• आवा सिद्धभगवानना ध्यान वडे भव्यजीवोने स्वद्रव्य–परद्रव्यनुं तेम ज औपाधिक–स्वाभाविक
• सिद्धभगवान कृतकृत्य थया छे तेथी ए ज प्रमाणे अनंतकाळपर्यंत रहे छे.
अभाव करी शुद्धोपयोगरूप मुनिदशा प्रगट करी; अने ते शुद्धोपयोगरूप मुनिधर्मना साधन वडे चार
घातिकर्मोनो नाश थतां केवळज्ञानादि चतुष्टयरूप अरिहंतदशा प्रगटी. ते अरिहंतदशा थया पछी कोई जीवो तो
अंतर्मुहूर्तमां ज सिद्ध पद पामे छे ने कोई जीवो करोडो–अबजो वर्ष अरिहंतदशामां रहीने पछी सिद्धपद पामे छे.
अरिहंतदशानो काळ बधा जीवोने सरखो होतो नथी. जुओ, सीमंधर भगवान अत्यारे महाविदेह क्षेत्रमां
अरिहंतदशामां बिराजी रह्या छे, तेओ करोडो वर्ष पहेलांं केवळज्ञान प्रगट करीने अरिहंतदशा पाम्या छे, ने हजी
करोडो वर्ष सुधी अरिहंतपदे रहीने पछी सिद्ध थशे; अने महावीर भगवान आ भरतक्षेत्रे थया तेओ
सीमंधरभगवान पछी अरिहंतदशा पाम्या हता ने तेमनी पहेलांं सिद्ध पद पाम्या. तथा कोई जीवो केवळज्ञान
पाम्या पछी अंतर्मुहूर्तमां ज सिद्धपद पामी जाय छे.–आ अंतर्मुहूर्तनो काळ तीर्थंकरने लागु नथी पडतो,
तीर्थंकरभगवानने तो अरिहंतदशानो अमुक विशेष काळ होय ज छे.
थया छे. आ लोक नीचेथी उपर चौद राजु ऊंचो छे, तेना मध्यभागमां आ मनुष्यलोक छे, ने अहींथी उपर
सात राजु सुधी ऊर्ध्वलोक छे. तेना छेडे–लोकाग्रे अनंता सिद्धभगवंतो बिराजे छे. ‘सिद्धभगवंतो सिद्धशिला
उपर बिराजे छे’ एम कहेवाय, पण खरेखर कांई सिद्धभगवान सिद्धशिलाने अडीने बिराजता नथी,
सिद्धशिलाथी तो भगवान घणा गाउ ऊंचा छे. सिद्धालयथी सिद्धशिला घणी नीची छे. भावथी पण
सिद्धभगवान जगतमां सौथी ऊंचा छे, ने क्षेत्रथी पण लोकमां सौथी ऊंचा स्थाने भगवान बिराजे छे.
सिद्धभगवानने ओळखनार धर्मी पोताना आत्माने पण समस्त परद्रव्योथी भिन्न जाणे छे, पण हजी तेने
नथी तेथी समस्त परद्रव्यो साथेनो संबंध सर्वथा छूटी गयो छे. ज्ञेयज्ञायकसंबंध छे पण ते कांई विकारनुं कारण
नथी. आवा सिद्धभगवानने प्रतीतमां लेनार धर्मीने पोताना शुद्धआत्मानी द्रष्टिमां समस्त परद्रव्यना संबंधनो
अभाव वर्ते छे. आ रीते एकला सिद्धभगवाननी वात नथी, परंतु सिद्धभगवानने वास्तविकपणे कबूलनार
जीव पोते पण अंशे ते जातमां भळीने साधक थाय छे––एवी आ वात छे.