११८ निश्चय–व्यवहारनो जरूरी खुलासो.
११९ क्रमबद्धपर्यायनुं मूळियुं.
१२० क्रमबद्धपर्यायमां शुं शुं आव्युं?
१२१ ज्यां रुचि त्यां जोर.
१२२ तद्रूप अने कद्रूप; (ज्ञानीने दिवाळी, अज्ञानीने
१२४ ‘–विरला बूझे कोई?’
१२प अहीं सिद्ध करवुं छे––आत्मानुं अकर्तापणुं.
१२६ ‘एकनो कर्ता ते ‘बे’ नो कर्ता नथी. (ज्ञायकना
१२९ द्रष्टि पलटावीने सम्यग्दर्शन प्रगट करे ते ज आ
१३१ ‘
१३प ‘मात्र द्रष्टिकी भूल है.’
१३६ ‘पुरुषार्थ’ ऊडे नहि... ने ‘क्रम’ पण तूटे नहि.
१३७ अज्ञानीए शुं करवुं?
१३८ एक वगरनुं बधुंय खोटुं.
१३९ पंच तरीके परमेष्ठी, अने तेनो फेंसलो.
१४० जीवना अकर्तापणानी न्यायथी सिद्धि.
१४१ अजीवमां पण अकर्तापणुं.
१४२ “––निमित्तकर्ता तो खरो ने?”
१४३ ज्ञातानुं कार्य.
१४४ ‘अकार्यकारणशक्ति’ अने पर्यायमां तेनुं परिणमन.
१४प आत्मा परनो उत्पादक नथी.
१४६ ‘बधा माने तो साचुं’ ––आ वात खोटी (साचा
१४८ कर्ता–कर्मनुं अन्यथी निरपेक्षपणुं.
१४९ सर्वत्र उपादाननुं ज बळ.
१प० “––निमित्त विना...??”
१प१ आ उपदेशनुं तात्पर्य अने तेनुं फळ.
१प३ ‘क्रमबद्ध’ अने ‘कर्मबंध’ !
१प४ ‘ज्ञायक’ अने ‘क्रमबद्ध’ बंनेनो निर्णय एक साथे.
१पप आ वात कोने परिणमे?
१प६ धर्मनो पुरुषार्थ.
१प७ ‘क्रमबद्ध’ नो निर्णय अने तेनुं फळ.
१प८ आ छे संतोनुं हार्द.
१प९ आ वात समजे तेनी द्रष्टि पलटी जाय.
१६० ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टिनी ज मुख्यता.
१६१ जेवुं वस्तुस्वरूप, तेवुं ज ज्ञान अने तेवी वाणी.
१६२ स्वछंदीना मननो मेल: नंबर १.
१६३ स्वछंदीना मननो मेल: नंबर २.
१६४ स्वछंदीना मननो मेल: नंबर ३.
१६प समकीतिनी अद्भुत दशा!
१६६ ज्ञातापणाथी च्युत थईने अज्ञानी कर्ता थाय छे.
१६७ सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान क्यारे थाय?
१६८ मिथ्या श्रद्धा–ज्ञाननो विषय जगतमां नथी.
१६९ आमां शुं करवानुं आव्युं?
१७० ज्ञायकसन्मुख द्रष्टिनुं परिणमन, ए ज सम्यक्त्वनो
१७२ एकला ज्ञायक उपर ज जोर.
१७३ –तारे ज्ञायक रहेवुं छे? के परने फेरववुं छे?
१७४ ज्ञानी ज्ञाता ज रहे छे, ने तेमां पांच समवाय
१७६ जीवने अजीवनी साथे कारण–कार्यपणुं नथी.
१७७ भूलेलाने मार्ग बतावे छे, रोगीनो रोग मटाडे छे.
१७८ वस्तुनुं परिणमन व्यवस्थित होय के अव्यवस्थित?
१७९ ज्ञाताना परिणमनमां मुक्तिनो मार्ग.
१८१ भाई तुं ज्ञायक उपर द्रष्टि कर, निमित्तनी द्रष्टि छोड!
१८२ क्रमबद्ध परिणमता द्रव्योनुं अकार्य कारणपणुं.
१८३ भेदज्ञान वगर निमित्त–नैमित्तिकसंबंधनुं ज्ञान थतुं
१८प सम्यग्दर्शननी सूक्ष्म वात.
१८६ फरवुं पडशे, जेने आत्महित करवुं होय तेणे!