नांखुं!–पण परमाणुओमां एवो ज स्वभाव छे के पोतपोतानी योग्यता प्रमाणे तेओ परिणमी जाय छे.
“योग्यता” ते अंतरंग कारण छे, ने तेने अनुसार ज कार्य थाय छे.
सागरोपमनी ज,–एम केम? तो षट्खंडागममां आचार्यदेव कहे छे के प्रकृतिविशेष होवाथी ए प्रकारे स्थितिबंध
थाय छे, एटले के ते ते विशेष प्रकृतिओनी तेवी ज अंतरंग योग्यता छे, ने तेनी योग्यतारूप अंतरंग कारणथी
ज तेवुं कार्य थाय छे. एम कहीने त्यां आचार्यदेवे महान सिद्धांत जणाव्यो छे के “बधे ठेकाणे अंतरंग कारणथी
ज कार्यनी उत्पत्ति थाय छे,”–एवो निश्चय करवो.
प्रकृतिओनो एवो ज स्वभाव छे. स्वभाव कहो, योग्यता कहो, के अंतरंग कारण कहो–तेनाथी ज कार्यनी उत्पत्ति
थाय छे. ए सिवाय बाह्य कारणोथी उत्पत्ति थती नथी. जो कदी पण बाह्यकारणोथी कार्यनी उत्पत्ति थती होय तो
चोखाना बीजमांथी घउंनी उत्पत्ति थवी जोईए, पण एम कदी बनतुं नथी.
मूळीयामां गमे तेटला केरीना रसना ढगला करो तो पण लीमडामां आंबा पाकता नथी, केमके बाह्यकारणथी
कार्यनी उत्पत्ति थती नथी. जो बाह्यकारण अनुसार कार्यनी उत्पत्ति थाय तो तो अजीवनुं निमित्त बनतां ते
अजीवने अनुसार जीव पण अजीव थई जशे!–पण एम कदी बनतुं नथी, सर्वत्र अंतरंग कारणथी ज कार्यनी
उत्पत्ति थाय छे, बाह्य कारणथी कार्यनी उत्पत्ति थती नथी.
सोनगढमां दर वर्षनी माफक आ वर्षे पण उनाळानी रजाओ दरमियान
सोमवार ता. ३०–५–५५ सुधी विद्यार्थीओने जैनदर्शनना अभ्यास माटे
शिक्षणवर्ग खोलवामां आवशे. विद्यार्थीओ उपरांत बीजा जिज्ञासु जैनबंधुओ
पण आ वर्गनो लाभ लई शकशे. वर्गमां दाखल थनारने माटे जमवानी तथा
रहेवानी व्यवस्था श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी थशे. वर्ग पूरो थया
पछी परीक्षा लईने प्रमाणपत्र आपवामां आवशे.