जोतां आ धर्मोनी यथार्थ ओळखाण थाय छे, पर्यायबुद्धिवाळाने आ धर्मोनी ओळखाण होती नथी.
पुरुषार्थनयथी कहो के दवनयथी कहो, पण जेओ मोक्ष पामे छे ते बधाय पुरुषार्थपूर्वक ज मोक्ष पामे छे. जो
एकला दैवथी ज मुक्ति थाय ने पुरुषार्थ न होय तो ते जीवमां एक दैवधर्म रह्यो पण पुरुषार्थधर्म न रह्यो, ने
पुरुषार्थवाळाने एकलो पुरुषार्थ धर्म ज रह्यो, –पण एम बनतुं नथी; बंनेमां बंने धर्मो छे. एक जीवने एकला
पुरुषार्थथी मुक्ति ने बीजाने एकला दैवथी मुक्ति–एम जुदा जुदा बे जीवनुं वर्णन नथी, पण एक ज जीवमां
अनंता धर्मो एक साथे रहेला छे, ते धर्मोनुं आ वर्णन छे. कथनमां भले एक धर्मनी मुख्यता आवे, पण ते ज
वखते बीजा अनंता धर्मो वस्तुमां पड्या ज छे. जो एक धर्मने माने बीजा धर्मोने न माने तो ज्ञान प्रमाण थतुं
नथी. वस्तु एक साथे अनंतधर्मोवाळी छे, ते ने वस्तुनी द्रष्टि पूर्वकना आ नयो छे, एटले आ नयो वडे एकेक
धर्मनुं ज्ञान करनारनी द्रष्टि ते एक धर्म उपर नथी होती पण आखा धर्मी उपर (चैतन्यस्वभाव उपर) तेनी
द्रष्टि होय छे. कथनमां आ धर्मो एक पछी एक आवे छे पण वस्तुमां कांई ते एक पछी एक नथी, वस्तुमां तो
एक साथे बधा धर्मो छे आ बधा धर्मो आत्मद्रव्यना छे, आत्मद्रव्य आ बधा धर्मोने धारी राखे छे; आवा
अखंड आत्मद्रव्यने अंतरंग द्रष्टिमां लेवुं ते ज आ बधा धर्मोना वर्णननुं तात्पर्य छे.
आत्माए प्रयत्न कर्यो पोतामां, त्यां कर्म टळीने चैतन्यरत्न प्राप्त थयुं. दैववादीने लींबुना झाडमांथी माणेक
नीकळ्या तेमां तेना ते प्रकारना पुण्य छे तेम अहीं दैवनयवाळाने पण मुक्ति प्राप्त थवामां ते प्रकारनो प्रयत्न
छे. द्रष्टांतमां दैववादी ने पुरुषार्थवादी जुदा छे पण सिद्धांतमां दैवधर्म अने पुरुषार्थधर्म कांई जुदा जुदा
आत्माना नथी, एक ज आत्माना बंने धर्मो छे. जेणे पोताना ज्ञायकस्वभाव तरफनो पुरुषार्थ कर्यो तेने कर्म
तरफनो प्रयत्न न होवा छतां कर्म टळीने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ने मोक्ष रूपी रत्ननी प्राप्ति थई जाय छे.
पण कोईक जीवनो पुरुषार्थ बीजा जीवने काम आवी जाय–एम बनतुं नथी. दैवनय पण पुरुषार्थ–धर्मनो निषेध
नथी करतो; जो एकला दैवने ज मानीने पुरुषार्थनो निषेध करे तो ते एकांत मिथ्याद्रष्टि छे.
करे छे. आमां आत्माए पुरुषार्थथी जड कर्मोने टाळ्या एम कहेवुं ते निमित्तथी कथन छे, अने कर्म टळवाथी
आत्मानी मुक्ति थई–ए पण निमित्तथी कथन छे. आत्मानो पुरुषार्थ आत्मामां छे ने कर्मनी अवस्था जडमां छे.
आत्मा तो पोताना स्वभावनो ज पुरुषार्थ करे छे त्यां कर्म तेनी मेळे टळी जाय छे ने मुक्ति थई जाय छे. आमां
कर्मने टाळवा तरफ जीवनो यत्न नथी छतां कर्म टळी जाय छे ने मुक्ति थई जाय छे तेथी अयत्नसाध्यधर्म
कहेवामां आव्यो छे.
त्यारे खोराक मली रहेशे. पुरुषार्थवादी कहे के हुं गाममां जईने यत्नथी खोराक मेळवी आवुं छुं. पछी
पुरुषार्थवादी गाममां जईने बे लाडवा लई आव्यो अने आवीने दैववादीने कह्युं के जो, हुं प्रयत्नथी लाडवा लई
आव्यो. पछी एक लाडवो तेणे पोतानी पासे राखीने बीजो दैववादीने आप्यो. त्यारे दैववादीए कह्युं के जो, मारा
दैव प्रमाणे मने पण लाडवो मळी गयो. –हवे आ द्रष्टांतमां खरेखर तो दैववादीने तेमज पुरुषार्थवादीने बंनेने
पोताना ‘पुण्यथी’ ज लाडवानी प्राप्ति थई छे; पण एकने पुरुषार्थनो विकल्प निमित्तरूपे छे तेथी तेने
पुरुषार्थथी लाडवानी प्राप्ति कही, अने बीजाने तेवो विकल्प नथी तेथी तेने यत्न वगर दैवथी लाडवानी प्राप्ति
कही. पण बंनेमां एक ज प्रकार छे के ते प्रकारना पुण्य होय तो प्राप्ति थाय. तेम अहीं