प्राप्ति थई छे. पण तेमां स्वभाव तरफनो प्रयत्न छे ते अपेक्षाए मोक्षने यत्नसाध्य कह्यो. अने कर्म तरफनो
प्रयत्न नथी ते अपेक्षाए अयत्नसाध्य कह्यो. दैवनयथी कथन हो के पुरुषार्थनयथी कथन हो, ते बंनेमां आ तो
एक ज प्रकार छे के बंनेने तेवो पुरुषार्थ छे; स्वभावना पुरुषार्थ विना बेमांथी कोईने मोक्ष प्राप्त थाय–एम
बनतुं नथी.
एकाग्र थतां परिणमननो प्रवाह स्वसन्मुख वळी जाय छे ने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र तथा मोक्षदशा प्रगटी
जाय छे.
होय छे.
लक्षे मुक्ति थाय ने कोईवार जडना लक्षे मुक्ति थाय–एम पण नथी, तेम कोईवार एकला पुरुषार्थथी मुक्ति
थाय ने कोईवार एकला दैवथी मुक्ति थाय–एम पण नथी. आत्मामां पुरुषार्थ अने दैव बंने एक साथे ज छे.
कर्मनी पद्धति सामे जोईने आत्माना आवा धर्मनी प्रतीत थती नथी पण आत्मानी सामे जोईने ज तेना
धर्मोनी प्रतीत थाय छे. आत्माना आवा दैवधर्मने ओळखवा जाय तो त्यां पण ते धर्मना आधारभूत धर्मीनी
(एटले के शुद्धचैतन्यमात्र आत्मतत्त्वनी) द्रष्टि करवानुं आवे छे एटले तेमां पण स्वभावद्रष्टिनो पुरुषार्थ
आवी जाय छे. आत्माना अनंत धर्मोमांथी पुरुषार्थ वगेरे कोई एक धर्मने जुदो पाडीने लक्षमां ल्ये तो तेना
लक्षे मुक्ति थती नथी. एकला पुरुषार्थ धर्मना लक्षे मुक्ति थती नथी माटे आत्मा अयत्नसाध्य छे. एटले भेदनी
द्रष्टि छोडीने अखंड आत्मस्वरूपनी द्रष्टि करवी ते ज तात्पर्य छे. अयत्नसाध्यधर्मद्वारा आत्माने जाणे तो तेमां
पण शुद्ध चैतन्यद्रव्य उपर ज द्रष्टि जाय छे, केमके अयत्नसाध्यधर्म तेनाथी जुदो नथी. आ रीते
अयत्नसाध्यधर्मने जाणनारनुं ज्ञान पण शुद्ध स्वभाव तरफ वळेलुं होय छे ने तेने ज दैवनय होय छे.
ज्ञानमां नय होता नथी.
दैवनय बहारमां लागु पाडवो.– तो ए विविक्षा अहीं लागु पडती नथी, केमके अहीं तो आत्माना धर्मोनुं वर्णन
छे एटले बधा नयो आत्मामां ज लागु पडे छे. अहीं आत्माना मोक्ष माटे पुरुषार्थ अने दैव बंने एक साथे
बताववा छे; एक आत्मामां ते बंने धर्मो एक साथे रहेला छे. माटे अहीं जे नयनी जे विवक्षा छे ते जाणवी
जोईए.