Atmadharma magazine - Ank 137
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २०११ : आत्मधर्म–१३७ : १४७ :
× × × ऐसैं अभिप्राय अनुसार प्ररुपणतैं तिस प्रवृत्ति विषै दोऊ नय बनें हैं। × × ×
[– मो. मा. प्र. अध्याय ७ दिल्ही की आवृत्ति पृ. ३६७]
× × × इस प्रकार जानने का नाम ही दोऊ नयनि का ग्रहण है [– मो, मा. प्र. ,, पृ. ३६८]
रहस्यपूर्ण चिट्ठी
तत्त्व के अवलोकन कालमें समय अर्थात् शुद्धात्मा को युक्ति–मार्गतैं अर्थात् नय–प्रमाणतैं पहले जाने × × ×
पं. टोडरमल्लजी की रहस्यपूर्णचिट्ठी
[– गुज. मो. मा. प्र. पृ. ३४५]
[२६] चिद्विलास
यातैं युक्ति नय प्रमाण है सो जाणिये। [–चिद्विलास पृ. ८]
[२७] जैन सिद्धांत प्रवेशिका
१ प्रश्नः– पदार्थोंको जानने के कितने उपाय है?
उत्तरः– चार उपाय हैं–लक्षण, प्रमाण, नय और निक्षेप।
७३ प्रश्नः– आगमप्रमाण किसको कहते हैं?
उत्तरः– आप्तके वचन आदिसे उत्पन्न हुए पदार्थ के ज्ञानको।
८५ प्रश्नः– नय किसको कहते हैं?
उत्तरः– वस्तुके एकदेशको जाननेवाले ज्ञानको नय कहते हैं।
८७ प्रश्नः– निश्चयनय किसको कहते हैं?
उत्तरः– वस्तुके किसी असली अंशके ग्रहण करनेवाले ज्ञान को निश्चयनय कहते हैं।
[२८] जैन सिद्धांत दर्पण
इस नय वाक्य से उत्पन्न हुए ज्ञान को नय कहते हैं अर्थात् नय वाक्य को द्रव्यनय और उस उस नय वाक्य से पैदा हुए
ज्ञान को भावनय कहते हैं। [जै. सि. दर्पण पृ. २३]
जिसका अभेदरूप विषय है उसको निश्चयनय कहते हैं। [जै. सि. दर्पण पृ. ३४]
आ रीते, अनेक शास्त्राधारोथी आ लेखमां ए वात स्पष्ट बतावी छे के–
* नय ते जड नथी पण श्रुतज्ञाननो अंश छे.
* नयने ज्ञानात्मक कहेवो ते उपचार नथी, पण नयने शब्दात्मक कहेवो ते उपचार छे.
* नय अने नयना विषयनी अभेदविवक्षाए, नयना विषयभूत पदार्थने पण नय कहेवामां आवे छे.
* नयने अने पदार्थने विषय–विषयीपणुं छे.
* नय तेना विषयभूत अर्थनो ‘ग्राहक’ छे, त्यां ‘ग्राहक’नो अर्थ ‘जाणनार’ छे.
भगवान शुद्धात्माना स्वरूपने देखनारो होवाथी जे उपादेय छे अने जे सम्यक् श्रुतज्ञाननो अंश छे–एवो जे ‘निश्चयनय,’ ते
निश्चयनयने जड कहेनारा के माननारा लोको,–आशा छे के आ वांच्या पछी, पोतानी गंभीर भूल समजशे, अने आ वात लक्षमां लेशे
के निश्चयनय वगेरे नयो ते जड नथी पण ज्ञाननो अंश छे; अने तेमां ‘निश्चयनयाश्रित मुनिवरो प्राप्ति करे निर्वाणनी’ एवुं भगवान
कुंदकुंदाचार्यदेवनुं सूत्र परम अबाधित छे. आवो निर्णय करीने, पोताना श्रुतज्ञानने शुद्ध स्वभाव तरफ वाळीने निश्चयनयनुं अवलंबन
करवुं ते जिज्ञासुओनुं परम कर्तव्य छे.
(–पूर्ण.)