Atmadharma magazine - Ank 136
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 21

background image
: १२२ : आत्मधर्म: १३६
साधुपरमेष्ठीने अमारा नमस्कार हो!
ए रीते पंचपरमेष्ठी भगवंतोने ओळखीने तेमने नमस्कार कर्या. हवे ते पंचपरमेष्ठीनुं महानपणुं शेना
वडे छे–ते ओळखावे छे.
वीतरागविज्ञान वडे ज पंचपरमेष्ठी पूज्य छे.
• पूर्वे कह्या प्रमाणे ए अरिहंतादिक पंचपरमेष्ठीनुं स्वरूप वीतरागविज्ञानमय छे, अने तेना वडे ज
अरिहंतादिक स्तुतियोग्य महान थया छे.
जीवतत्त्वथी तो सर्वे जीवो समान छे, परंतु रागादि विकार वडे वा ज्ञाननी हीनता वडे जीव निंदा
योग्य थाय छे, तथा रागादिकनी हीनता वडे ने ज्ञाननी विशेषता वडे स्तुतियोग्य थाय छे.
• हवे, पंचपरमेष्ठीमां अरिहंत अने सिद्धभगवानने तो संपूर्ण रागादिकनी हीनता तथा ज्ञाननी
विशेषता थवाथी संपूर्ण वीतरागविज्ञानभाव थयो छे; तथा आचार्य, उपाध्याय अने साधुने एकदेश
रागादिकनी हीनता तथा ज्ञाननी विशेषता थवाथी एकदेश वीतराग विज्ञानभाव थयो छे. तेथी ए
वीतरागविज्ञानभाव वडे ज अरिहंतादिक पंचपरमेष्ठीने स्तुति योग्य महान जाणवा.
• • •
[पंचपरमेष्ठीने ओळखतां भेदविज्ञान थाय छे.]
शरूआतना मंगलाचरणमां कह्युं हतुं के––
मंगलमय मंगलकरण वीतराग विज्ञान, नमुं तेह जेथी थया अरहंतादि महान.
अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय अने साधु ए पांचे परमेष्ठीनुं स्वरूप वीतरागविज्ञानमय छे अने ते
वीतरागविज्ञान वडे ज तेमनी महानता छे. जे जीव आवा वीतरागविज्ञानस्वरूपे ओळखीने पंचपरमेष्ठीने
पूज््य माने ते जीव रागादिने पोतानुं स्वरूप न माने,–रागथी लाभ न माने, पण पोतानुं स्वरूप रागथी भिन्न
जाणीने भेदज्ञान करे. जे जीव रागथी लाभ माने छे तेणे रागने महानता आपी छे एटले वीतरागीविज्ञान वडे
महान एवा पंचपरमेष्ठीने खरेखर तेणे ओळख्या नथी.
[मुनिओ पण वीतरागविज्ञानस्वरूप ज छे.]
पंचपरमेष्ठी केवा छे?–रागमय नथी पण वीतरागविज्ञानमय छे, अने तेनाथी ज तेमनी पूज्यता छे.
मुनि वगेरेने किंचित् राग होय छे पण ते राग वडे तेमनी पूज्यता नथी, पूज्यता तो वीतरागीविज्ञानथी ज छे.
जे पंच महाव्रतादिनो राग छे ते कांई मुनिनुं स्वरूप नथी, मुनिनुं स्वरूप तो वीतराग विज्ञानमय छे. राग तो
आस्रव छे ने मुनिदशा तो संवर–निर्जरारूप छे.
[जीवनुं निद्यपणुं के पूज्यपणुं शाथी?]
जीवतत्त्व तरीके तो बधा जीवो सरखा ज छे, सिद्ध अने अज्ञानी पण जीवतत्त्व तरीके तो सरखा ज छे;
पण पर्यायमां अज्ञान अने राग–द्वेष वडे जीवनुं निंद्यपणुं थाय छे. वीतरागीविज्ञान वडे पूज्यपणुं छे, ने
तेनाथी विरुद्ध एवा अज्ञान अने राग–द्वेष वडे निंद्यपणुं छे. आत्माना शुद्धज्ञानानंद स्वरूपनी द्रष्टि वडे
अनादिना अज्ञाननो नाश करीने, सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप वीतरागीविज्ञान प्रगट कर्युं छे तेना वडे ज
पंचपरमेष्ठी भगवंतो पूज्य अने महान छे. आ रीते आत्माना गुणो वडे ज तेनुं पूज्यपणुं छे, ए सिवाय
बहारना संयोग वडे के पुण्य वडे खरेखर आत्मानुं पूज्यपणुं नथी.
[ज्ञानी हीनता अने विशेषता एटले शुं?]
ज्ञाननी हीनता वडे जीव निंदा योग्य थाय छे एम कह्युं, तेमां ज्ञाननी ‘हीनता’ कहेतां विपरीतता
समजवी. कोई मुनिराजने बहारना जाणपणानो उघाड ओछो होय तो पण तेथी ते कांई निंद्य नथी. ‘राग अने
विकार ते ज हुं, तेनाथी मने लाभ थशे’ एवी मिथ्याबुद्धिने लीधे जीव निंद्य थाय छे.
वळी, ज्ञाननी विशेषता वडे जीव स्तुति योग्य थाय छे एम कह्युं, तेमां पण ज्ञाननी ‘विशेषता’ कहेतां
सम्यग्ज्ञान समजवुं. कोई मिथ्याद्रष्टिने अगियार अंगनुं ज्ञान होय तो पण तेमां तेने विपरीतता होवाथी तेने
ज्ञाननी हीनता ज छे; ने मुनिदशामां कोईने शास्त्रज्ञाननो उघाड ओछो होय तो पण त्यां सम्यग्ज्ञान होवाथी
ज्ञाननी हीनता नथी पण ज्ञाननी विशेषता ज छे, अंतरमां ज्ञाननुं स्वसंवेदनबळ तेमने घणुं वधी गयुं छे.