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[नज स्वभव सधन वड.]
मुनिदशामां निजस्वभाव साधन वडे चार घातिकर्मोनो क्षय करी, अनंतचतुष्टय प्रगट कर्यों छे.
मुनिदशामां पंचमहाव्रत, अठ्ठावीस मूळगुणनो शुभराग होय छे, पण ते रागना साधन वडे के शरीरादिकना
साधन वडे केवळज्ञान पाम्या नथी, अंतरमां निजस्वभाव साधन वडे एटले के स्वभावना आश्रमे
शुद्धोपयोगरूप साधन वडे ज भगवाने केवळज्ञानादि चतुष्टय प्रगट कर्यां छे. केवळज्ञान, केवळदर्शन, अनंतवीर्य
अने अनंत सुख–एवा चतुष्टय सहित अरिहंत भगवान बिराजमान छे.
[केवळज्ञान.]
अरिहंत भगवान पोताना अनंत ज्ञान वडे जीवादि समस्त द्रव्योने पोतपोताना अनंत गुणपर्यायो
सहित एक साथे प्रत्यक्ष जाणे छे. दरेक द्रव्य पोतपोताना गुणपर्यायो सहित छे; निगोदनो जीव पण तेना
पोताना गुण–पर्यायो सहित छे, बीजाने कारणे तेना गुण–पर्यायो नथी, कर्मना परमाणुओ तेना पोताना गुण–
पर्यायो सहित छे, तेना गुण–पर्यायो आत्मामां नथी; ए प्रमाणे समस्त द्रव्योने पोतपोताना गुणपर्यायो सहित
एक साथे भगवान जाणे छे; पोताना आत्मद्रव्यने पण पोताना गुणपर्यायो सहित प्रत्यक्ष जाणे छे. अरिहंत
भगवानने नमस्कार करतां तेमना आवा केवळज्ञान सामर्थ्यने ओळखवुं जोईए.
[कवळदशन.]
अनंतदर्शन वडे केवळी भगवान समस्त पदार्थोने सामान्यपणे अवलोके छे. आवा केवळज्ञान अने
केवळदर्शन भगवानने एक साथे ज वर्ते छे; एक समये केवळज्ञान ने बीजा समये केवळदर्शन– एवो क्रम
अरिहंत भगवानने होतो नथी.
[अनंतवीर्य.]
अरिहंत भगवान आत्माना अनंतवीर्य वडे केवळज्ञान अने केवळदर्शनना उपर्युक्त सामर्थ्यने धारे छे.
जुओ, आ आत्मानुं बळ! परमां कांई करे एवुं आत्मानुं सामर्थ्य नथी, पण केवळज्ञान अने केवळदर्शनने
धारण करे एवुं आत्मानुं बळ छे. भगवानने ते अनंत आत्मबळ प्रगटी गयुं छे.
[अनंत आनंद.]
अरिहंत भगवान अनंतसुख वडे आत्माना निराकुळ परमानंदने अनुभवे छे. आत्माना स्वभावनो
अतीन्द्रिय आनंद भगवानने परिपूर्ण खीली गयो छे.
[शतरस.]
अरिहंत भगवान सर्वथा सर्व राग–द्वेषादि विकारभावोथी रहित थईने शांतरसरूप परिणम्या छे.
आत्माना असंख्य चैतन्यप्रदेशे शांतरस प्रगटी गयो छे, भगवान शांतरसमां मग्न छे.
[क्षुधादि दोष रहितपणुं.]
वळी, क्षुधा–तृषादि समस्त दोषोथी मुक्त थईने भगवान देवाधिदेवपणाने प्राप्त थया छे. भगवानने
क्षुधा, तृषा, रोग वगेरे होतां नथी, एटले आहार–पाणी के औषध पण होतां नथी. स्वर्गना देवोने हजारो वर्षे
आहारनी ईच्छा ऊपजे, अने अरिहंत भगवान रोज आहार करे–एम माननारे अरिहंत भगवानने ओळख्या
नथी, तेथी तेनुं ‘णमो अरिहंताणं’ पण साचुं नथी. भगवाननो आत्मा पूर्ण अतीन्द्रियभावे परिणमी गयो छे
त्यां देहमां क्षुधादि उत्पन्न ज थतां नथी, ने भगवानने आहारादि होतां नथी. क्षुधा ते दोष छे, भगवानने क्षुधा
लागे एम माननारे भगवानने दोषवाळा मान्या छे.
[वस्त्रािदरिहत परमाैदािरकपणुं.]
भगवानने अंतरमां तो राग–द्वेषादि भावोनो अभाव थईने वीतरागता थई गई छे, ने बहारमां पण
शस्त्र–वस्त्र वगेरे होतां नथी. वस्त्रादिनुं धारण करवुं ते रागनुं चिह्न छे ने शास्त्रादिनुं धारण करवुं ते द्वेषनुं
चिह्न छे, भगवानने एवां निंद्य भावोनां चिह्न होतां नथी. भगवाननुं शरीर पण परम औदारिक शांतरसरूप
थई गयुं छे, मुद्रा परम शांत थई गई छे.
[धर्मतीर्थना प्रवर्तक.]
वळी भगवानना दिव्यध्वनि वडे लोकमां धर्मतीर्थ प्रवर्ते छे. भगवाननी देशना छूटे ने धर्म पामनारा जीवो