Atmadharma magazine - Ank 138
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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परिणम्या; तेमांथी वेदनीय कर्ममां सौथी झाझी संख्यामां परमाणुओ जाय छे, ने बीजा कर्मोमां थोडा
जाय छे. त्यां कांई आत्माने एवी ईच्छा नथी के वेदनीयकर्ममां झाझा परमाणुओ नांखुं, ने बीजामां थोडा
नांखुं!–पण परमाणुओमां एवो ज स्वभाव छे के पोतपोतानी योग्यता प्रमाणे तेओ परिणमी जाय छे.
“योग्यता” ते अंतरंग कारण छे, ने तेने अनुसार ज कार्य थाय छे.
जुओ, मोहनीय कर्मना परमाणु उत्कृष्ट ७० कोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति सुधी रहे, ज्यारे आयुष्य
कर्मना परमाणु उत्कृष्ट ३३ सागरोपम सुधी ज रहे.–आवी ज ते ते कर्मप्रकृतिनी स्थिति छे. कोई कहे के
मोहकर्मनी उत्कृष्ट स्थिति ७० कोडाकोडी सागरोपमनी अने आयुष्य कर्मनी उत्कृष्ट स्थिति फक्त ३३
सागरोपमनी ज,–एम केम? तो षट्खंडागममां आचार्यदेव कहे छे के प्रकृतिविशेष होवाथी ए प्रकारे स्थितिबंध
थाय छे, एटले के ते ते विशेष प्रकृतिओनी तेवी ज अंतरंग योग्यता छे, ने तेनी योग्यतारूप अंतरंग कारणथी
ज तेवुं कार्य थाय छे. एम कहीने त्यां आचार्यदेवे महान सिद्धांत जणाव्यो छे के “बधे ठेकाणे अंतरंग कारणथी
ज कार्यनी उत्पत्ति थाय छे,”–एवो निश्चय करवो.
उपर, जुदा जुदा कर्मनी जुदी जुदी स्थिति संबंधमां कह्युं ते ज प्रमाणे “वेदनीयकर्ममां परमाणुओनी
संख्या झाझी, ने बीजामां थोडीअएम केम?”–एवुं कोई पूछे तो तेनुं पण ए ज समाधान छे के ते ते
प्रकृतिओनो एवो ज स्वभाव छे. स्वभाव कहो, योग्यता कहो, के अंतरंग कारण कहो–तेनाथी ज कार्यनी उत्पत्ति
थाय छे. ए सिवाय बाह्य कारणोथी उत्पत्ति थती नथी. जो कदी पण बाह्यकारणोथी कार्यनी उत्पत्ति थती होय तो
चोखाना बीजमांथी घउंनी उत्पत्ति थवी जोईए, पण एम कदी बनतुं नथी.
निमित्त ते बाह्य कारण छे; ते बाह्यकारणना कोई द्रव्य–क्षेत्र–काळ–के भाव एवा सामर्थ्यवाळा नथी के
जेना बळथी लीमडाना झाडमांथी आंबा पाके, के चोखामांथी घउं पाके, के जीवमांथी अजीव थई जाय. लीमडाना
मूळीयामां गमे तेटला केरीना रसना ढगला करो तो पण लीमडामां आंबा पाकता नथी, केमके बाह्यकारणथी
कार्यनी उत्पत्ति थती नथी. जो बाह्यकारण अनुसार कार्यनी उत्पत्ति थाय तो तो अजीवनुं निमित्त बनतां ते
अजीवने अनुसार जीव पण अजीव थई जशे!–पण एम कदी बनतुं नथी, सर्वत्र अंतरंग कारणथी ज कार्यनी
उत्पत्ति थाय छे, बाह्य कारणथी कार्यनी उत्पत्ति थती नथी.
[–पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी]
श्री जैन – दर्शन शिक्षणवर्ग


सोनगढमां दर वर्षनी माफक आ वर्षे पण उनाळानी रजाओ दरमियान
वैशाख वद त्रीज ने सोमवार ता. ९–५–५५ थी शरू करीने, जेठ सुद नोम ने
सोमवार ता. ३०–५–५५ सुधी विद्यार्थीओने जैनदर्शनना अभ्यास माटे
शिक्षणवर्ग खोलवामां आवशे. विद्यार्थीओ उपरांत बीजा जिज्ञासु जैनबंधुओ
पण आ वर्गनो लाभ लई शकशे. वर्गमां दाखल थनारने माटे जमवानी तथा
रहेवानी व्यवस्था श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी थशे. वर्ग पूरो थया
पछी परीक्षा लईने प्रमाणपत्र आपवामां आवशे.
आ शिक्षणवर्गमां दाखल थवा जेमनी ईच्छा होय तेमणे सूचना मोकली
देवी अने वर्गमां टाईमसर हाजर थई जवुं.
–श्री जैन स्वाध्याय मंदिर, सोनगढ (सौराष्ट्र)