Atmadharma magazine - Ank 136
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: ११४ : आत्मधर्म: १३६
• भावकर्मोनो अभाव थवाथी निराकुळ आनंदमय शुद्ध स्वभावरूप परिणमन थई रह्युं छे.
• आवा सिद्धभगवानना ध्यान वडे भव्यजीवोने स्वद्रव्य–परद्रव्यनुं तेम ज औपाधिक–स्वाभाविक
भावोनुं विज्ञान थाय छे, अने ते वडे पोताने सिद्धसमान थवानुं साधन थाय छे.
• तेथी साधवायोग्य पोतानुं शुद्धस्वरूप तेने दर्शाववा माटे सिद्धभगवान प्रतिबिंब समान छे.
• सिद्धभगवान कृतकृत्य थया छे तेथी ए ज प्रमाणे अनंतकाळपर्यंत रहे छे.
[सिद्धपदनी प्राप्तिनो क्रम; अने अरिहंतदशानो काळ]
जेओ सिद्ध थया तेओ पण पहेलांं तो संसारमां हता. प्रथम तेमणे पोताना ज्ञानानंदस्वभावनी
ओळखाण करीने सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान कर्यां; त्यार पछी वैराग्य थतां गृहस्थपणुं छोडी, त्रण कषायचोकडीनो
अभाव करी शुद्धोपयोगरूप मुनिदशा प्रगट करी; अने ते शुद्धोपयोगरूप मुनिधर्मना साधन वडे चार
घातिकर्मोनो नाश थतां केवळज्ञानादि चतुष्टयरूप अरिहंतदशा प्रगटी. ते अरिहंतदशा थया पछी कोई जीवो तो
अंतर्मुहूर्तमां ज सिद्ध पद पामे छे ने कोई जीवो करोडो–अबजो वर्ष अरिहंतदशामां रहीने पछी सिद्धपद पामे छे.
अरिहंतदशानो काळ बधा जीवोने सरखो होतो नथी. जुओ, सीमंधर भगवान अत्यारे महाविदेह क्षेत्रमां
अरिहंतदशामां बिराजी रह्या छे, तेओ करोडो वर्ष पहेलांं केवळज्ञान प्रगट करीने अरिहंतदशा पाम्या छे, ने हजी
करोडो वर्ष सुधी अरिहंतपदे रहीने पछी सिद्ध थशे; अने महावीर भगवान आ भरतक्षेत्रे थया तेओ
सीमंधरभगवान पछी अरिहंतदशा पाम्या हता ने तेमनी पहेलांं सिद्ध पद पाम्या. तथा कोई जीवो केवळज्ञान
पाम्या पछी अंतर्मुहूर्तमां ज सिद्धपद पामी जाय छे.–आ अंतर्मुहूर्तनो काळ तीर्थंकरने लागु नथी पडतो,
तीर्थंकरभगवानने तो अरिहंतदशानो अमुक विशेष काळ होय ज छे.
[सिद्धभगवान लोकना अग्रे बिराजे छे.]
ए प्रमाणे अरिहंतदशामां केटलोक काळ वीत्ये बाकी रहेलां चार अघातीकर्मोनो पण नाश थतां
परमऔदारिकशरीरने पण छोडीने, सिद्धभगवान ऊर्ध्वगमन–स्वभावथी लोकना अग्रभागमां जई बिराजमान
थया छे. आ लोक नीचेथी उपर चौद राजु ऊंचो छे, तेना मध्यभागमां आ मनुष्यलोक छे, ने अहींथी उपर
सात राजु सुधी ऊर्ध्वलोक छे. तेना छेडे–लोकाग्रे अनंता सिद्धभगवंतो बिराजे छे. ‘सिद्धभगवंतो सिद्धशिला
उपर बिराजे छे’ एम कहेवाय, पण खरेखर कांई सिद्धभगवान सिद्धशिलाने अडीने बिराजता नथी,
सिद्धशिलाथी तो भगवान घणा गाउ ऊंचा छे. सिद्धालयथी सिद्धशिला घणी नीची छे. भावथी पण
सिद्धभगवान जगतमां सौथी ऊंचा छे, ने क्षेत्रथी पण लोकमां सौथी ऊंचा स्थाने भगवान बिराजे छे.
[परद्रव्यना संबंधथी रहितपणुं; अने ते प्रतीतमां लेनारनी साधकदशा.]
सिद्धभगवानने समस्त परद्रव्योनो संबंध छूटी गयो छे, आत्मा साथे एक परमाणुमात्रनो पण संबंध
रह्यो नथी, ने तेमने मुक्त अवस्थानी सिद्धि थई छे.–जेमने समस्त परद्रव्यो साथेनो संबंध छूटी गयो छे एवा
सिद्धभगवानने ओळखनार धर्मी पोताना आत्माने पण समस्त परद्रव्योथी भिन्न जाणे छे, पण हजी तेने
निमित्त तरीके परद्रव्यनो संबंध छे. सिद्धभगवानने छए द्रव्यो एक क्षेत्रे होवा छतां तेमने कोई प्रकारनो विकार
नथी तेथी समस्त परद्रव्यो साथेनो संबंध सर्वथा छूटी गयो छे. ज्ञेयज्ञायकसंबंध छे पण ते कांई विकारनुं कारण
नथी. आवा सिद्धभगवानने प्रतीतमां लेनार धर्मीने पोताना शुद्धआत्मानी द्रष्टिमां समस्त परद्रव्यना संबंधनो
अभाव वर्ते छे. आ रीते एकला सिद्धभगवाननी वात नथी, परंतु सिद्धभगवानने वास्तविकपणे कबूलनार
जीव पोते पण अंशे ते जातमां भळीने साधक थाय छे––एवी आ वात छे.