वारंवार निर्विकल्पदशा आव्या ज करे छे एटले शुद्धोपयोगनो प्रयत्न वर्त्या ज करे छे. पंचमहाव्रत वगेरेनो
विकल्प सदा य रह्या ज करे–एम नथी होतुं. माटे कह्युं के कदाचित् मंदरागना उदयथी शुभोपयोग ‘पण’ थाय
छे; ‘पण’ कहीने शुभोपयोगनी गौणता बतावी छे, मुख्य उद्यम तो शुद्धोपयोगनो ज छे. शुभोपयोग वखते
मुनी शुद्धोपयोगनां बाह्य साधनोमां,–स्वाध्याय, महाव्रत वगेरेमां अनुराग करे छे. परंतु ते रागभावने पण
हेय जाणीने दूर करवा ईच्छे छे. जुओ अहीं शुभोपयोगने शुद्धोपयोगनुं बाह्य साधन तो कह्युं पण तेने हेय
कह्यो छे, एटले के शुभने हेय करीने अंतर स्वभावना अवलंबने शुद्धोपयोग प्रगट करे तो ते शुभने बाह्य
साधन कहेवाय. शुद्धोपयोगनुं खरुं साधन तो अंर्तस्वभावनुं अवलंबन ज छे. अहीं एम जाणवुं के मुनिने
छठ्ठा गुणस्थाने शुभोपयोग होय छे, पण तेना आधारे मुनिपणुं टक्युं नथी, मुनीपणुं तो ते वखते पण
शुभोपयोग तो आस्रव छे. मुनि ते शुभ रागने हेय जाणे छे. जे शुभरागने उपादेय माने तेने साचुं मुनिपणुं
होतुं नथी.
मुनिने होती ज नथी–एम कहे छे. मुनिओने तीव्र कषायना उदयनो तो अभाव छे तेथी हिंसा वगेरे
अशुभोपयोगनी परिणतिनुं तो तेमने अस्तित्व ज रह्युं नथी. जो के सूक्ष्म करणानुयोगनी अपेक्षाए तो
शास्त्रमां छठ्ठा गुणस्थाने पण आर्त्तध्यानना अशुभपरिणाम होवानुं कह्युं छे, कोई मुनिने क्यारेक तेवा
होती ज नथी. मुख्यपणे मिथ्याद्रष्टिने ज अशुभपरिणति गणवामां आवी छे. समकिती गृहस्थने
शुभपरिणतिनी प्रधानता होय छे ने शुद्धपरिणति गौणपणे होय छे. मुनिओने शुद्धपरिणति मुख्य होय छे ने
शुभपरिणति गौणपणे होय छे, अशुद्धपरिणति तो तेमने गणी ज नथी.
बाह्यमुद्रा पण उपशांत...ठरी गयेली...सौम्य होय छे. शरीरनां बधां अंगो विकार रहित उपशांत थई गयां छे.
अंतरंगदशा सहितनी आ वात छे.
के जीवनो उदयभाव ते ज संसारतत्त्व छे. मिथ्याद्रष्टि जीव द्रव्यलिंगी थाय तो पण तेणे संसार जरा पण छोड्यो
नथी, केमके ते उदयभावमां ज ऊभो छे तेथी ते संसारमां