माह: २४८१ : १११:
पंच परमेष्ठी भगवंतोने नमस्कार
[श्री मोक्षमार्ग प्रकाशक उपर पू. गुरुदेवना प्रवचनोमांथी :
वर स. २४८० अषढ वद १२ थ श्रवण सद ३]
अहीं मोक्षमार्ग प्रकाशकना मंगलाचरणमां पंच परमेष्ठी भगवंतोने
नमस्कार कर्या छे. अहीं जेमने नमस्कार कर्या छे तेमनुं स्वरूप ओळखवुं जोईए;
केम के स्वरूप जाण्या विना ए नथी समजातुं के हुं कोने नमस्कार करुं छुं? अने ते
सिवाय उत्तम फळनी प्राप्ति पण क््यांथी थाय? माटे अहीं पंच परमेष्ठीनुं स्वरूप
विचारीए छीए.
[१]
श्री अरिहंतपरमेष्ठीनुं स्वरूप
• जे गृहस्थपणुं छोडी, मुनिधर्म अंगीकार करी, निज–स्वभाव साधन वडे चार घातिकर्मोनो क्षय करी
अनंत चतुष्टयरूपे बिराजमान थया छे,
• त्यां अनंत ज्ञान वडे तो पोतपोताना अनंत गुणपर्याय सहित समस्त जीवादि द्रव्योने युगपत
विशेषपणाए करी प्रत्यक्ष जाणे छे,
• अनंत दर्शन वडे तेने सामान्यपणे अवलोके छे,
• अनंत वीर्य वडे एवा उपर्युक्त सामर्थ्यने धारे छे,
• तथा अनंतसुख वडे निराकुळ परमानंदने अनुभवे छे.
• वळी जे सर्वथा रागद्वेषादि विकार भावोथी रहित थई शांतरसरूप परिणम्या छे,
• क्षुधा–तृषादि समस्त दोषोथी मुक्त थई देवाधिदेवपणाने प्राप्त थया छे,
• आयुध, अंबर (वस्त्र) आदि, तेमज अंगविकारादिक जे काम क्रोधादि निंद्य भावोनां चिह्न छे तेनाथी
रहित जेमनुं परमऔदारिक शरीर थयुं छे,
• जेमनां वचन वडे लोकमां धर्मतीर्थ प्रवर्ते छे––जे वडे अन्य जीवोनुं कल्याण थाय छे,
• अन्य लौकिक जीवोने प्रभुत्व मानवाना कारणरूप अनेक अतिशय तथा नाना प्रकारना वैभवनुं
जेमने संयुक्तपणुं होय छे,
• तथा जेमने पोताना हितने अर्थे श्री गणधरईन्द्रादिक उत्तम जीवो सेवन करे छे,
––आवा सर्व प्रकारे पूजवा योग्य श्री अरिहंत देवने अमारा नमस्कार हो.
[गृहस्थपणुं छोडी. मुनिधर्म अंगीकार करी.]
प्रथम तो गृहस्थपणुं छोडी मुनिधर्म अंगीकार कर्यो; एटले गृहस्थपणामां रहीने कोईने मुनिदशा के
केवळज्ञान थई जाय एम बनतुं नथी. गृहस्थपणामां आत्मानुं सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान होवा छतां
अस्थिरतानो राग हतो, ते राग छूटतां रागनुं निमित्त छूटी गयुं एटले गृहस्थपणुं छूटी गयुं; अने त्रण
कषायना अभावथी सम्यग्दर्शन–ज्ञानपूर्वक वीतरागीचारित्ररूप मुनिदशा आत्मामां प्रगट करी, गृहस्थपणाना
रागनो अशुद्ध उपयोग छोडीने मुनिदशाने योग्य शुद्धोपयोग प्रगट कर्यो, त्यां बहारमां पण परिग्रह रहित
दिगंबरदशा थई गई छे.