Atmadharma magazine - Ank 136
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: ११६ : आत्मधर्म: १३६
सिद्धभगवान जेवुं, परथी ने विभावथी भिन्न छे–एवी ओळखाण वडे पोताने सिद्धसमान थवानुं साधन थाय
छे. आ रीते, साधवा योग्य एवुं जे पोतानुं शुद्धस्वरूप तेने दर्शाववा माटे सिद्धभगवान प्रतिबिंब समान छे.
जेम स्वच्छ दर्पणमां जोतां पोतानुं मुख देखाय छे, तेम सिद्धभगवानने जोतां पोताना आत्मानुं वास्तविक
स्वरूप जणाय छे. स्वच्छ दर्पणमां प्रतिबिंब जोतां ख्याल आवे छे के मारुं रूप आवुं छे, तेम सिद्धभगवान आ
आत्मानुं शुद्धस्वरूप जोवा माटे सिद्धभगवान स्वच्छ दर्पण समान छे, तेमने ओळखतां पोतानुं स्वरूप
ओळखाय छे.
सिद्धभगवानने जेवां परिपूर्ण ज्ञान–आनंद वगेरे प्रगटी गयां छे तेवां परिपूर्ण ज्ञान–आनंद वगेरे
प्रगटवानुं सामर्थ्य मारा स्वभावमां पण छे,
सिद्धभगवानने सर्वे विभावोनो नाश थई गयो छे, तो मारा आत्मामांथी पण सर्वे विभाव नाश थवा
योग्य छे, विभाव मारो स्वभाव नथी,
सिद्धभगवानने सर्वे परद्रव्योनो संबंध छूटी गयो छे, तेम मारो आत्मा पण सर्वे परद्रव्योथी अत्यंत
जुदो छे,
––ए प्रमाणे सिद्धभगवानने ओळखतां पोताना परिपूर्ण स्वभावसामर्थ्यनुं भान थाय छे अने
विभावथी तेम ज परद्रव्योथी भिन्नता जणाय छे.
[सिद्धसमान सदा पद मेरो]
सिद्धसमान सदा पद मेरो’–एटले सिद्धभगवानना आत्मामां जे ज्ञानादि प्रगट्यां छे ते बधुं मारा
स्वभावमां छे, ने सिद्धभगवानना आत्मामांथी जे कंई (रागादि) नीकळी गयुं ते बधुं य मारा स्वभावथी
भिन्न छे.–आ प्रमाणे सिद्धभगवानने ध्येय बनावीने, पोताना आत्माने पण तेवा स्वरूपे लक्षमां लईने
ध्यावतां भव्य जीवो सम्यग्दर्शनादि पामी जाय छे.
सिद्धभगवानने पोताना आत्मानी शक्तिमांथी केवळज्ञानादि परिपूर्ण सामर्थ्य प्रगटी गयुं छे, छतां
शक्तिमां पण परिपूर्ण ज छे; आ आत्माने तेवुं परिपूर्ण सामर्थ्य प्रगट्युं नथी पण शक्तिमां तो तेने पण
परिपूर्ण सामर्थ्य छे, एटले शक्तिपणे सिद्धभगवान अने आ आत्मा सरखा छे. सिद्धभगवानने ते परिपूर्ण
शक्ति व्यक्त थई गई छे, धर्मीने ते परिपूर्ण शक्तिनी प्रतीत प्रगटी छे ने ते प्रतीतना जोरे तेने पण
अल्पकाळमां पोतानी परिपूर्ण शक्ति खीली जशे.
ए प्रमाणे सिद्धभगवान जेवा पोताना आत्माना लक्षपूर्वक जे नमस्कार करे तेणे ज सिद्धभगवानने
साचा नमस्कार कर्या छे.
[कृतकृत्यपणुं]
वळी सिद्धभगवान केवा छे?–के कृतकृत्य थई गया छे, तेथी हवे अनंतकाळ ए ज प्रमाणे रहे छे. जे
करवा योग्य कार्य हतुं ते करीने भगवान पूर्ण ज्ञानानंदमय कृतकृत्यदशा पामी गया छे, हवे कंई नवुं कार्य
करवानी आकुळता भगवानने नथी रही. भक्तजनोना अनुग्रह माटे के दुष्टजनोना निग्रह माटे भगवान कांई
फरीने अवतार धारण करता नथी, ते तो सदा मुक्त ज रहे छे. भगवाननी भक्ति करनारने शुभफळ ने निंदा
करनारने अशुभफळ कांई भगवान नथी आपता, पण ते ते जीव पोतपोताना परिणामथी ज स्वयं तेवुं फळ
पामे छे; भगवानने कोई प्रत्ये राग के द्वेष नथी, भगवान तो वीतरागी कृतकृत्य थई गया छे; हवे तेमने कांई
नवुं साधवानुं बाकी रह्युं नथी, तेथी पूर्ण ज्ञानआनंदना अनुभवमय कृतकृत्यदशामां भगवान सादिअनंतकाळ
बिराजमान रहे छे, त्यां परिणमन छे पण एवी ने एवी पर्यायो पलटाया करे छे. पर्याय भले ‘एवी ने एवी’
होय, पण ‘ते ने ते ज’ न होय. समये समये नवी नवी पर्याय थया करे छे.
[सिद्धभगवाने देखवानी रीत]
प्रश्न:– आवा सिद्धभगवान अमने देखाता नथी, तो कई रीते मानीए?
उत्तर:– भाई! आत्माना शुद्धस्वरूपनो मति–श्रुत–ज्ञान वडे जेणे निर्णय कर्यो तेने सिद्धभगवान पण
प्रतीतमां आवी ज गया; आंख वगेरे ईन्द्रियोथी सिद्धभगवान न देखाय, पण ज्ञानमां तेनो निर्णय थई शके छे.