Atmadharma magazine - Ank 136
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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माह: २४८१ : ११५ :
[सिद्धभगवानो आकार]
हवे ते सिद्धभगवाननो आकार केवो छे ते कहे छे. छेल्ला शरीरनो जे आकार हतो तेनाथी जराक न्यून
एवा पुरुषाकारवत् तेमना आत्मप्रदेशोनो आकार अवस्थित थयो छे.
[छेल्ला शरीरथी किंचित् न्यून]
सिद्धदशामां आत्माना असंख्य प्रदेशोनो आकार छेल्ला शरीरथी ‘किंचित् न्यून’ एटले के जराक ओछो
होय छे. शरीरना नख–केश वगेरे भागोमां आत्माना प्रदेश होता नथी ते अपेक्षाए सिद्धनो आकार छेल्ला
शरीरना आकारथी किंचित न्युन समजवो; परंतु छेल्ला शरीरथी त्रीजा भागनो आकार ओछो थई जाय–एम
कोई कहे छे ते सत्य नथी; तेमज कोई एम माने छे के मुक्त अवस्था थतां आत्मा आखा लोकमां व्यापीने रहे
छे,–ते पण सत्य नथी.
[पुरुषाकारवत्]
वळी, सिद्ध भगवाननो आकार ‘पुरुषाकारवत्’ होय छे. अहीं ‘पुरुषाकारवत्’ कह्युं तेमां ए वात पण
आवी जाय छे के पुरुष ज सिद्धदशा पामे छे, स्त्रीपर्यायमां सिद्धदशा थती नथी. सिद्ध थनार जीवने छेल्लुं शरीर
पुरुषनुं ज होय––एवो नियम छे. स्त्री–पर्यायमां रहेला आत्माने उत्कृष्टमां उत्कृष्ट पांचमा गुणस्थान सुधीनी
पवित्र दशा होय छे, पांचमा गुणस्थानथी ऊंची दशा तेने होती नथी; तो केवळज्ञान के सिद्ध पद होय ज क्यांथी?
[प्रदेशत्वगुणने लीधे आकार]
छेल्ला शरीरथी जराक ओछो अने पुरुषाकारवत् एवो आकार सिद्धभगवानने अवस्थित थयो छे.
सिद्धभगवानने जडनो आकार नथी तेम ज ईन्द्रियज्ञानथी देखाय तेवो आकार नथी तेथी तेमने निराकार
कहेवाय छे; परंतु तेमने पोताना आत्माना असंख्य प्रदेशोनो आकार तो छे. आकार वगरनी कोई वस्तु होय
नहि, केम के दरेक वस्तुमां ‘प्रदेशत्व’ गुण छे तेथी दरेक वस्तुने पोतपोतानो कंई ने कंई आकार जरूर होय छे.
अरूपी वस्तुनो आकार अरूपी होय छे ने रूपी वस्तुनो आकार रूपी होय छे. सिद्धभगवानने पण पोताना
प्रदेशत्वगुणने लीधे उपर प्रमाणे अरूपी आकार होय छे.
[सिद्धोना आकारमां विशेषता]
सिद्धभगवानने आत्माना असंख्य प्रदेशोनो जे आकार छे ते आकार सदा अवस्थित रहे छे; हवे
सादिअनंतकाळ सदा एवो ने एवो ज आकार रहेशे, संसारीनी जेम तेमने संकोच–विस्तार थतो नथी, पण
एकरूप आकार रहे छे.
दरेक सिद्धभगवानने पोतपोतानो भिन्न भिन्न आकार होय छे. अनंत सिद्धभगवंतो एक क्षेत्रे रहे छे
पण ‘ज्योतमां ज्योत’नी जेम कोई एकबीजामां भळी जता नथी, सौ पोतपोताना भिन्न आकारमां रहे छे.
बधाय सिद्धभगवंतोने आनंदनो अनुभव सरखो, ज्ञाननुं सामर्थ्य सरखुं, पण आकार बधायने एक सरखो ज
होय–एवो नियम नथी. कोईने लगभग सवापांचसो धनुष्यनो आकार होय, ने कोईने एक धनुषनो आकार
होय,–एम आकारमां नानामोटापणुं होय, पण आत्माना असंख्यप्रदेश तो बधाने सरखा छे, ज्ञान–आनंद
वगेरे पण सरखां छे.
[सर्वगुणसंपन्नपणुं.]
सिद्धभगवानने, चार घातीकर्मोनो नाश थईने केवळज्ञानादि चतुष्टय तो अरिहंतदशामां ज प्रगटी गयां
हतां, पण त्यां हजी चार अघातीकर्मोना निमित्ते केटलाक गुणो खील्या न हता, हवे ते बाकीनां चार अघाती
कर्मोनो पण क्षय थतां तेम ज नोकर्मरूप शरीर वगेरेनो संबंध पण छूटी जतां, सिद्धदशामां अमूर्तपणुं–सूक्ष्मपणुं,
अव्याबाधपणुं वगेरे बधा गुणो स्वभावरूप प्रगटी गया छे; तेम ज भावकर्मोनो पण अभाव होवाथी सिद्ध
भगवानने अनाकुळ आनंदमय शुद्धस्वभावरूप परिणमन थई रह्युं छे. भगवान सादि–अनंतकाळ पोताना
आत्मस्वभावमांथी उत्पन्न एवा अतीन्द्रिय आनंदना अनुभवथी सदा अत्यंतपणे तृप्त वर्ते छे.
[आत्मानुं स्वरूप ओळखवा माटे प्रतिबिंबसमान]
आवा सिद्धभगवाननुं स्वरूप ओळखीने तेमना ध्यान वडे भव्यजीवोने स्व–परनुं तेम ज स्वभाव अने
विभावनुं भेदविज्ञान थाय छे. आ आत्मानुं परमार्थस्वरूप पण