Atmadharma magazine - Ank 134-135
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: मागसर–पोष : २४८१ : आत्मधर्म : १०३ :
प० पर्यायमां अनन्यपणुं होवाथी, पर्याय पलटतां द्रव्य
पण पलटे छे, घंटीना नीचला पडनी जेम ते सर्वथा
कूटस्थ नथी.
प१ जीवनुं साचुं जीवतर.
प२ द्रष्टि अनुसार क्रमबद्धपर्याय थाय छे.
प३ ‘ज्ञायक’ ना लक्ष वगर एक पण न्याय साचो न
आवे.
प४ “पदार्थनुं परिणमन व्यवस्थित के अव्यस्थित?”
पप जीव के अजीव बधानी पर्याय क्रमबद्ध छे, तेने जाणतो
ज्ञानी तो ज्ञाताभावपणे ज क्रमबद्ध ऊपजे छे.
प६ अजीव पण तेनी क्रमबद्धपर्यायपणे स्वयं ऊपजे छे.
प७ सर्वे द्रव्योमां ‘अकार्यकारणशक्ति.’
प८ पुद्गलमां क्रमबद्धपर्याय होवा छतां...
प९ क्रमबद्धपर्याय नहि समजनारनी केटलीक भ्रमणाओ.
६० जीवना कारण वगर ज अजीवनी क्रमबद्धपर्याय.
प्रवचन त्रीजुं
६१ अधिकारनी स्पष्टता.
६२ क्रमबद्धपर्यायमां शुद्धतानो क्रम क्यारे चालु थाय?
६३ अकर्तापणुं सिद्ध करवा क्रमबद्धपर्यायनी वात केम
लीधी?
६४ क्रमबद्ध छे तो उपदेश केम?
६प वस्तुस्वरूपनो एक ज नियम.
६६
ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टि प्रगट कर्या विना,
क्रमबद्धपर्यायनी ओथ लईने बचाव करवा मांगे ते
मोटो स्वछंदी छे.
६७ अजर... प्याला!
६८ क्रमबद्धपर्यायमां भूमिका अनुसार प्रायश्चितदिनो
भाव होय छे.
६९ क्रम–अक्रम संबंधमां अनेकान्त अने सप्तभंगी.
७० अनेकान्त क्यां अने कई रीते लागु पडे? (सिद्धनुं
द्रष्टांत)
७१ ट्रेईनना द्रष्टांते शंका अने तेनुं समाधान.
७२ क्रमबद्धपर्यायनो ज्ञाता कोण?
७३ भाषानो उत्पादक जीव नथी.
७४ ज्ञायकने ज जाणवानी मुख्यता.
७प ‘ईष्टोपदेश!’ नी वात;–क्यो उपदेश ईष्ट छे?
७६ आत्मानुं ज्ञायकपणुं ने पदार्थोना परिणमनमां
क्रमबद्धपणुं.
७७ आवी छे साधकदशा! ––एक साथे दस बोल.
७८ आ लोकोत्तर द्रष्टिनी वात छे, आनाथी विपरीत
माने ते लौकिकजन छे.
७९ समजवा माटे एकाग्रता.
८० अंदर नजर करतां बधो निर्णय थाय छे.
८१ ज्ञाता स्व–परने जाणतो थको ऊपजे छे.
८२ लोकोत्तर द्रष्टिनी वात समजवा माटे ज्ञाननी
एकाग्रता.
८३ समकीति निर्मळ क्रमबद्धपर्यायपणे ज ऊपजे छे.
८४ क्रमबद्ध परिणाममां छ छ कारक.
८प ––आ वात कोने बेसे?
८६ ‘करे छतां अकर्ता’ ––एम नथी.
८७ जो कुंभार घडाने करे तो...
८८ ‘योग्यता’ क्यारे मानी कहेवाय?
८९ क्रमबद्धनो निर्णय करनारने ‘अभाग्य’ होय ज नहि.
९० स्वाधीनद्रष्टिथी जोनार–ज्ञाता.
९१ संस्कारनुं सार्थकपणुं, ––छतां पर्यायनुं क्रमबद्धपणुं.
९२ क्रमबद्धपर्यायनो ज्ञाता कोण?
प्रवचन चोथुं
९३ क्रमबद्धपर्यायना निर्णयमां सात तत्त्वोनी श्रद्धा.
९४
सदोष आहार छोडवानो उपदेश अने
क्रमबद्धपर्याय–तेने मेळ.
९प क्रमबद्धपर्यायना निर्णयमां जैनशासन.
९६ आचार्य देवना अलौकिक मंत्रो.
९७ स्पष्ट अने मूळभूत वात– ‘ज्ञानशक्तिनो विश्वास’
९८ अहो! ज्ञातानी क्रमबद्ध धारा.
९९ ज्ञानना निर्णयमां क्रमबद्धनो निर्णय.
१०० ‘निमित्त न आवे तो?’ –आम कहेनार माणस
निमित्तने जाणतो नथी.
१०१ ‘निमित्त विना न थाय’ ––एनो आशय शुं?
१०२ शास्त्रोना उपदेश साथे क्रमबद्धपर्यायनी संधि.
१०३ स्वयं प्रकाशी ज्ञायक.
१०४ दरेक द्रव्य ‘निज–भवन’ मां ज बिराजे छे.
१०प आ वात नहि समजनाराओनी केटलीक भ्रमणाओ.
१०६ ‘ज्ञानी शुं करे छे’ –ते अंर्तद्रष्टि विना ओळखाय
नहि.
१०७ बे लीटीमां अद्भुत रचना!
१०८ अभाव छे त्यां ‘प्रभाव’ कई रीते पाडे?
१०९ दरेक द्रव्य पोतानी क्रमबद्धपर्याय साथे तद्रूप छे.
प्रवचन पांचमुं
११० क्रमबद्धपर्याये ऊपजतो ज्ञायक परनो अकर्ता छे.
१११ कर्मना कर्तापणानो व्यवहार कोने लागु पडे?
११२ वस्तुनो कार्यकाळ.
११३ निषेध कोनो? निमित्तनो निमित्ताधीन द्रष्टिनो?
११४ योग्यता अने निमित्त.
(बधा निमित्तो धर्मास्तिकायवत् छे.)
११प दरेक द्रव्यनुं स्वतंत्र परिणमन जाण्या विना
भेदज्ञान थाय नहि.
११६ पर्यायमां जे तन्मय होय ते ज तेनो कर्ता.