: मागसर–पोष : २४८१ : आत्मधर्म : १०५ :
१८७ गंभीर रहस्यनुं दोहन
१८८ आखा द्रव्यने साथे ने साथे राखीने अपूर्व वात!
१८९ –छूटवानो मार्ग.
१९० ‘ज्ञायक’ ज ज्ञेयोनो ज्ञाता छे.
१९१ आ छे, ज्ञायकस्वभावनुं अकर्तापणुं.
१९२ ‘जीवंत वस्तुव्यवस्था अने ज्ञायकनुं जीवन’ ––तेने
जे नथी जाणतो ते मूढ माने छे––मरेलाने जीवतुं ने
जीवताने मरेलुं!
१९३ कर्ताकर्मपणुं अन्यथी निरपेक्ष छे, माटे जीव अकर्ता
छे, ज्ञायक छे.
१९४ आ ‘क्रमबद्धपर्यायना पारायणनुं सप्ताह’ आजे
पूरुं थाय छे..’
१९प आ समजे ते शुं करे? बधा उपदेशोनो नीचोड!
१९६ ज्ञायक भगवान जाग्यो... ते शुं करे छे?
१९७ ‘क्रमबद्ध’ ना ज्ञाताने मिथ्यात्वनो क्रम न होय.
१९८ ‘चैतन्य चमत्कारी हीरो.’
१९९
चैतन्य राजाने ज्ञायकभावनी राजगादीए
बेसाडीने सम्यक्त्वना तिलक थाय छे, त्यां विरोध
करीने परने फेरववा मांगे छे तेनो दी’ फर्यो छे!
(‘–रा’ नथी फरतो... रा’ नो दी’ फरे छे.’)
२०० ‘केवळीना नंदन’ बतावे छे–केवळज्ञाननो पंथ!
क्रमबद्धपर्याय प्रवचनो: भाग बीजो
प्रवचन पहेलुं
१ अलौकिक अधिकारनुं फरीने वांचन २३ आत्महितने माटे भेदज्ञाननी सीधी सादी वात.
२ ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टि करवानुं प्रयोजन छे. २४ हे ज्ञायकचिदानंद प्रभु! तारा ज्ञायकतत्त्वने लक्षमां ले.
३ ज्ञायकस्वभावी जीव रागनो पण अकर्ता छे. २५ अरे मूरख! एकांतनी वात एक कोर मूकीने आ समज!
४ ज्ञानीनी वात, अज्ञानीने समजावे छे. २६ समकीति ने राग छे के नथी?
५ कई द्रष्टिथी क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय थाय. २७ क्रमबद्धपर्यायनो साचो निर्णय क्यारे थाय?
६ ‘स्वसमय’ एटले रागादिनो अकर्ता. २८ ज्ञानी रागना अकर्ता छे; ‘जेनो मुख्यता तेनो ज कर्ता.’
७ ‘निमित्तनो प्रभाव’ माननार बाह्यद्रष्टिमां अटक्या छे. २९ क्रमबद्धपर्याय समजवा जेटली पात्रता क्यारे?
८ ज्ञाताना क्रममां ज्ञाननी वृद्धि ने रागनी हानि. ३० भगवान! तुं कोण? ने तारा परिणाम कोण?
९ अंर्तमुख ज्ञाननी साथे ज आनंद–श्रद्धा ३१ ज्ञानीनी दशा.
वगेरेनुं परिणमन; अने ते ज धर्म. ३२ ‘अकिंचित्कार होय तो, –निमित्तनी उपयोगिता शुं?’
१० जेवुं वस्तुस्वरूप, तेवुं ज ज्ञान, अने तेवी ज वाणी. अज्ञानीनो प्रश्न.
११ ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टि–ए ज मूळतात्पर्य. प्रवचन बीजुं
१२ वारंवार घूंटीने अंतरमां परिणमाववा जेवी मुख्य वात. ३३ ‘जीव’ अजीवनो कर्ता नथी’ –केम नथी?
१३ जीवत्तत्त्व. ३४ कर्म साथेनो निमित्त–नैमित्तिक संबंध तोडयो तेणे
संसार तोडयो.
१४ जीवननुं खरुं कर्तव्य. ३५ ‘ईश्वर जगतकर्ता,’ ने ‘आत्मा परनो कर्ता’ –ए
बंने मान्यतावाळा सरखा!
१५ प्रभु! तारा ज्ञायकभावने लक्षमां ले. ३६ ज्ञानीनी द्रष्टि अने ज्ञान.
१६ निर्मळ पर्यायने ज्ञायकभावनुं ज अवलंबन. ३७ द्रव्यने लक्षमां राखीने क्रमबद्धपर्यायनी वात.
१७ ‘पुरुष प्रमाणे वचन प्रमाण? ए क्यारे लागु पडे? ३८ परमार्थे बधा जीवो ज्ञायकस्वभावी छे;–पण
१८ क्रमबद्धनी के केवळीनी वात कोण कही शके? एम कोण जाणे?
१९ ज्ञानना निर्णय विना बधुं य खोटुं. ज्ञायकभावरूपी ३९ ‘क्रमबद्धपर्याय’ अने तेना चार द्रष्टांतो.
तलवारथी समकितीए संसार ने छेदी नाख्यो छे. ४० हे जीव! तुं ज्ञायकने लक्षमां लईने विचार.
२० सम्यग्द्रष्टि मुक्त; मिथ्याद्रष्टि ने ज संसार. ४१ क्रमबद्धपणुं कई रीते छे?
२१ सम्यग्दर्शनना विषयरूप जीवतत्त्व केवुं? ४२ * ज्ञान अने ज्ञेयनी परिणमनधारा;
२२ निमित्त अकिंचिंत्कर होवा छतां, सतमां सत् * केवळीभगवानना द्रष्टांते साधकदशानी समजण.
ज निमित्त होय. ४३ ‘जीव’ केवो? अने जीवनी प्रभुता शेमां?