद्धपर्याय साथे तद्रूप छे.
१११ कर्मना कर्तापणानो व्यवहार कोने लागु पडे?
११२ वस्तुनो कार्यकाळ.
११३ निषेध कोनो? निमित्तनो निमित्ताधीन द्रष्टिनो?
११४ योग्यता अने निमित्त.